इस अस्पताल में dialysis कराने से है जान का खतरा

मध्यप्रदेश में जबलपुर के शासकीय अस्पताल का मरीज़ो की जान से खिलवाड़ का मामला सामने आया है। एक ओर जहां चिकित्सा विभाग को अलग अलग मदों में अच्छा खासा फंड मिलता है, वहीं रोगी कल्याण कोष में भी पर्याप्त रुपए होने के बाद भी डीजल जनरेटर सूखा पड़ा रहता है।

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Jitendra Shrivastava
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नील तिवारी, JABALPUR. सेठ गोविंद दास अस्पताल के नाम से प्रख्यात जबलपुर के शासकीय विक्टोरिया अस्पताल से एक वीडियो सामने आया जिसमें बीच डायलिसिस ( dialysis ) में मशीन बंद हो गई और डायलिसिस करा रहे मरीजों की जान सांसत में आ गई। जानकारी लेने पर यह पता चला कि यह कोई पहली घटना नहीं है, बल्कि यहां आए दिन का यही हाल है। मरीज जब विक्टोरिया अस्पताल में डायलिसिस कराने आते हैं, तो पहले भगवान से प्रार्थना करते हैं कि चाहे कुछ भी हो जाए पर डायलिसिस के बीच में बिजली ना जाए क्योंकि बीच डायलिसिस में मशीन बंद हो जाने से मरीजों की जान खतरे में पड़ जाती है। 

साल में 8 महीने जनरेटर में नहीं होता ईंधन

ऐसा नहीं है कि अस्पताल में जनरेटर की व्यवस्था नहीं है। बाकायदा लाखों रुपए खर्च कर इमरजेंसी के लिए अस्पताल में अलग-अलग बिल्डिंगों के लिए डीजल जनरेटर लगाये गए हैं। इसी अस्पताल में एक डायलिसिस विंग है जो अपेक्स किडनी केयर के द्वारा संचालित किया जाता है और जिस जनरेटर से डायलिसिस विंग को पावर सप्लाई किया जाता है, वह आए दिन डीजल को तरसता रहता है। अस्पताल के सूत्रों के अनुसार डीजल सप्लाई करने वाले सेवा प्रदाता का बिल रुक जाने पर वह डीजल की सप्लाई भी रोक देता है। जिसके कारण यहां पर डायलिसिस करने आने वाले सैकड़ो मरीजों की जान दांव पर लग जाती है।

बीपी इंस्टूमेंट तक नहीं

जबलपुर के ही रहने वाले आशीष सोनकर किडनी की बीमारी से ग्रसित है एवं उनका लगातार डायलिसिस करना होता है। आशीष ने बताया कि अस्पताल में बीपी इंस्ट्रूमेंट तक उपलब्ध नहीं है। वही आए दिन बिजली गुल हो जाती है। आशीष ने आगे बताया कि वह जितने बार भी डायलिसिस करने गए हैं उसमें से 50% बार वहां पर बिजली गुल हुई है और तो और कई बार मरीज को आधा डायलिसिस कर घर भेज दिया जाता है और फिर दोबारा आने के लिए कहा जाता है।

कभी-कभी देरी से आता है फंडः CMHO

जबलपुर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी संजय मिश्रा से जब इस मामले में जानकारी लेनी चाही तो उन्होंने जनरेटर में डीजल ना होने की बात तो पहले सिरे से नकार दिया, पर आगे उन्होंने बताया कि शासन से कई बार फंड आने में देरी होती है और ऐसी स्थिति में रोगी कल्याण विभाग का फंड इस्तेमाल किया जाता है जिसके लिये जबलपुर जिला कलेक्टर की अनुमति लेनी होती है। अब सीएमएचओ ने भी  इशारों में यह तो बता दिया कि फंड आने में देरी होती है जो इस अनियमिता की वजह है। पर बिजली गुल होने के बाद मरीज को होने वाली परेशानी पर सीएमएचओ ने इसे बिजली का फाल्ट बता दिया और कहा कि इसकी वजह जनरेटर नहीं है कभी-कभी छोटे-मोटे बिजली के फाल्ट हो जाते हैं पर इस तथाकथित बिजली के फाल्ट से यदि किसी की जान चली जाती है तो उसकी जिम्मेदारी कौन होगा यह सवाल अब भी मुंह बाएं खड़ा है।

डायलिसिस और बीच में इसके बंद होने का प्रभाव

डायलिसिस उन लोगों के लिए एक उपचार है जिनकी किडनी खराब हो रही है। जब आपकी किडनी खराब हो जाती है , तो आपकी किडनी रक्त को उस तरह से फ़िल्टर नहीं करती है, जिस तरह से उन्हें करना चाहिए। परिणामस्वरूप, आपके रक्तप्रवाह में अपशिष्ट और विषाक्त पदार्थ जमा हो जाते हैं। डायलिसिस आपके गुर्दे का काम करता है, रक्त से अपशिष्ट उत्पादों और अतिरिक्त तरल पदार्थ को निकालता है। हालांकि हर डायलिसिस मशीन में कुछ मिनटों का बैकअप तो होता है और बिजली जाते ही यह मशीन अपने आप प्रक्रिया को रोक देती है पर जल्द ही बिजली वापस न आने से डायलिसिस की प्रक्रिया अधूरी ही रोक दी जाती है एवं मशीन सहित नालियों में जा चुका रक्त व्यर्थ हो जाता है। जो की एक किडनी की बीमारी झेल रहे रोगी के लिए बहुमूल्य होता है।

डायलिसिस dialysis
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