ग्वालियर व्यापार मेला को छह साल से राजनीतिक नियुक्तियों का इंतजार

119 वर्षों से सिंधिया स्टेट का फ्लेगशिप इवेंट रहा ग्वालियर व्यापार मेला इन दिनों प्राधिकरण की नियुक्तियों के लिए इंतजार कर रहा है। भाजपा में गुटबाजी और संगठनात्मक चुनाव इस देरी का कारण हैं..

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Jitendra Shrivastava
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ग्वालियर व्यापार मेला, जो परंपरा और आधुनिकता के संगम का प्रतीक है, इस बार भी राजनीतिक खींचतान के चलते प्राधिकरण की नियुक्तियों का इंतजार कर रहा है। 119 वर्षों से इस मेले का इतिहास सिंधिया परिवार के संरक्षण और राजनीतिक दायित्वों का गवाह रहा है। इस बार भी 25 दिसंबर से शुरू होने वाले मेले की तैयारियां अंतिम चरण में हैं। भाजपा संगठनात्मक चुनावों में व्यस्त होने के कारण प्राधिकरण में नियुक्तियों पर विचार नहीं किया गया है। संभावना है कि इस बार भी प्रबंधन प्रशासनिक अधिकारियों के जिम्मे रहेगा।

1905 में हुई थी मेला की शुरुआत

इस मेले की शुरुआत 1905 में सिंधिया रियासत काल में हुई थी। मेला का नाम स्वर्गीय माधवराव सिंधिया के नाम पर है। सिंधिया परिवार की लीगेसी रहे इस मेले के प्रबंधन में हमेशा ही सिंधिया परिवार का प्रभाव रहा है। पिछले छह वर्षों से मेला प्राधिकरण (Fair Authority) में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, और संचालकों की नियुक्ति अधर में है। इसका बड़ा कारण भाजपा में गुटबाजी और संगठनात्मक चुनाव इस देरी को बताया जा रहा है।

कमलनाथ सरकार में हुई थी नियुक्ति

कमल नाथ सरकार के समय प्रशांत गंगवाल और प्रवीण अग्रवाल को प्राधिकरण में नियुक्त किया गया था। वर्तमान में मेले की व्यवस्थाएं प्रशासनिक अधिकारियों के हाथों में हैं। इससे पहले भी 2012-2018 के दौरान भाजपा शासनकाल में प्राधिकरण का गठन नहीं हुआ था।

भाजपा में गुटबाजी और सिंधिया का प्रभाव

बता दें कि ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) और नरेंद्र सिंह तोमर (Narendra Singh Tomar) के खेमे मेले की राजनीतिक नियुक्तियों पर प्रभाव डालते रहे हैं। सिंधिया हमेशा से मेले की कमान अपने पसंदीदा व्यक्ति को सौंपने की कोशिश करते हैं। इसी तरह तोमर खेमा अपना वर्चस्व चाहता है। बता दें कि मेला की तैयारियां लगभग अंतिम चरण में हैं, क्योंकि 25 दिसंबर को मेला विधिवत रूप से शुरू किया जाना है। भाजपा में इस समय संगठनात्मक चुनाव की प्रक्रिया चल रही है। इसलिए संगठन की रुचि अभी निगम मंडलों में नियुक्तियों में बिल्कुल नहीं है। प्रदेश अध्यक्ष व जिलाध्यक्ष का चुनाव के बाद ही निगम मंडलों में नियुक्तियों पर विचार किया जाएगा। इसलिए ऐसे आसार नजर आ रहे हैं कि इस वर्ष भी मेला की कमान प्रशासनिक अधिकारियों के हाथ में रहेगी।

खबर से संबंधित सामान्य प्रश्न

ग्वालियर व्यापार मेला कब शुरू हुआ था?
1905 में सिंधिया रियासत काल में इसकी शुरुआत हुई।
मेला प्राधिकरण में नियुक्तियां क्यों लंबित हैं?
भाजपा की आंतरिक गुटबाजी और संगठनात्मक चुनावों के कारण।
मेले का नाम किसके नाम पर रखा गया है?
मेला स्वर्गीय माधवराव सिंधिया के नाम पर है।
इस वर्ष मेला की तैयारियां कौन देख रहा है?
प्रशासनिक अधिकारी इस वर्ष मेला की तैयारियों का प्रबंधन कर रहे हैं।
भाजपा में कौन-कौन से गुट मेला प्राधिकरण पर प्रभाव डालते हैं?
ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर के गुट।

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