संजय गुप्ता, INDORE. इंदौर नगर निगम ( Indore Municipal Corporation ) में नजर हटी और दुर्घटना घटी वाले हाल हो गए हैं, जहां नजर डालो घोटाला नजर आ रहा है। स्वच्छता में नंबर वन इंदौर, घोटालों में नंबर वन हो गया है। अब ताजा मामला विज्ञापन, होर्डिंग्स का है। यह घोटाला नगर निगम के अधिकारियों की नाक के नीचे किया है NS कंपनी ने।
यह है मामला
बीआरटीएस (बस रैपिड ट्रांसपोर्ट सिस्टम) पर विज्ञापन के लिए एआईसीटीएसएल (अटल इंदौर सिटी ट्रासंपोर्ट सर्विसेज लिमिटेड) ने 11.50 किमी के हिस्से में टेंडर कर होर्डिंग्स, यूनिपोल लगाने का टेंडर जारी किया। इसे NS कंपनी ने लिया। लेकिन कंपनी ने सारी शर्तों को ताक पर रखते हुए मनमर्जी से यूनिपोल, लॉलीपॉप (कियोस्क) लगाकर जमकर कमाई की और निगम के अधिकारी आंख मूंदे देखते रहे।
इस तरह की थी यूनिपोल की शर्तें
टेंडर शर्तें के अनुसार एनएस को 42 यूनिपोल लगाने की मंजूरी थी। इसमें बीआरटीएस को हिस्सों में बांटते हुए यूनिपोल की जगह और संख्या तय की गई। सबसे महंगे क्षेत्र विजयनगर, एलआईजी चौराहा, गीताभवन चौराहा, भवंरकुआं, शिवाजी वाटिका चौराहों पर कंपनी ने तय संख्या से ज्यादा यूनिपोल लगाए। इनका किराया महीने का औसतन पांच लाख रुपए प्रति यूनिपोल है। यानि कंपनी इसी से हर महीने करीब दो करोड़ रुपए कमा रही थी।
लॉलीपॉप की दूरी मनमर्जी से कम की
इसी तरह बीआरटीएस कॉरीडोर में हर 30 मीटर पर लॉलीपॉप लगाने की मंजूरी थी। लेकिन कंपनी ने इसमें भी खेल किया और जो महंगे क्षेत्र थे, वहां पर उसने यह दूरी 30 मटीर की जगह कहीं 10 तो कहीं 15 मीटर कर ज्यादा संख्या में लॉलीपॉप लगाए। कुल उसे 750 लॉलीपाप लगाने की मंजूरी थी लेकिन इसे तय संख्या से ज्यादा लगाया गया। हालांकि अभी भंवरकुआं और निरंजनपुर पर काम होने के चलते उसे कुछ हटाने पड़े, लेकिन इसके पहले कंपनी लगातार शर्तों को ताक पर रखकर जमकर माल कूटा।
पांच साल के लिए लिया टेंडर
कंपनी ने साल 2019 में यह टेंडर लिया था। पहले यह तीन साल के लिए था और बाद में इसे हर साल सशर्त एक-एक साल और बढाने के लिए था, जो अब खत्म हो चुका है। वहीं शर्तों के अनुसार एआईसीटीएसएल को यह पात्रता थी कि शर्तों का पालन नहीं करने पर वह टेंडर निरस्त कर सकती थी, लेकिन निगम अधिकारियों ने इस ओर झांसा तक नहीं।
नगर निगम का ही होल्ड है एआईसीटीएसएल पर
यह घोटाला भी नगर निगम से ही जुड़ा हुआ है। क्योंकि इस कंपनी के प्रमुख महापौर होते हैं और एमडी निगमायुक्त होते हैं। सीईओ भी निगमायुक्त ही किसी अपर आयुक्त को नियुक्ति करते हैं, जो अभी मनोज पाठक है। कुछ साल पहले तक इसमें सीईओ की नियुक्ति कलेक्टर करते थे, लेकिन बाद में यह अधिकार निगमायुक्त को हो गए, वह एमडी हो गए और कलेक्टर की भूमिका मात्र डायरेक्टर की रह गई।