आजीविका मिशन में मिशनकर्मियों की नियम विरुद्ध नियुक्ति और इसमें किए गए भ्रष्टाचार के मामले में जिम्मेदार अफसरों पर शिकंजा कसने लगा है। परिवाद से दर्ज किए गए मामले में अब भोपाल कोर्ट ने EOW को आरोपी अफसर का जांच प्रतिवेदन कोर्ट को देने के निर्देश दिए हैं।
बता दें कि इस हाई प्रोफाइल मामले में पूर्व मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस के अलावा पूर्व IAS मनोज कुमार श्रीवास्तव, अशोक शाह और ललित मोहन बेलवाल सहित कई अफसरों के नाम जुड़े हुए हैं।
पहले समझें क्या है पूरा मामला ?
2017-18 में आजीविका मिशन में मिशनकर्मियों की नियम विरुद्ध नियुक्ति और इसमें किए गए भ्रष्टाचार की शिकायत EOW को की गई थी। मगर कोई कार्रवाई नहीं होने पर आवेदक आरके मिश्रा ने सीजेएम कोर्ट में परिवाद दायर कर दिया।
इसके बाद कोर्ट ने इस मामले में की गई जांच और कार्रवाई की स्टेटस रिपोर्ट तलब की थी। जैसे की कोर्ट का निर्देश मिला तो आनन- फानन EOW ने इस मामले में सामान्य प्रशासन विभाग ( GAD ) से अनुमति मांगी थी। फिलहाल EOW को इसकी अनुमति नहीं मिल सकी है। मामला शासन स्तर पर पेंडिंग है।
इन अफसरों के खिलाफ जांच की मांग
- पूर्व मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस
- अशोक शाह, महिला एवं बाल विकास विभाग के तत्कालीन अपर मुख्य सचिव
- ललित मोहन बेलवाल, आजीविका मिशन के तत्कालीन राज्य प्रबंधक
पूरा मामला इस तरह समझें
मामला आजीविका मिशन के तहत 15 नए जिलों में मिशनकर्मियों की नियुक्ति से जुड़ा हुआ है। आरोप है कि इन नियुक्तियों में अफसरों ने खुलकर नियमों की अनदेखी की गई। साथ ही विभागीय मंत्री के आदेशों को भी नहीं माना।
शिकायत में कहा गया है कि तत्कालीन राज्य स्तरीय परियोजना प्रबंधक ललित मोहन बेलवाल ने 8 मार्च 2017 को प्रशासकीय स्वीकृति के लिए फाइल तत्कालीन अपर मुख्य सचिव पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग इकबाल सिंह बैंस को भेजी थी। इसमें रिक्त पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन जारी करने की बात कही गई।
एक अन्य विभागीय अधिकारी ने इस मामले में चयन प्रक्रिया के लिए पांच सदस्यीय समिति बनाने की टीप लिखी, जिसे बैंस ने नकार दिया। साथ ही इस फाइल को विभागीय मंत्री के पास भेजा ही नहीं गया। मंत्री ने भर्ती प्रक्रिया को प्रोफेशनल एक्जामिनेशन बोर्ड से करवाने को कहा, तो मंत्री के उस निर्देश को भी दरकिनार कर दिया
इस तरह मामला दबाने की कोशिश
मामले का खुलासा होने पर जांच का जिम्मा आईएएस नेहा मारव्या को सौंपा गया था। उन्होंने 8 जून 2022 को रिपोर्ट दी, जिसमें नियुक्तियों में गड़बड़ियों को स्वीकारा गया। इसके बावजूद प्रकरण दर्ज नहीं कराया गया।
दो सीनियर आईएएस अशोक शाह ने इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की। बाद में ललित मोहन बेलवाल से इस्तीफा दिलवाकर मामला दबाने की कोशिश की गई।
अब क्या कहा कोर्ट ने
प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट तरुणेंद्र सिंह ने अब EOW को निर्देश दिए हैं कि इस मामले में आजीविका मिशन के तत्कालीन राज्य प्रबंधक ललित मोहन बेलवाल के खिलाफ जांच प्रतिवेदन को 7 जुलाई को होने वाली सुनवाई से पहले कोर्ट को प्रस्तुत करें।
बता दें कि इस मामले में पहले भी कोर्ट का निर्देश मिलने के बाद EOW ने सामान्य प्रशासन विभाग ( GAD ) से अनुमति मांगी थी। फिलहाल EOW को इसकी अनुमति नहीं मिल सकी है। मामला शासन स्तर पर पेंडिंग है।
समझें क्या होता है परिवाद
कई बार फरियादी की शिकायत के बाद भी पुलिस आरोपी व्यक्ति या मामले में FIR दर्ज नहीं करती है। ऐसे में फरियादी कोर्ट के माध्यम से मामला दर्ज करवा सकता है। इसे परिवाद या इस्तिगासा भी कहा जाता है।
ऐसे मामलों में कोर्ट देखता है कि शिकायत में कितना दम है या फरियादी के पास अपनी बात साबित करने के लिए क्या सबूत है। इसके बाद कोर्ट को लगता है तो वह पुलिस को FIR दर्ज करने का निर्देश देता है।
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