कोर्ट के आदेश के बाद भी नहीं किया सीमांकन, आदेश की अवहेलना पर HC सख्त

जबलपुर हाईकोर्ट ने एक मामले में तीन अफसरों को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने सीमांकन एक माह में पूरा करने का आदेश दिया था, लेकिन प्रशासन ने इसे नजरअंदाज किया।

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Neel Tiwari
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जबलपुर हाईकोर्ट ने एक साल से अधिक समय से लंबित प्लॉट सीमांकन मामले में कार्रवाई नहीं करने पर सख्ती दिखाई है। कोर्ट ने राज्य शासन के राजस्व विभाग के प्रमुख सचिव विवेक पोरवाल, जबलपुर कलेक्टर दीपक सक्सेना और पनागर तहसीलदार विकास चंद जैन को अवमानना नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है।

एक साल बीता लेकिन नहीं हुआ सीमांकन

मामला जबलपुर जिले के निवासी अमित सेन से जुड़ा है। उन्होंने 2023 में एक रजिस्टर्ड विक्रय पत्र के आधार पर अपने प्लॉट का सीमांकन करवाने के लिए मध्यप्रदेश लोक सेवा गारंटी अधिनियम के तहत आवेदन किया था। नियमों के मुताबिक सीमांकन की समयसीमा एक माह तय थी। लेकिन प्रशासनिक लापरवाही के चलते एक साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी उनका सीमांकन नहीं हुआ।

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हाईकोर्ट ने पहले ही दे दिया था आदेश

लंबे समय तक कार्रवाई नहीं होने पर अमित सेन ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। हाईकोर्ट में जस्टिस विशाल धगत की सिंगल बेंच ने मामले की गंभीरता को देखते हुए अधिकारियों को एक माह के भीतर सीमांकन की कार्यवाही पूरी करने के निर्देश दिए थे। 10 फरवरी 2025 को जारी किए गए इस आदेश के बाद भी अधिकारियों ने केवल कागजी औपचारिकताएं पूरी कीं और याचिकाकर्ता के प्लॉट का वास्तविक सीमांकन नहीं किया।

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कलेक्टर और तहसीलदार को नोटिस 

इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता असीम त्रिवेदी, विनीत टेहेनगुनिया, पंकज तिवारी और शुभम पाटकर ने पैरवी की। कोर्ट ने प्रारंभिक सुनवाई में इस लापरवाही को साफ तौर पर अदालत के आदेश की अवमानना माना। इसी के चलते प्रमुख सचिव, कलेक्टर और तहसीलदार को नोटिस जारी करते हुए उनसे जवाब मांगा है कि क्यों न उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू की जाए।

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अब सितंबर में होगी मामले की अगली सुनवाई

15 सितंबर को इस मामले की अगली सुनवाई होगी। संबंधित अधिकारियों को यह स्पष्ट करना होगा कि अदालत के आदेश के बावजूद उन्होंने सीमांकन क्यों नहीं किया। यदि कोर्ट उनके जवाब से असंतुष्ट रहता है, तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई हो सकती है। इस पूरे मामले ने फिर यह सवाल खड़ा किया है कि जब कोर्ट का आदेश भी लागू नहीं होता, तो आम नागरिक अपने अधिकारों की रक्षा के लिए किस पर भरोसा करें।

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जमीन का सीमांकन 

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