संजय गुप्ता@INDORE. इंदौर नगर निगम ( Indore Municipal Corporation ) में रिमूवल गैंग को आर्मी वर्दी ( Removal Gang Army Uniform ) पहनाने के पीछे ग्वालियर निगम में किए गए प्रयोग का उदाहरण दिया गया। लेकिन किसी ने इसमें झांका ही नहीं कि आर्मी ने वहां कड़ी आपत्ति ली थी और कलेक्टर कौशलेंद्र सिंह को पत्र लिखा था। इसके बाद वहां से आर्मी वर्दी कब की वापस हो चुकी है। अब विवादों के बाद महापौर पुष्यमित्र भार्गव ( Mayor Pushyamitra Bhargava ) ने बयान जारी किया है कि नगर पालिक निगम इंदौर द्वारा एक रूपता, अनुशासन के लिए नगर निगम रिमूवल टीम को दी गई विशेष प्रकार की वर्दी पहनने से यदि पूर्व सैनिकों की भावना आहत होती है तो वर्दी में जो भी आवश्यक चेंजेस की आवश्यकता होगी वो किए जाएंगे। द सूत्र ने प्रमुखता से बताया था कि यह आर्मी वर्दी नियमों के विरूद्ध है।
पठानकोट हमले के बाद पूरे देश में बैन
सबसे बड़ी बात इसी पत्र में आर्मी ने साफ किया था कि दो जनवरी 2016 को कुछ आतंकवादियों ने यही वर्दी पहनकर हमला किया था, जिसके बाद पूरे देश में इसे लेकर सख्त आदेश है। इसका उपयोग अन्य व्यक्ति नहीं कर सकता है। इसके बाद तत्कालीन कलेक्टर कौशलेंद्र सिंह ने इसे वहां से हटवा दिया था।
जिस ग्वालियर का हवाला दे रहे, वहां आर्मी की आपत्ति के बाद हट चुकी वर्दी
ग्वालियर में यह प्रयोग एक से दो महीने मुश्किल से चला। इसे लेकर आर्मी ऑफिस ने सीधे कलेक्टर (कौशलेंद्र सिंह) को पत्र लिख दिया और इसे तत्काल बंद करने के लिए कहा गया। इसी पत्र में बताया कि पठानकोट हमले के बाद से ही इस वर्दी के अन्य व्यक्ति द्वारा पहनने पर रोक है। ग्वालियर जिला सैनिक कल्याण बोर्ड जिसमें रिटायर आर्मी अधिकारी होते हैं, उन्होंने भी इस पर पत्र लिखकर ग्वालियर में आपत्ति ली थी। इसके बाद अब ग्वालियर में इसे पहनना बंद है।
पहनना तो दूर, कपड़ा बेचना और सिलने पर भी रोक
पठानकोट हमले में आतंकियों द्वारा आर्मी वर्दी का उपयोग करने के बाद सख्त आदेश हुए। जिला सैनिक कल्याण बोर्ड इंदौर के कैप्टन आरडी शर्मा ने द सूत्र को बताया कि पहनना तो दूर इसका कपड़ा भी कोई नहीं बेच सकता और ना ही टेलर ड्रेस बना सकता है। आर्मी से जो ऑथराइज्ड डीलर होते हैं वहीं यह कपड़ा बेचता है और तय टेलर ही यह वर्दी बना सकता है। साथ ही इस वर्दी के कपड़े और बनाए जाने का भी पूरा रजिस्टर मेंटेन रहता है कि किसने खरीदा और किसने यूनिफार्म बनवाई।
यह तो गलत है, हम जवान तो शहीद होने के लिए तैयार रहते हैं
रिटायर कर्नल व जिला सैनिक कल्याण बोर्ड इंदौर के पूर्व प्रमुख राकेश विरमानी कहते हैं कि यह क्या हो रहा है? यह वर्दी हम सभी की शान है, इसे पहनकर हम शहादत के लिए भी तैयार रहते हैं। जब इसे पहनकर आर्मी निकलती है तो वह गर्व करती है, अब क्या कोई भी पहनकर इसे निकलेगा। यह बहुत ही गलत है, आर्मी वर्दी को लेकर साफ नियम और आदेश है, इसे वापस लिया जाना चाहिए।
क्या हुआ था पठानकोट में
दो जनवरी 2016 की अल सुबह लगभग साढ़े तीन पर भारतीय सेना की वर्दी पहने 6 बंदूकधारी उच्च सुरक्षा घेरा तोड़ते हुए पठानकोट वायु सेना केंद्र की सीमा में घुस गए। हमलावर अपने साथ ग्रेनेड, 51 मिमि मोर्टार, एके राइफले और जीपीएस उपकरण ले आए थे। इस मुठभेड़ में हमारे तीन सुरक्षाकर्मी शहीद हुए और चार हमलावर भी मार गिराए गए।
आईपीसी धारा में भी सजा, जुर्माना
इसके साथ ही आईपीसी की धारा 140 में आर्मी वर्दी को पहनना प्रतिबंधित है और इसके उल्लंघन में तीन माह की सजा और 500 रुपए के जुर्माने तक का प्रावधान है।
महापौर और निगमायुक्त ने बताए दो कारण, दोनों ही नहीं पचे
महापौर पुष्यमित्र भार्गव और निगमायुक्त शिवम वर्मा दोनों ने ही इसे लागू करने के पीछे कारण बताया कि इससे अनुशासन आएगा और दूसरा मौके पर विवाद कम होंगे। साथ ही कहा कि आपत्ति आएगी तो देखेंगे और विशलेषण कर बदलाव करेंगे। जरूरत हुई तो नाम पटि्टका लगाएंगे। वहीं अब महापौर का बयान आया है कि नगर पालिक निगम इंदौर द्वारा एक रूपता, अनुशासन के लिए नगर निगम रिमूवल टीम को दी गई विशेष प्रकार की वर्दी पहनने से यदि पूर्व सैनिकों की भावना आहत होती है तो वर्दी में जो भी आवश्यक चेंजेस की आवश्यकता होगी वो किए जाएंगे। दरअसल, वर्दी पहनने से ही अनुशासन आएगा यह जरूरी नहीं है, कोई भी ड्रेस कोड लागू किया जा सकता था। वहीं रही बात विवाद की तो इसके लिए रिमूवल गैंग के साथ पुलिस और कार्यपालिक मजिस्ट्रेट होते हैं। निगम का जिम्मा लॉ एंड आर्डर किसी नियम बुक में नहीं है।
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