जिला नहीं तहसील था... फिर भी राजधानी कैसे बना भोपाल, जानें कारण

आज 1 नवंबर 2024 को मध्य प्रदेश अपना 69वां स्थापना दिवस मना रहा है। इस खास मौके पर हम आपको भोपाल के राजधानी बनने की ऐसी रोचक जानकारी बताने जा रहे हैं, जो आपको शायद ही पता हो।

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Vikram Jain
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How Bhopal became the capital of Madhya Pradesh
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मध्य प्रदेश आज 1 नवंबर 2024 को अपना 69वां स्थापना दिवस मना रहा है। मध्य प्रदेश की स्थापना एक नवंबर 1956 को हुई थी। स्थापना के साथ ही रीवा, इंदौर, ग्वालियर बड़े शहर होने के कारण से राजधानी बनने होड़ में थे। लेकिन राज्य पुनर्गठन आयोग ने तो जबलपुर को राजधानी बनाने की सिफारिश की थी। इसके कुछ समय तक जबलपुर को राजधानी माना भी गया, आखिरकार यह तय हुआ कि जबलपुर नहीं... भोपाल को राजधानी बनाया जाएगा। भोपाल उस समय जिला भी नहीं था। आइए जानते हैं भोपाल कैसे बना एमपी की राजधानी

4 भाग में बंटा था मध्य प्रदेश

आजादी के बाद देश के मध्य भाग जो सेंट्रल प्रोविंस था, सेंट्रल प्रोविंस 4 भाग में विभाजित था। पार्ट- A की राजधानी नागपुर थी, पार्ट- B की 2 राजधानी ग्वालियर और इंदौर और पार्ट- C की राजधानी रीवा थी। पार्ट- D भोपाल में आजादी की लड़ाई जारी रही थी। भोपाल बाद में सीहोर जिले की तहसील बना। जब 1956 में मध्य प्रदेश राज्य बना तब भी भोपाल को जिला नहीं था।
पार्ट-B की दो राजधानियां ग्वालियर और इंदौर के तनाव था। दोनों के राजाओं की बीच में काफी तकरार थी। दोनों अपने आप को बड़ा और एक दूसरे से ज्यादा महत्वपूर्ण मानते थे। यह तनाव इतना ज्यादा था कि भारत सरकार को ग्वालियर और इंदौर को आधी-आधी राजधानी बनाने का फैसला लेना पड़ा। राज्यों के पुनर्गठन के बाद नागपुर महाराष्ट्र में चला गया। आजादी के पहले रियासत के राजा और आजादी के बाद नेता, परिस्थितियों में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया था। बड़ी बात यह थी कि ग्वालियर, इंदौर और रीवा के नेता खुद को राजा और जनता को प्रजा मानते थे।

क्या नहीं चाहते थे प्रधानमंत्री नेहरू

1956 में जब भारत में राज्यों का पुनर्गठन हुआ और मध्य प्रदेश का नक्शा तैयार हुआ। तब राजधानी को लेकर विवाद खड़ा हो गया। प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू इंदौर, ग्वालियर और रीवा तीनों में किसी को भी एमपी की राजधानी बनाना नहीं चाहते थे। अब एक ही बड़ा शहर जबलपुर था। इसके बाद जबलपुर को राजधानी बनाने का फैसला हुआ, केवल औपचारिक घोषणा होना रह गया था। इस बीच भोपाल स्टेट के मुख्यमंत्री पंडित शंकर दयाल शर्मा ने पीएम नेहरु से मुलाकात की। इसके बाद जबलपुर को राजधानी बनाने का फैसला कैंसिल कर दिया गया।

राजधानी क्यों नहीं बन सका जबलपुर

जबलपुर को राजधानी नहीं बनाए जाने के पीछे कई बातें कही गई हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार सेठ गोविंद दास ने जबलपुर को राजधानी बनाने की सबसे मजबूत पैरवी की थी। सेठ गोविंद दास के परिवार ने तो नागपुर हाईवे पर सैकड़ों एकड़ जमीन खरीद रखी थी। ताकि भविष्य में उन्हें इस जमीन से फायदा हो सके। उस समय पंडित जवाहरलाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री थे, जिन्हे से बात पसंद नहीं आई। इसके साथ ही कहा गया कि जबलपुर के भवन सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए ठीक नहीं हैं। 

जबलपुर को बनाया संस्कारधानी

शंकर दयाल शर्मा ने ही जवाहरलाल नेहरू को समझाया कि भोपाल ही मध्य प्रदेश राजधानी होनी चाहिए। मौलाना आजाद भी भोपाल से भावनात्मक रूप से जुड़े थे। विंध्य प्रदेश का समाजवादी आंदोलन कमजोर करने के लिए भी भोपाल मुफीद था। इन कारणों से जबलपुर को राजधानी नहीं बनाया जा सका। इसके बाद विनोबा भावे ने जबलपुर को संस्कारधानी का नाम देकर सांत्वना दी।

