मध्यप्रदेश सरकार ने पिछले करीब डेढ़ साल से एक भी हथियार लाइसेंस जारी नहीं किया है। करीब पांच हजार आवेदन पेंडिंग हैं, जिनमें से कई नवंबर 2023 के विधानसभा चुनावों से पहले से अटके हुए हैं।
प्रदेश में पिस्टल और रिवॉल्वर के लाइसेंस की अनुमति गृह मंत्री द्वारा दी जाती है। वर्तमान में यह विभाग स्वयं मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव के पास है। जिस तरह से लाइसेंस जारी नहीं किए गए हैं, उससे लगता है कि सरकार प्रदेश में गन कल्चर को बढ़ावा नहीं देना चाहती है। पिछली सरकार में जो लोग आवेदन कर रहे थे, उन्हें लाइसेंस दिए जा रहे थे। अब मोहन सरकार में न तो नई मंजूरी दी गई और न ही पिछली फाइलों को आगे बढ़ाया गया है। ज्यादातर फाइलें या तो लौटाई जा चुकी हैं या सचिवालय में पड़ी हैं।
सीएम का फोकस कानून-व्यवस्था पर
सीएम डॉ. मोहन यादव ने गृह विभाग को अपने पास रखते हुए यह साफ कर दिया है कि उनकी प्राथमिकता प्रदेश में कानून-व्यवस्था को मजबूत बनाना है। सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री से हथियार लाइसेंस के लिए संपर्क करना बेहद कठिन है, जबकि पहले गृह मंत्री तक पहुंचना अपेक्षाकृत आसान होता था। सूत्रों के मुताबिक, इस अवधि में बेहद चुनिंदा लाइसेंस जारी किए गए हैं, इनकी संख्या में दस से कम है। हालांकि यह सामने नहीं आया है कि ये लाइसेंस किन लोगों को जारी किए गए हैं। बताया जाता है कि इनमें एक बीजेपी नेता के रिश्तेदार भी हैं।
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कलेक्टरों को राइफल्स लाइसेंस की छूट
प्रदेश सरकार ने कलेक्टरों को फिर से याद दिलाया है कि वे चुनिंदा राइफल के लाइसेंस जिला स्तर पर जारी कर सकते हैं। पिस्टल और रिवॉल्वर लाइसेंस का अधिकार राज्य सरकार के पास ही है।
गौरतलब है कि मध्यप्रदेश के चंबल क्षेत्र (ग्वालियर, मुरैना, भिंड) में बंदूकें सामाजिक प्रतिष्ठा से जुड़ी होती हैं। यहां पीढ़ियों से गन कल्चर चला आ रहा है। कई घरों में पिस्तौलें विरासत में दी जाती हैं। इन्हें सम्मान और पहचान का प्रतीक माना जाता है। शादी-ब्याह में आज भी शौकिया फायरिंग का चलन जारी है। 'वीआईपी संस्कृति' में हथियार को स्टेटस सिंबल माना जाता है। लिहाजा, इसी अंचल के सबसे ज्यादा लाइसेंस पेंडिंग हैं।
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