मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति विवेक रूसिया और बिनोद कुमार द्विवेदी की खंडपीठ ने शिक्षाकर्मी शिक्षकों को नियमित नगर निगम कर्मचारियों के समान लाभ पाने के अधिकार को बरकरार रखा है। हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि 1998-99 में नगरपालिका नियमों के तहत शुरू में नियुक्त और बाद में राज्य शिक्षा सेवा में विलय किए गए शिक्षक अपनी प्रारंभिक नियुक्ति तिथि से पेंशन सहित सभी सेवा लाभों के हकदार हैं। गौरतलब है कि अदालत ने नगरपालिका द्वारा नियमित नगरपालिका कर्मचारियों और शिक्षाकर्मियों के बीच अंतर करने के तर्क को खारिज कर दिया, क्योंकि1998 के नियमों के तहत नियुक्ति प्रक्रियाओं और सेवा शर्तों में कोई अंतर नहीं पाया गया।
क्या है पूरा मामला?
मामला वर्ष 1998-99 में की गई नियुक्तियों से जुड़ा है, जब प्रतिवादियों को मुख्य नगरपालिका अधिकारी, नगर पालिका परिषद, मंदसौर द्वारा शिक्षाकर्मी ग्रेड-I के रूप में नियुक्त किया गया था। उनकी नियुक्तियां मध्य प्रदेश नगरपालिका शिक्षाकर्मी (भर्ती तथा सेवा शर्तें) नियम, 1998 द्वारा शासित थीं। हालांकि उन्हें शुरू में 1000-30-1600 रुपए के वेतनमान में नियुक्त किया गया था, लेकिन तीन साल की परिवीक्षा के बाद उन्हें नियमित कर दिया गया।
12 साल की सेवा पूरी करने के बावजूद उन्हें नगर निगम शिक्षकों के लिए लागू नियमित वेतनमान से वंचित रखा गया। उन्हें अप्रैल 2007 से 4 से 8 हजार रुपए का वेतनमान मिला, लेकिन उन्होंने 1998 के नियम 7 के तहत 5 से साढ़े आठ हजार रुपए के लिए पात्रता का दावा किया। नगरपालिका ने उन्हें मकान किराया भत्ता, कर्मचारी बीमा और चिकित्सा सुविधा जैसे लाभ देने से भी साफ इनकार कर दिया। इसके अलावा 1998 से काम करने के बावजूद शिक्षाकर्मियों को 2005 में शुरू की गई अंशदायी पेंशन योजना में शामिल होने के लिए मजबूर किया गया।
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हाईकोर्ट का फैसला
- अपीलकर्ता नगरपालिका ने हाईकोर्ट में दलील दी कि 1998 के नियमों के तहत सभी लाभ प्रतिवादियों को पहले ही दिए जा चुके हैं। 2008 के नियमों के मुताबिक, शिक्षक नियमित नगरपालिका कर्मचारी नहीं थे, बल्कि राज्य सरकार के कर्मचारी थे।
- हाईकोर्ट ने कहा कि विलय के बाद ये शिक्षक राज्य सरकार के कर्मचारी बन गए हैं और उनकी सेवाओं को उनकी प्रारंभिक नियुक्ति तिथि से माना जाना चाहिए। कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि शिक्षक अपनी प्रारंभिक नियुक्ति तिथि से पेंशन लाभ सहित सभी लाभों के हकदार हैं, क्योंकि अब वे सरकारी शिक्षकों की तरह स्कूल शिक्षा विभाग के पूर्ण नियंत्रण में हैं।
- न्यायालय ने शिक्षकों के पूर्ण-सेवा लाभ के अधिकार की रक्षा करते हुए निचली अदालत के आदेश की पुष्टि की। साथ ही रिट अपील को खारिज कर दिया।
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