BHOPAL. जिस बात की राजनीतिक गलियारों में महीनों से चर्चाएं थीं, आखिरकार वही हुआ। बैतूल विधायक हेमंत खंडेलवाल को भारतीय जनता पार्टी ने मध्यप्रदेश का नया प्रदेश अध्यक्ष बना दिया है। वे निर्विरोध चुने गए। नामांकन प्रक्रिया में उनके अलावा किसी और नेता ने नाम दाखिल नहीं किया। यहां तक कि जिनकी दावेदारी के कयास लगाए जा रहे थे, वे प्रस्तावक बने।
न कोई आंतरिक खींचतान हुई और ना ही कोई गुटबाजी। यह वही अनुशासन है, जो बीजेपी को देश की सबसे बड़ी और सबसे संगठित राजनीतिक पार्टी बनाता है।
याद कीजिए, जब विधानसभा चुनाव के समय विधायक दल की बैठक हो रही थी, तब मोहन यादव को विधायक दल का नेता चुना गया। उनके नाम की पर्ची भी तब के सीएम शिवराज सिंह चौहान ने निकाली थी। वे ही प्रस्तावक बने थे, जबकि तब भी शिवराज खुद दावेदार थे।
अब प्रदेश अध्यक्ष के मामले में भी ऐसा ही हुआ। नामांकन का पूरा घटनाक्रम खुद में यह बताने के लिए काफी है कि भाजपा में सत्ता और संगठन किस तरह एक लय में चलते हैं। नामांकन प्रक्रिया शुरू होने से ठीक पहले हेमंत खंडेलवाल (Hemant Khandelwal) भाजपा प्रदेश कार्यालय पहुंचे। इस दौरान उन्होंने मीडिया के सवालों पर कुछ नहीं कहा। अंदर जाकर उन्होंने नामांकन दाखिल किया।
मोहन यादव बने प्रस्तावक
हेमंत खंडेलवाल को मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव और शिवराज सिंह चौहान की पसंद माना जा रहा है। लिहाजा, दोनों नेता बीजेपी दफ्तर में पूरे समय मौजूद रहे। सीएम डॉ.यादव स्वयं प्रस्तावक बने। भाजपा के प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा ने खंडेलवाल को इशारा किया। इसके बाद सीएम उनका हाथ पकड़कर मंच पर लेकर पहुंचे।
धर्मेंद्र प्रधान, विवेक शेजवलकर और सरोज पांडे के सामने नामांकन दाखिल कराया। यहां भी केंद्रीय मंत्री सावित्री ठाकुर को भी प्रस्तावक बनाया गया, जबकि उनका नाम भी प्रदेश अध्यक्ष के लिए चल रहा था। खंडेलवाल पहली पंक्ति में केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र खटीक और गोपाल भार्गव के बीच में बैठे थे। सीएम मोहन यादव ने इशारा किया। फिर पीठ पर हाथ रखकर मंच की ओर बढ़े। फिर बाकी औपचारिकताएं पूरी कराई गईं।
मध्य क्षेत्र से शिवराज के बाद हेमंत दूसरे नेता
मध्य क्षेत्र से दूसरी बार किसी नेता को भाजपा संगठन के नेतृत्व का मौका मिला है। हेमंत खंडेलवाल शिवराज के बाद दूसरे नेता हैं। प्रदेश का सीएम बनने से पहले शिवराज सिंह चौहान (ओबीसी) मई 2005 से फरवरी 2006 तक प्रदेश अध्यक्ष रहे थे। वहीं, अविभाजित मध्यप्रदेश के बाद की बात करें तो छत्तीसगढ़ के दो नेता भी अध्यक्ष रहे। रायगढ़ से लखीराम अग्रवाल (सामान्य) ने 1990 से 1994 तक और नंदकुमार साय (एसटी) ने 1997 से 2000 तक प्रदेश संगठन की कमान संभाली थी।
शिवराज ने भर दिया था पर्चा
अब थोड़े पीछे चलते हैं। याद कीजिए पांच साल पहले का वो दिन, जब बीजेपी ने तब के प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह को हटाकर वीडी शर्मा को कमान सौंपी थी। वीडी की भी नियुक्ति हुई थी। उनके मामले में निर्वाचन प्रक्रिया नहीं हुई थी। इतिहास पर गौर करें तो बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के लिए आखिरी बार वोटिंग की नौबत वर्ष 2000 में आई थी।
तब पार्टी हाईकमान ने विक्रम वर्मा को उम्मीदवार बनाया था, लेकिन शिवराज सिंह चौहान ने उनके खिलाफ नामांकन दाखिल कर दिया था। तब मतदान हुआ और वर्मा को जीत मिली थी। हालांकि इसके बाद पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेता शिवराज से नाराज हो गए थे। इसके बाद के बरसों की बाद करें तो 2002 से अब तक सभी प्रदेशाध्यक्ष केंद्रीय नेतृत्व की पसंद से निर्विरोध चुने गए। MP News
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