कांग्रेस का प्रत्याशी बनने के लिए मोती सिंह केस मे सुनवाई पूरी, फैसला सुरक्षित, लेकिन राहत मिलने की उम्मीद नहीं

अधिवक्ता विभोर खंडेलवाल ने मोती सिंह की ओर से पक्ष रखा था कि मोती सिंह ने बम के साथ सब्सीट्यूट कैंडीडेट के रूप में फार्म भरा था। क्योंकि राजनीतिक दल की ओर से नाम था इसलिए प्रस्तावक दस की जगह केवल एक के हस्ताक्षर थे। 

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Pratibha ranaa
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संजय गुप्ता, INDORE. इंदौर लोकसभा सीट से कांग्रेस का औपचारिक प्रत्याशी बनाए जाने की मांग को लेकर मोती सिंह ( Moti Singh ) की हाईकोर्ट डिवीजन बैंच में लगी याचिका पर सुनवाई शुक्रवार को एक घंटे की लंबी बहस के साथ पूरी हो गई। फैसला सुरक्षित रखा गया है लेकिन राहत मिलने की उम्मीद नहीं है। सुनवाई के दौरान मोटे तौर पर बैंच ने माना कि इसमें चुनाव याचिका ही लगना चाहिए थी और फार्म जिंदा ही नहीं तो फिर इसे आगे कैसे मान्य किया जाए। 

बैंच ने यह बातें कहीं

बैंच ने कहा कि फार्म यदि 29 अप्रैल तक जिंदा होता तो फिर सब्सीट्यूट (अक्षय बम के नाम वापस लेने पर मोती सिंह का) कैंडीडेट के तौर पर विचार किया जाता। लेकिन याचिकाकर्ता का फार्म 26 अप्रैल को रिजेक्ट हो गया, क्योंकि बम का राजनीतिक दल की ओर से फार्म मान्य हुआ था। वहीं उनके फार्म पर दस प्रस्तावक के हस्ताक्षर नहीं थे ऐसे में चुनाव अधिकारी ने फार्म 26 अप्रैल को रिजेक्ट कर दिया। जब फार्म ही नहीं तो फिर सब्सीट्यूट कैंडीडेट की बात कैसे हो सकती है? बैंच ने कहा कि इस मामले को चुनाव के बाद चुनाव याचिका के तौर पर ला सकते हैं। सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा गया। जस्टिस एसए धर्माधिकारी और जस्टिस गजेंद्र सिंह ने सुनवाई की। 

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मोतीसिंह की ओर से यह रखा गया पक्ष

अधिवक्ता विभोर खंडेलवाल ने मोती सिंह की ओर से पक्ष रखा था कि सिंह ने बम के साथ सब्सीट्यूट कैंडीडेट के रूप में फार्म भरा था। क्योंकि राजनीतिक दल की ओर से नाम था इसलिए प्रस्तावक दस की जगह केवल एक के हस्ताक्षर थे। लेकिन मेरा फार्म 26 अप्रैल को स्क्रूटनी कमेटी ने रिजेक्ट कर दिया क्योंकि इसमें दस प्रस्तावक के हस्ताक्षर नहीं थे। लेकिन जब 29 अप्रैल को बम ने फार्म वापस ले लिया तो तो मेरा नाम जिंदा होता है और मुझे जो दस नाम नहीं होने के चलते रिजेक्ट किया गया था वह आधार खत्म हो गया और मैं फिर 29 को सब्सीट्यूट प्रत्याशी के तौर पर आ जाता हूं, मेरा नाम मान्य किया जाए और कांग्रेस का चिन्ह दिया जाए। 

हाईकोर्ट सिंगल बैंच कर चुकी है खारिज

हाईकोर्ट जस्टिस विवेक रूसिया की बेंच में इस ममले में सिंह की याचिका पहले खारिज हो चुकी है, उन्होंने इस आधार पर मामला खारिज कर दिया कि यदि आप दस प्रस्तावक के हस्ताक्षर रखते हुए फार्म को 29 अप्रैल तक नाम वापसी तक जिंदा रखते तो फिर मूल प्रत्याशी के नाम वापस लेने पर आपका अधिकार पैदा होता। लेकिन चुनाव में कोई भी आर्डर बैक नहीं होता है, इसलिए स्क्रूटनी कमेटी ने जब आपका फार्म ही 26 को रिजेक्ट कर दिया तो फिर 29 अप्रैल को आपका अधिकार ही जिंदा नहीं होता है। आपको 29 अप्रैल तक अपने आपकी स्थिति को बनाए रखना था, दस प्रस्तावक के हस्ताक्षर होते और फार्म रिजेक्ट नहीं होता तो फिर मूल प्रत्याशी के फार्म के विड्राल होने के बाद आप राजनीतिक दल के प्रत्याशी बनने और चुनाव चिन्ह पाने का दावा कर सकते थे।

 

SANJAY GUPTA

 

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