इंदौर के एमवाय अस्पताल में दूसरे बच्चे की भी मौत, क्यों न गैर इरादतन हत्या का केस दर्ज हो?

एमवाय अस्पताल में पिछले दो दिनों में दो बच्चों की मौत हो चुकी है। पता चला कि पेस्ट कंट्रोल ही नहीं करवाया गया है। वहीं, इसको लेकर अस्पताल प्रबंधन ने दावा किया है कि बच्चों की मौत चूहे के काटने से नहीं, बल्कि संक्रमण (इंफेक्शन) से हुई है।

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Vishwanath Singh
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Sourabh889
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इंदौर के एमवाय अस्पताल (MYH) के एनआईसीयू (NICU) में भर्ती एक और नवजात की बुधवार को मौत हो गई। सोमवार को चूहों ने उसका शरीर कुतर दिया था। इससे पहले मंगलवार को भी एक बच्ची ने दम तोड़ दिया था। लगातार दो नवजातों की मौत से अस्पताल प्रबंधन पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। कानून विशेषज्ञों का कहना है कि क्यों ना एमजीएम डीन डॉ. अरविंद घनघोरिया और एमवायएच अधीक्षक डाॅ. अशोक यादव पर गैर इरादतन हत्या का केस दर्ज किया जाए। 

मौत पर उठे सवाल, प्रबंधन ने दिया यह तर्क

एमवाय अस्पताल में पिछले दो दिनों में दो बच्चों की मौत हो चुकी है। जिसमें मैनेजमेंट की गंभीर लापरवाही सामने आई है। पता चला कि पेस्ट कंट्रोल ही नहीं करवाया गया है। वहीं, इसको लेकर अस्पताल प्रबंधन ने दावा किया है कि बच्चों की मौत चूहे के काटने से नहीं, बल्कि संक्रमण (इंफेक्शन) से हुई है। डॉक्टरों का कहना है कि दोनों बच्चे पहले से ही कमजोर थे और गंभीर हालत में भर्ती किए गए थे। हालांकि, परिजन सवाल उठा रहे हैं कि आखिर NICU जैसे संवेदनशील वार्ड में चूहे कैसे पहुंचे?

कार्रवाई और विवाद

  • दो नर्सिंग ऑफिसर सस्पेंड।

  • अन्य स्टाफ को शोकॉज नोटिस।

  • चिकित्सा शिक्षा विभाग ने डीन से स्पष्टीकरण मांगा।


नर्सिंग ऑफिसर्स में आक्रोश है। उनका कहना है कि इसमें सीधे तौर पर उनका कोई दोष नहीं, असली जिम्मेदार वरिष्ठ अफसरों पर कार्रवाई होनी चाहिए।

वकील ने कहा- गैर इरादतन हत्या को केस हो

 पंकज वाधवानी (सीनियर एडवोकेट) ने बताया कि ऐसे मामलों में संबंधितों पर गैर इरादतन हत्या का केस दर्ज होना चाहिए। इस तरह केसों में भले ही संबंधित जिम्मेदारों को आशय भले ही किसी को मारने का न हो लेकिन यह घोर लापरवाही की श्रेणी में आता है।

चूहों का गढ़ बना अस्पताल परिसर

एमवाय अस्पताल से सटे चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय, कैंसर अस्पताल, टीबी अस्पताल और चेस्ट सेंटर में चूहों की भरमार है।

  • बारिश के बाद झाड़ियों और बिलों में पानी भरने से चूहे अब वार्डों में दाखिल हो रहे हैं।

  • मरीजों के परिजन खाद्य सामग्री वार्ड तक ले आते हैं, जिससे चूहों को भरपूर भोजन मिलता है और उनका ठिकाना अस्पताल ही बन गया है।

खाना नहीं मिलता तो इंसानी अंग कुतर देते हैं

महू वेटरनरी कॉलेज के प्रो. डॉ. संदीप नानावटी का कहना है कि अस्पतालों में चूहों को मेडिसिन और ग्लूकोज से भी एनर्जी मिलती है। इसी वजह से उनकी ब्रीडिंग क्षमता बढ़ जाती है। जब भोजन नहीं मिलता तो वे सामान और इंसानी अंग तक कुतर देते हैं।

चूहों की आबादी बढ़ गई है

अस्पताल परिसर में पहले सैकड़ों स्टाफ क्वार्टर थे। नई इमारतें बनने के लिए इन्हें तोड़ा गया, जिससे चूहों के ठिकाने खत्म हो गए और संख्या घटी। लेकिन हाल के वर्षों में इनकी आबादी तेजी से बढ़ गई है। 

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अस्पताल प्रबंधन अब उठा रहा ये कदम

  • NICU में चूहों की आवाजाही रोकने के लिए प्लाईवुड से रास्ते बंद किए गए।

  • हर 15 दिन में पेस्ट कंट्रोल करने का दावा।

  • अस्पताल में खाना ले जाने पर रोक लगाने की तैयारी।

पहले भी हो चुका बड़ा अभियान

  • 1994 में कलेक्टर डॉ. सुधीरंजन मोहंती ने “चूहा मारो अभियान” चलाया था। तब 10 दिन तक अस्पताल खाली कराया गया और करीब 12 हजार चूहे मारे गए।

  • 2014 में कमिश्नर संजय दुबे के निर्देश पर पेस्ट कंट्रोल से ढाई हजार चूहे मरे थे।

मौत पर उठे सवाल, डीन ने दी सफाई

अस्पताल के डीन डॉ. अरविंद घनघोरिया ने बताया कि मृतक नवजात का वजन मात्र 1.2 किलो था, हीमोग्लोबिन बेहद कम था और जन्म से ही कई जटिलताएँ थीं। उसे वेंटिलेटर पर रखा गया था। डीन ने स्पष्ट किया कि “चूहे के काटने का घाव बहुत छोटा था, मौत का कारण सेप्टिसीमिया (इन्फेक्शन) और जन्मजात समस्याएँ हैं। डीन ने कहा कि चूहों की सक्रियता की जानकारी समय पर न देने और सतर्कता में चूक के चलते कंपनी व स्टाफ पर कार्रवाई की गई।

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