संजय गुप्ता, INDORE. शहर में बढ़ते डॉग बाइट ( dog bite ) को लेकर हाईकोर्ट इंदौर सख्त हो गया है। सोमवार को हाईकोर्ट ने इस मामले में लगी एक जनहित याचिका में निगम अधिकारियों को फटकार लगाते हुए यहां तक कह दिया कि कार से उतर कर देखिए, काम कागज पर नहीं जमीन पर दिखना चाहिए।
हाईकोर्ट ने पूछा अब तक आपने किया क्या है?
हाईकोर्ट शहर में लगातार आर रह डॉग बाइट की खबरों को लेकर इतना चिंतित दिखा कि उन्होंने निगम के वकीलों से पूछा कि अस्पताल के आंकड़े लगातार बता रहे हैं कि यह तेजी से बढ़ रहा है। खासकर बच्चे और महिलाएं परेशान है, क्या अधिकारी इन्हें देखते नहीं है। अभी तक आने इस गंभीर मुद्दे पर किया क्या है?
केवल जवाब देने से मामला खत्म नहीं होगा
हाईकोर्ट की डबल बैंच ने साफ कहा कि ये याचिकाएं ऐसे खत्म नहीं होंगी। हम निगरानी कर रहे हैं। आम आदमी का सड़क से गुजरना मुश्किल है। इस मामले में कोई ठोस कार्रवाई होना चाहिए। कोर्ट ने सभी पक्षकारों को सुनने के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया।
इन्होंने लगाई याचिका
हाईकोर्ट में सामाजिक कार्यकर्ता महेश गर्ग और वंदना जैन ने याचिका लगाई हुई है। गर्ग ने अधिवक्ता प्रतीक माहेशवरी के जरिए याचिका दायर की है। बीते सुनवाई में सभी पक्षों को हाईकोर्ट ने नोटिस देकर जवाब मांगा था। निगम और प्रशासन की और से जवाब दिया गया कि काम बड़े स्तर का है इसलिए समय लग रहा है। हाईकोर्ट ने इस मामले में क्या हो रहा है, इस पर डिटेल मांगी है।
सबसे ज्यादा डॉग बाइट मप्र में इंदौर में ही
सबसे ज्यादा डॉग बाइट के केस मप्र में इंदौर में ही दर्ज होते हैं। हर महीने चार हजार से ज्यादा शिकार हो रहे हैं। वहीं एंटी रैबीज टीका केवल एक ही अस्पताल में उपलब्ध है। श्वान के लिए शेल्टर होम नहीं है। अगर शेल्टर होम बनाकर किसी एनजीओ को जिम्मेदारी सौंप दी जाए तो शहर में श्वानों की समस्या से मुक्ति पाई जा सकती है। इन याचिकाओं में एक पूर्व पार्षद महेश गर्ग की है और दूसरी वंदना जैन की।
इंदौर में डॉग बाइट केस
- 2024 अभी तक- 16006
- 2023- 43396
- 2022- 40252
- 2021- 32223
- 2020- 27694
डॉग बाइट में इंदौर में ही हर साल 11 करोड़ के इंजेक्शन लग रहे
हुकुमचंद पॉली क्लिनिक के डॉ. आशुतोष शर्मा का कहना है एक मरीज पर एंटी रैबीज इंजेक्शन का खर्च दो से ढाई हजार रुपए आता है। 2023 में 10 करोड़ 99 लाख 40 हजार रुपए इंजेक्शन पर खर्च हुए थे। 2022 में भी 10 करोड़ 92 लाख 57 हजार 500 रुपए खर्च किए थे। आंकड़ा सिर्फ हुकमचंद अस्पताल का है।
इंदौर नगर निगम श्वान नसबंदी पर 16 करोड़ से ज्यादा खर्च कर चुका
श्वान की संख्या रोकने के लिए नगर निगम 2014 से नसबंदी प्रोजेक्ट चला रहा है। इस पर अभी तक 16 करोड़ रुपए खर्च कर चुके हैं लेकिन उनकी संख्या घटने की बजायचार गुना बढ़ चुकी है। खासकर जब 29 गांव निगम सीमा में आए तो इनकी संख्या तेजी से बढ़ी।
- साल 2014 में यह निगम सीमा में 60 हजार थे, अब 2024 में यह 2.60 लाख है।
- नसबंदी करने के लिए नगर निगम प्रति नसबंदी एनजीओ को 925 रुपए देता है। साल 2014 से अभी तक 1.75 लाख श्वान की नसबंदी हुई है, जिस पर 16 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं। लेकिन समस्या वहीं के वहीं है।
सफाई में नंबर वन आने से गलियों में भोजन की कमी से हो रहे आक्रामक
जानकारों का कहना है कि इंदौर जबसे सफाई में नंबर वन आया है, अब श्वान को गलियों, सड़कों पर पड़ा हुआ भोजन नहीं मिलता है। खाने की दिक्कत होने लगी है। इसके चलते वह भूख से आक्रामक हो रहे हैं। सही तो यही होगा कि शेल्टर होम बनाकर रखा जाए और नसबंदी प्रोजेक्ट ईमानदारी से किया जाए।