हाईकोर्ट : रेप पीड़िता और उसके माता-पिता को कोर्ट की अवमानना का नोटिस

कोर्ट का कहना है कि ऐसा लगता है कि गर्भपात की अनुमति हाईकोर्ट के सामने झूठा स्टेटमेंट देकर ली गई है, इसलिए पीड़िता और उसके रिश्तेदार कोर्ट की अवमानना के लिए जिम्मेदार हैं।

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Marut raj
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High Court contempt of court to rape victim द सूत्र
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नील तिवारी, जबलपुर. मध्य प्रदेश के सागर जिले में दर्ज शिकायत के अनुसार पिछले साल 23 अक्टूबर को रेप केस की पीड़ित नाबालिग गर्भवती हो गई थी। उसकी शिकायत के आधार पर 376, 376 (2) (एन), यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा POCSO अधिनियम की धारा और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति ( अत्याचार की रोकथाम ) के तहत केस दर्ज कर लिया गया था। 

इसके बाद पीड़िता की ओर से लगाई गई गर्भपात की अनुमति की याचिका पर न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि याचिकाकर्ता की गर्भावस्था को समाप्त करने से पहले, याचिकाकर्ता के पिता सागर जिले के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ( सीजेएम ) के समक्ष अपना हलफनामा प्रस्तुत करेंगे। इसमें बताएंगे कि उनकी बेटी के साथ आरोपी ने रेप किया था और वो अपनी नाबालिग बेटी की गर्भावस्था को समाप्त कराने के लिए तैयार हैं।

अदालत ( High Court ) के आदेश में यह भी कहा गया था कि याचिकाकर्ता और उसके पिता को भी जांच अधिकारी को इस आशय का एक हलफनामा देना होगा कि चूंकि उन्होंने रेप के आरोप पर लड़की की गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने की मांग की है, इसलिए वे इससे पीछे नहीं हटेंगे। आदेश में यह भी कहा गया कि ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया जाता है कि अगर पीड़िता मुकर जाती है और दावा करती है कि आरोपी ने रेप नहीं किया है या वह खुद के बालिग होने का दावा करती है तो ट्रायल कोर्ट को इस अदालत के रजिस्ट्रार जनरल के समक्ष अपनी रिपोर्ट पेश करने के साथ-साथ पीड़िता की गवाही पत्र भी जमा करना होगा।

आरोपी ने जमानत के लिए दिया दूसरा आवेदन 

रेप के आरोपी कपिल लोधी ने जस्टिस गुरुपाल सिंह अहलूवालिया ( Justice Gurupal Singh Ahluwalia ) के कोर्ट में जमानत के लिए अर्जी दी। इस जमानत अर्जी में आरोपी की ओर से अधिवक्ता संजय सरवटे ने जमानत के लिए यह तथ्य रखे कि पीड़िता अपने बयान से मुकर गई है और उसने आवेदक के शादी से मना करने के कारण से ही एफआईआर की थी।

हॉस्टाइल ( Hostile ) होने के बाद अवमानना का शो कॉज नोटिस

लोक अभियोजक के द्वारा पीड़िता को क्रॉस एग्जामिन करने पर उसने यह माना कि आवेदक के द्वारा उसके साथ रेलवे स्टेशन में शारीरिक संबंध बनाए गए। उस समय सामाजिक मानहानि के डर से पीड़िता ने एफआईआर दर्ज नहीं कराई पर इस घटना की जानकारी अपनी मां को देने के बाद प्रेगनेंसी किट से टेस्ट किया और गर्भवती होना पाने के बाद पीड़िता ने एफआईआर दर्ज कराई। इस आधार पर न्यायालय ने आवेदक आरोपी की जमानत याचिका खारिज कर दी।

पीड़िता और परिवार को जारी हुआ शो कॉज नोटिस

न्यायालय ने पूर्व में दिए गए 2 आदेशों का उल्लेख करते हुए कहा कि यह प्रतीत होता है कि पीड़िता के द्वारा 2023 में गर्भपात के लिए रिट पिटिशन इस आधार पर लगाई गई थी कि उसके साथ आवेदक के द्वारा रेप किया गया और उसके बाद वह अपने आरोपों से मुकर गई। लोक अभियोजन के द्वारा क्रॉस एग्जामिनेशन करने पर उसने फिर रेलवे स्टेशन खुरई में रेप का जिक्र किया। इस आधार पर यह स्पष्ट है कि पीड़िता ने जो याचना की थी कि वह रेपिस्ट के बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती, वह झूठी याचना थी।

अदालत ने ग्वालियर बेंच के दो फैसलों ज़िक्र करते हुए ये बताया कि पीड़िता को गर्भपात की अनुमति इस हलफ़नामे के आधार पर दी गई थी कि वह अपने आरोपों से मुकरेगी नहीं और यह प्रतीत होता है कि गर्भपात की यह अनुमति हाईकोर्ट के सामने झूठा स्टेटमेंट देकर ली गई है, इसलिए पीड़िता और उसके रिश्तेदार कोर्ट की अवमानना के लिए जिम्मेदार हैं।

न्यायालय ने पीड़िता और उसके माता-पिता को इस बाबत शो कॉज नोटिस देने के निर्देश जारी करते हुए कहा है कि उनके द्वारा झूठे अधार पर रिट पिटीशन दायर करने पर उनके ऊपर कोर्ट की अवमानना की कार्रवाई क्यों ना की जाए?

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