शंकर दयाल शर्मा ने दिया था यह सुझाव

दरअसल,  शंकर दयाल शर्मा ने बताया कि मध्य प्रदेश में एक ऐसा क्षेत्र है जो हर दृष्टि से राजधानी के लिए सर्वोत्तम है। थोड़ा विकसित भी था... सरकार अपने अनुसार टाउन एंड कंट्री प्लानिंग बना सकती है। उन्होंने बताया कि भोपाल का मौसम काफी अच्छा होता है। यहां ना ज्यादा गर्मी पड़ती है, ना ही ज्यादा सर्दी।  यह पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण बाढ़ भी नहीं आती है। इसलिए भोपाल में सरकारी कार्य आसानी से चल सकता है। यहां नवाब की संपत्तियां है जिसे सरकारी ऑफिस के लिए कार्य में ले सकते हैं और बहुत सारी जमीन खाली पड़ी है। जिसमें अपनी योजना के अनुसार डेवलपमेंट किया जा सकता है। सबसे खास बात यह कि मध्य प्रदेश का जो नक्शा तैयार किया गया है उसमें भोपाल बीच में आता है। इसलिए यह लोगों के लिए समान दूरी रखता है।
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भोपाल देश की एकमात्र तहसील जो राजधानी बनी

शंकर दयाल शर्मा का यह बातें पंडित जवाहरलाल नेहरू को पसंद आ गई। इसके बाद उन्होंने बड़ा फैसला लेते हुए भोपाल को मध्य प्रदेश की राजधानी घोषित कर दिया। भोपाल भारत की एकमात्र तहसील है जो राजधानी बनी। इसके बाद फिर जिले का दर्जा मिला। उस समय तक भोपाल सीहोर जिले में आता था। इसके बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू को भोपाल इतना पसंद आया कि उन्होंने तमाम चुनौतियों के बाद भी यहां BHEL की स्थापना की ताकि भोपाल आत्मनिर्भर बन सके।

अब जानें मध्य प्रदेश कैसे बना राज्य

आजादी के बाद देश के मध्य भाग को सेंट्रल प्रोविंस यानी मध्य प्रांत कहा जाता था। आजादी के बाद भारत में अलग-अलग रियासत थी, जिन्हें एक किया गया था। मध्य प्रदेश का निर्माण सीपी एंड बरार, मध्य भारत ( ग्वालियर-चंबल), विंध्य प्रदेश और भोपाल से मिलकर हुआ था। इसके लिए आजाद भारत में राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया गया था। आयोग को जिम्मेदारी दी गई थी कि उत्तर प्रदेश के बराबर बड़ा राज्य बनाना है। चुनौती यह थी कि पहले से मौजूद राज्यों की अपनी अलग पहचान थी और उनकी अपनी अलग विधानसभा भी थी। जब चार राज्यों को एक साथ किया जाने लगा तो रियासतदार इसका विरोध करने लगे। सभी समझौतों को पूरा करने में आयोग को 34 महीने लग गए।
सेंट्रल प्रोविंस के पार्ट-बी की राजधानी ग्वालियर और इंदौर थी। इसमें मालवा-निमाड़ की रियासतें शामिल थीं। और पार्ट-ए की राजधानी नागपुर थी। इसमें बुंदेलखंड और छत्तीसगढ़ की रियासतें शामिल थीं। पार्ट सी में विंध्य क्षेत्र था। जिसकी राजधानी रीवा थी। महाकौशल की राजधानी जबलपुर थी। भोपाल में नवाबों का शासन था। तमाम अनुशंसाओं के बाद राज्य पुनर्गठन आयोग ने अपनी रिपोर्ट जवाहरलाल नेहरू के सामने पेश की। उन्होंने इसे मध्य प्रदेश का नाम दिया और एक नवंबर 1956 को मध्य भारत को मध्य प्रदेश के तौर पर पहचाना जाने लगा।

भाषा के आधार पर बने थे राज्य

राज्यों को बनाने के लिए 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया गया था। इसके बाद भाषा के आधार पर 1956 में राज्यों का पुनर्गठन किया था। इसी के साथ एक नवंबर 1956 को मध्य प्रदेश की स्थापना हुई। एक नवंबर 1956 को पंडित रविशंकर शुक्ल को मध्य प्रदेश का पहला मुख्यमंत्री चुना गया। पट्टाभि सीतारमैया प्रथम राज्यपाल चुने गए। एमपी के गठन के समय 43 जिले थे। 1972 में भोपाल जिला बना जो पहले सीहोर जिले की तहसील था।
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