महिला की घर पर डिलीवरी कराना चाहता था परिवार, कुप्रथाओं की जंजीर तोड़ अस्पताल में दिया बेटे को जन्म

आदिवासी बहुल इलाकों में टोने टोटके तथा झाड़- फूंक का बहुत अधिक चलन है। महिला की पहले की 6 संतानें सभी बेटियां हैं। जिनमें से दो बेटियों की मौत हो चुकी है।

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Dolly patil
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दमोह जिले की हटा तहसील के आदिवासी अंचल ग्राम अमझिर में रहने वाली एक महिला ने समाज को अच्छा संदेश दिया है। दरअसल अमझिर निवासी कमलेश रानी गर्भ से थी।

उसका नौवां महीना चल रहा था। इस बात की जानकारी जब आंगनवाड़ी कार्यकर्ता को लगी तो वे महिला के घर पहुंची तथा उसकी शारीरिक अवस्था को देखते हुए जिला अस्पताल चलने का परामर्श दिया। लेकिन महिला के घर वालों ने स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की बात मानना तो दूर गर्भवती महिला से मिलने तथा उसे छूने से भी इंकार कर दिया।   

परिवार करना चाहता था घर में डिलीवरी 

जब महिला के परिवार ने स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं से उससे मिलने से मना कर दिया तो परेशान स्वास्थ्य कार्यकर्ता हटा अस्पताल पहुंची और जानकारी ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर उमाशंकर पटेल को दी। 

इसके बाद बीएमओ ने अंतरा फाउंडेशन एवं मड़ियादो की सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र अधिकारी को महिला के घर भेजकर उसके परिजनों को किसी भी तरह काउंसलिंग कर अस्पताल लाने के आदेश दिए।

इसके बाद अधिकारी महिला के घर वालों को बताया कि उसके शरीर में खून बहुत कम है। यदि डिलीवरी हो भी गई तो महिला और बच्चे का बचना मुश्किल होगा। दरअसल महिला का परिवार रीति-रिवाज का हवाला देकर घर पर ही डिलीवरी कराना चाहता है।  

महिला ने दिया बेटे को जन्म

इसके बाद महिला की हीमोग्लोबिन की जांच की गई। जिसके बाद पता चला कि उसके शरीर में मात्र 3.6 ग्राम ब्लड है। इसके बाद किसी तरह से परिजन महिला को जिला अस्पताल ले जाने के लिए राजी हुए। महिला ने जिला अस्पताल में अपनी सातवीं संतान के रूप में एक बेटे को जन्म दिया। 

झाड़- फूंक  चलन 

आदिवासी बहुल इलाकों में टोने टोटके तथा झाड़- फूंक का बहुत अधिक चलन है। महिला की पहले की 6 संतानें सभी बेटियां हैं। जिनमें से दो बेटियों की मौत हो चुकी है।

बेटा न होने से परेशान परिजन महिला को जब गुनिया ( ओझा )के पास लेकर गए तो उसने झाड़ फूंक करने के साथ ही हिदायत दी कि यदि घर पर डिलीवरी होगी तो सातवीं संतान के रूप में बेटा पैदा होगा।

इसके अलावा महिला को बाहरी लोगों से मिलने तथा बाहर की दवाइयां और अस्पताल ले जाने की सख्त मनाही कर दी। यह परंपरा पूरे अंचल में है। लेकिन जब जिला अस्पताल में महिला ने स्वस्थ बेटे को जन्म दिया तो आदिवासियों को इस बात का एहसास हुआ की झाड़ फूंक और व्यर्थ की मान्यताएं नहीं मानना चाहिए। 

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