हाईकोर्ट में 24 घंटे अंबेडकर प्रतिमा की सुरक्षा कर रहे पुलिसकर्मी, दो गुट आए आमने-सामने

ग्वालियर हाईकोर्ट परिसर में डॉ. भीमराव अंबेडकर प्रतिमा स्थापना को लेकर वकीलों और बार एसोसिएशन में गंभीर विवाद जारी है। यह विवाद अब जातिगत टकराव के रूप में भी उभरता जा रहा है।

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Sourabh Bhatnagar
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ग्वालियर हाईकोर्ट परिसर (Gwalior High Court Campus) में संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर (Dr. Bhimrao Ambedkar) की प्रतिमा (Statue) लगाने को लेकर वकीलों के दो गुट आमने-सामने हैं। एक गुट का दावा है कि उन्हें चीफ जस्टिस से स्वीकृति मिल चुकी है और पीडब्ल्यूडी विभाग ने फाउंडेशन भी तैयार कर दिया है, जबकि बार एसोसिएशन इसका विरोध कर रहा है। यह विवाद अब जातिगत टकराव के रूप में भी उभरता जा रहा है, जिसमें कई बाहरी संगठन भी सक्रिय हो गए हैं।

अंबेडकर प्रतिमा स्थापना का विवाद क्या है?

प्रतिमा स्थापना के पक्ष में एक गुट का कहना है कि ग्वालियर हाईकोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत से उन्हें मौखिक सहमति मिल चुकी है। इसके बाद पीडब्ल्यूडी ने मूर्ति के लिए फाउंडेशन और स्ट्रक्चर तैयार किया। वकीलों ने चंदा इकट्ठा कर मूर्ति बनवाई, जो मूर्तिकार प्रभात राय के स्टूडियो में सुरक्षा के साथ रखी गई है। प्रतिमा 10 फीट ऊंची है और इसके चारों ओर सीसीटीवी कैमरे और पुलिस सुरक्षा तैनात है।

प्रतिमा स्थापना का विरोध करने वाले गुट की मांग

वहीं बार एसोसिएशन का कहना है कि चीफ जस्टिस की सहमति प्रक्रियागत गलती है। उनका तर्क है कि कोर्ट परिसर में किसी व्यक्ति की महिमा मंडन के लिए प्रतिमा स्थापित करना उचित नहीं। वे सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का हवाला देते हुए कहते हैं कि सार्वजनिक स्थानों पर महापुरुषों की प्रतिमाएं स्थापित करने की अनुमति नहीं होनी चाहिए। इसके अलावा, उन्होंने प्रतिमा के स्ट्रक्चर पर तिरंगा भी लगा दिया है, जो उनके विरोध का प्रतीक है।

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विवाद की शुरुआत कैसे हुई?

इस विवाद की शुरुआत 19 फरवरी 2025 को हुई, जब ग्वालियर हाईकोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस के सामने वकीलों के एक समूह ने प्रतिमा स्थापना के लिए ज्ञापन सौंपा। दावा है कि चीफ जस्टिस ने मौखिक सहमति दी, जिसके बाद पीडब्ल्यूडी ने मूर्ति के लिए फाउंडेशन तैयार किया। लेकिन बार एसोसिएशन को इस प्रक्रिया में शामिल नहीं किया गया, जिससे विवाद ने जन्म लिया।

प्रिंसिपल रजिस्ट्रार का आदेश

26 मार्च 2025 को प्रिंसिपल रजिस्ट्रार ने आदेश जारी किया, जिसमें कहा गया कि कमेटी के पांच सदस्यों ने प्रतिमा स्थापना कुछ समय के लिए टालने का सुझाव दिया, जबकि दो सदस्यों ने स्थापना पर सहमति जताई। आदेश में कहा गया कि चूंकि काम शुरू हो चुका है और भुगतान भी किया जा चुका है, इसलिए प्रतिमा स्थापित की जा सकती है।

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जातिगत विवाद में बदलता टकराव

विवाद अब केवल विधिक या प्रशासनिक मुद्दा नहीं रहा। यह जातिगत टकराव में तब्दील हो गया है। भीम सेना और अन्य सामाजिक संगठन भी इस मामले में सक्रिय हो गए हैं। 29 जून को ‘भीमराव अग्निपथ महासभा’ और 11 जुलाई को ‘अंबेडकर महापंचायत’ आयोजित की जाएगी। वकीलों ने सांसद भारत सिंह कुशवाह को ज्ञापन दिया है, जिसमें केंद्रीय कानून मंत्री से हस्तक्षेप की मांग की गई है।

सुरक्षा व्यवस्था कड़ी

प्रतिमा को मूर्तिकार के स्टूडियो में रखा गया है जहां 24 घंटे सुरक्षा के लिए आठ पुलिसकर्मी और कई सीसीटीवी कैमरे तैनात हैं। पुलिस ने इस संवेदनशील मामले में स्थिति पर कड़ी नजर रखी हुई है।

निष्कर्ष

ग्वालियर हाईकोर्ट परिसर में डॉ. भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा स्थापना विवाद गहराता जा रहा है। जहां एक तरफ विधिक और प्रशासनिक प्रक्रियाओं पर सवाल उठ रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ सामाजिक और राजनीतिक संवेदनाएं भी उभर रही हैं। यह मामला जल्द ही बड़े पैमाने पर राजनीतिक और सामाजिक बहस का विषय बन सकता है।

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