दमोह क्राइस्ट चर्च मामले में स्टे पर चल रही थी सुनवाई और प्रशासन ने कर लिया कब्जा

जबलपुर हाईकोर्ट में दमोह जिले के ईसाई मिशन क्राइस्ट स्टेट चर्च के द्वारा एक याचिका पर सुनवाई की गई। यह याचिका दमोह तहसीलदार के द्वारा 4 अक्टूबर को पारित एक बेदखली आदेश के विरुद्ध दायर की गई थी। 

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Neel Tiwari
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दमोह की ईसाई मिशनरी संस्था के संचालक अजय लाल पर एक सामुदायिक भवन निर्माण में शासकीय भूमि कब्जाने का आरोप लगा है। दरअसल अजय लाल पर ह्यूमन ट्रैफिकिंग ( human trafficking ) के केस के बाद अब मिशनरी संस्था पर सरकारी भूमि हथियाने का आरोप लगा है। इस मामले पर सोमवार यानी आज मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की मुख्य पीठ ने सुनवाई की है।

शासकीय भूमि पर कब्जे का मामला 

यह मामला दमोह जिले के क्रिस्चन मिशन डिसाईपल्स ऑफ क्राइस्ट चर्च के सामुदायिक भवन से जुड़ा हुआ है, जो पिछले कुछ दिनों से बेदखली के आदेश के बाद विवादों में है। संस्था पर आरोप है कि उन्होंने लगभग 15 हजार की सरकारी जमीन पर कब्जा किया है। 30 सितंबर को नोटिस जारी करते हुए शासन ने मिशनरी संस्था को अतिक्रमण के लिए कारण बताओ नोटिस दिया था। संस्था ने पहले 181 पर शिकायत होने के बाद नगर पालिका के द्वारा किए गए सीमांकन का हवाला देते हुए जवाब दिया था। नगर पालिका के द्वारा पुष्टि की गई है कि हमने किसी प्रकार का अतिक्रमण नहीं किया है। 4 अक्टूबर को दमोह तहसीलदार ने एक आदेश पारित करते हुए इस मिशनरी संस्था के द्वारा किए गए अतिक्रमण को सीमांकन के बाद हटाने का आदेश दिया।

वकील ने कार्रवाई को बताया अनुचित 

याचिकाकर्ता के वरिष्ठ अधिवक्ता ने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि तहसीलदार द्वारा पारित आदेश नियम अनुसार नहीं था। चर्च की संपत्ति को अतिक्रमण/अवैध निर्माण के आधार पर हटाया जा रहा है। यह आदेश 4 अक्टूबर को पारित किया गया था। याचिकाकर्ता ने यह भी बताया कि तहसीलदार ने परिसर में ताला लगा होने के बाद भी सीमांकन कर लिया और एकपक्षीय बेदखली आदेश जारी किया है। जब याचिकाकर्ता को 7अक्टूबर को बेदखली का आदेश मिला तो अर्जेंट हियरिंग के लिए हाईकोर्ट में आवेदन किया गया।

अवकाश के दिन हुई हाईकोर्ट में सुनवाई

इस मामले की सुनवाई के लिए अवकाश के दिन हाईकोर्ट की सिंगल बेंच में इस मामले की सुनवाई हुई। जिसमें कोर्ट में याचिकाकर्ता ने बताया कि सुबह 6 बजे से अतिक्रमण की कार्रवाई शुरू हो गई है। सुनवाई के चलते कोर्ट के द्वारा जब पूरी कार्रवाई की फाइल मांगी गई तो शासकीय अधिवक्ता के द्वारा कुछ समय की मोहलत मांगी गई। फाइल आने के बाद इस मामले पर दोबारा सुनवाई हुई और अदालत ने इस मामले पर स्टे आर्डर दिया है। 

स्टे आर्डर शासन के पक्ष में

हाईकोर्ट में जस्टिस द्वारकाधीश बंसल की बेंच में हुई सुनवाई में पहले यह प्रतीत हुआ कि फैसला मिशनरी संस्था के पक्ष में आने वाला है। इसके बाद दमोह प्रशासन की बेदखली की कार्रवाई रोकनी पड़ती, लेकिन मामले की फाइल आते तक विवादित जमीन पर शासन ने पूरी तरह कब्जा कर लिया था और इस तरह यह यथा स्थिति का स्थगन आदेश दमोह प्रशासन के पक्ष में पारित हुआ।

शासन के कब्जे में आ गई विवादित जमीन

इस मामले में पहले राज्य सरकार की और से अधिवक्ताओं ने याचिकाकर्ता की याचिका पर सुनवाई के ही विरोध किया। उन्होंने दलील दी कि याचिका संस्था के कंप्यूटर ऑपरेटर ने दाखिल की है जिसे कोई अथॉरिटी लेटर नहीं मिला है। दोबारा हुई सुनवाई में शासन ने याचिकाकर्ता की दलीलों का विरोध करते हुए बताया कि तहसीलदार के आदेश का पालन करते हुए अवैध निर्माण को हटा दिया गया है और संपत्ति पर कब्जा भी ले लिया गया है।

सिविल मुकदमा दायर करने की अनुमति मांगी 

लंबी बहस के बाद, याचिकाकर्ता ने रिट याचिका को वापस लेने की अनुमति मांगी, ताकि वह स्वामित्व के दावे और अन्य राहत के लिए सिविल मुकदमा दायर कर सके। न्यायालय ने याचिका को वापस लेने की अनुमति दी। इसके साथ ही निर्देश दिया कि यदि याचिकाकर्ता 15 दिनों के भीतर सिविल मुकदमा दायर करता है, तो आदेश 39 नियम 1 और 2 सीपीसी के तहत आवेदन का निर्णय होने तक संपत्ति के संबंध में यथास्थिति बनाए रखी जाएगी।

संस्था पर धर्मांतरण और मानव तस्करी के आरोप

क्रिश्चियन मिशनरी संस्थान के अंतर्गत आने वाली आधारशिला संस्थान पर दूसरे धर्म के बच्चों को बाइबल पढ़ने का और धर्मांतरण करने का भी आरोप लगा है। आधारशिला संस्थान और मिशनरी अस्पताल के संचालक डॉ. अजय लाल पर मानव तस्करी जैसे गंभीर आरोप लग चुके हैं, लेकिन यह आरोप निराधार साबित हुए हैं। इसी संस्थान के अंतर्गत क्राइस्ट मिशनरी सामुदायिक भवन भी आता है।

कोर्ट ने दिया 15 दिन का समय 

जबलपुर हाईकोर्ट में न्यायाधीश द्वारकाधीश बंसल की एकल पीठ में क्राइस्ट चर्च द्वारा दायर रिट याचिका पर सुनवाई  करते हुए एक निर्देश जारी किया हैं। जिसमें याचिकाकर्ता को 15 दिन के अंदर सिविल मुकदमा दायर करना होगा। न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि यदि याचिकाकर्ता 22 अक्टूबर 2024 तक सिविल मुकदमा दायर करने में विफल रहता है, तो अदालत द्वारा दी गई अंतरिम सुरक्षा खुद समाप्त हो जाएगी। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले के गुण-दोषों पर कोई राय नहीं दी गई है और ट्रायल कोर्ट बिना किसी प्रभाव के स्वतंत्र रूप से फैसला करेगा।

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