नील तिवारी, JABALPUR. OBC आरक्षण से संबंधित बयान पर राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा के द्वारा लगाए गए 10 करोड़ के मानहानि दावे की सुनवाई में हाजिर होने से बचने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित खुजराहो के सांसद प्रत्याशी वीडी शर्मा और भूपेंद्र सिंह की ओर से लगाई गई धारा 482 की याचिका की सुनवाई करते हुए आज हाइकोर्ट ( High Courts ) ने उपस्थिति में राहत देने से भी इंकार करते हुए, सक्षम MP MLA कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से आवेदन देने को कहा है।
क्या है 10 करोड़ की मानहानि का मामला
सुप्रीम कोर्ट में पंचायत चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग के 27 प्रतिशत आरक्षण को रद्द किए जाने के आदेश के बाद बीजेपी नेताओं ने विवेक तन्खा को ओबीसी विरोधी नेता बताया था। दरअसल साल 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने पंचायत चुनाव में 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण पर रोक लगा दी थी इस दौरान विवेक तन्खा ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पंचायत और निकाय चुनाव में रोटेशन और परिसीमन को लेकर पैरवी की थी। उस वक्त बीजेपी नेताओं ने विवेक तन्खा को ओबीसी विरोधी बताते हुए उनके खिलाफ बयानबाजी की थी। सोशल मीडिया के साथ ही न्यूज चैनलों में भी बयानबाजी की गई थी और इसके बाद विवेक तन्खा ने भी अपनी सफाई देते हुए बयान जारी किया था और मानहानि करने का आरोप लगाते हुए तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान, बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा और तत्कालीन मंत्री भूपेन्द्र सिंह से सार्वजनिक माफी मांगने की बात कही थी, लेकिन तीनों नेताओं ने माफी नहीं मांगी जिसके बाद विवेक तन्खा कोर्ट में उनके खिलाफ 10 करोड़ रुपए का मानहानि केस दायर किया था।
साक्ष्य के रूप में 4 वीडियो भी प्रस्तुत किए
इस याचिका में विवेक तन्खा ने कहा कि शिवराज सिंह, वीडी शर्मा और भूपेंद्र सिंह ने आम जनता के बीच टेलीविजन सोशल मीडिया के माध्यम से ऐसे संदेश प्रसारित किए जिनसे उनकी ख्याति की अपहानि हुई है और साक्ष्य के रूप में 4 वीडियो भी प्रस्तुत किए। जिस पर सुनवाई करते हुए अब एमपी एमएलए कोर्ट जबलपुर ने सम्मन जारी करते हुए तीनों भाजपा नेताओं को 22 जनवरी को कोर्ट में पेश होने का आदेश दिया था। भाजपा नेताओं ने मानहानि प्रकरण में धारा 482 के तहत याचिका दायर की थी। जिसमें लोकसभा चुनाव की व्यस्तता बताते हुए अंतरिम राहत देने हाईकोर्ट से प्रार्थना की थी। जस्टिस संजय द्विवेदी की एकलपीठ ने अंतरिम राहत देने से इंकार करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता व्यक्तिगत रूप से उपस्थित से छूट के लिए संबंधित न्यायालय के समक्ष आवेदन करें। जिस पर संबंधित न्यायालय विचार करेगी। अनावेदक के अधिवक्ता को याचिका की प्रति उपलब्ध कराने के निर्देश जारी करते हुए एकलपीठ ने मामले की अगली सुनवाई 23 अप्रैल को निर्धारित की है।
क्या है धारा 482 की याचिका
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 (CRPC) के अंतर्गत धारा 482 के अधीन उच्च न्यायालय को अंतर्निहित शक्ति (Inherent Power) प्रदान की गई है। इस धारा के अधीन उच्च न्यायालय को एक विशेष शक्ति दी गई है। यह शक्ति दिए जाने का उद्देश्य न्यायालय की कार्यवाही को दुरुपयोग से बचाना है। इस शक्ति का प्रयोग केवल तब ही किया जाएगा जब अधीनस्थ न्यायालय कोई ऐसी कार्यवाही कर रहा है। जिस कार्यवाही से न्याय के उद्देश्य भंग हो रहे हैं या कोई ऐसी एफआईआर दर्ज की गई है या फिर ऐसे परिवाद के आधार पर प्रकरण दर्ज किया गया है, जिससे अभियुक्त के विरुद्ध प्रथम दृष्टया कोई अपराध नहीं बनता हो। अभियुक्त को आपसी रंजिश के परिणाम स्वरूप किसी प्रकरण में झूठा फंसाया जा रहा हो। राजनीतिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए किसी अभियुक्त को प्रकरण में अवैध तरीके से फंसाया गया हो या द्वेषपूर्ण भावना से किसी व्यक्ति पर असंवैधानिक तरीके से कार्यवाही की गई है, तब ही न्यायालय आपने इन्हेरेंट पॉवर का उपयोग करेगा। उच्च न्यायालय दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 482 के अधीन अपनी अंतर्निहित
शक्ति का प्रयोग तीन प्रकार की परिस्थितियों में करता है...
- संहिता की धारा 154 के अंतर्गत दर्ज की जाने वाली एफ आई आर को अभिखण्डित (Quash) करने हेतु।
- संहिता की धारा 173 के अधीन न्यायालय के समक्ष अभियोजन द्वारा पेश किए जाने वाले अंतिम प्रतिवेदन को निरस्त करने हेतु।
- किसी आपराधिक प्रकरण के पक्षकारों में आपसी राजीनामा हो जाने के उपरांत भी चलाई जा रही किसी दंडित कार्यवाही को निरस्त करने हेतु।
- आरोप- पत्र में किसी अभियुक्त के विरुद्ध आरोप तय नहीं किए जाने के उपरांत भी उस पर चलाए जा रहे ट्रायल की कार्यवाही को निरस्त करने हेतु।