22 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद इंदौर में पदस्थ एसीपी विवेक सिंह चौहान को राष्ट्रपति पुलिस वीरता पदक मिलने का रास्ता आखिरकार साफ हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने मेरिट के आधार पर उनके पक्ष में फैसला सुनाते हुए केंद्र सरकार की अपील खारिज कर दी। इससे पहले वह मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की डबल बेंच में भी केस जीत चुके थे।
2003 की मुठभेड़ में दिखाया था अदम्य साहस
24 जून 2003 को ग्वालियर जिले के घाटीगांव थाना क्षेत्र के डांडाखिड़क जंगल में हुई मुठभेड़ में तत्कालीन एसआई विवेक सिंह ने अदम्य साहस दिखाया था। खूंखार डकैतों को घेरकर उन्होंने अपने साथी होमगार्ड के साथ दो डकैतों को मार गिराया। इस दौरान वे खुद भी गंभीर रूप से घायल हुए थे। इस बहादुरी पर राज्य सरकार ने उन्हें राष्ट्रपति पुलिस वीरता पदक के लिए अनुशंसा भेजी थी।
समयसीमा के विवाद में अटकी थी फाइल
राज्य सरकार की सिफारिश के बावजूद केंद्र सरकार ने प्रस्ताव पर कार्रवाई नहीं की, यह कहते हुए कि फाइल समयसीमा में नहीं पहुंची। इसके बाद विवेक सिंह ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में याचिका दायर की। 9 जनवरी 2025 को हाईकोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया और पदक देने के निर्देश दिए।
सुप्रीम कोर्ट से भी मिली जीत
केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन सीजेआई बीआर गवई, जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस एवी अंजरिया की बेंच ने अपील खारिज करते हुए अफसर के पक्ष में फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब एक महीने के भीतर राष्ट्रपति पुलिस वीरता पदक दिए जाने की प्रक्रिया पूरी होगी।
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22 साल बाद मिला हक
एसीपी विवेक सिंह की ओर से सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील मृगेंद्र सिंह, जयदीप कौरव और शांभवी श्रीवास्तव ने पैरवी की। लंबे समय से चल रही इस कानूनी जंग के बाद अब बहादुरी का सम्मान पाने का उनका सपना पूरा होने जा रहा है।
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