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इंदौर पुलिस केस बनाने में कई तरह की कानूनी चूक करती है। इसका एक ताजा उदाहरण जिला कोर्ट के एक आदेश से सामने आया है। आर्म एक्ट का केस बनाने में मूल नियमों का ही पालन नहीं किया गया। ना जब्ती ठीक से दिखाई ना मालखाने में रजिस्टर मेंटेन किया। इसके चलते आरोपी जिला कोर्ट से साफ बरी हो गया।
यह है केस...
पुलिस थाना एरोड्रम ने 23 दिसंबर 2012 को नरेंद्र पिता अर्जुन प्रजापत के खिलाफ आर्म एक्ट का केस बनाया। वह संगमनगर बगीचे के पास देसी पिस्टल व दो कारतूस रखने के आरोप में गिरफ्तार हुआ। पुलिस ने कोर्ट में केस पेश किया। इसमें पुलिस अधिकारी निहाल के साथ ही साक्षी महेश व अन्य अशोक परमार व ललित जोशी को भी गवाह के तौर पर पेश किया।
यह सारी चूक कर गई पुलिस
आरोपी की तरफ से अधिवक्ता केपी माहेशवरी ने जिला कोर्ट ट्रायल में पुलिस से हुई चूक को उजागर किया। गवाहों से प्रति परीक्षण किया। इसमें साक्षी महेश ने आरोपी नरेंद्र को पहचानने से ही इंकार कर दिया। साक्षी महेश ने कहा कि पुलिस ने उनसे इस बारे में कोई पूछताछ नहीं की ना ही बयान लिए।
पुलिस ने जब्त पिस्टल को मालखाने में जमा कराने की बात कही लेकिन रजिस्टर में इंट्री ही नहीं मिली। जब्त सामग्री पर पंचसाक्षी के सामने सील, चिपड़ी भी नहीं लगी। इसके चलते पूरा केस ही संदेहास्पद हो गया। इस पर जिला कोर्ट न्यायाधीश सौरभ गोस्वामी ने आरोप खारिज कर दिए। केस में माहेशवरी के साथ ही प्रतीक माहेशवरी, पवन तिवारी, अमृता सोनकर, पुनीत माहेशवरी, सुनील यादव, सुनील हिरवे अधिवक्ताओं ने भी पैरवी की।
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