Indore liquor scam : इंदौर में 100 करोड़ के शराब घोटाले को ठेकेदार-अफसरों ने कैसे दिया अंजाम

मध्यप्रदेश के इंदौर में हुए 100 करोड़ के शराब घोटाले में ठेकेदारों और अधिकारियों की सांठगांठ की द सूत्र ने की पड़ताल। ठेकेदार कैसे तीन साल तक आबकारी को लगाते रहे चूना, पढ़िए बैंक चालान और डिमांड नोट के सहारे कैसे चलता था गोलमाल का खेल...

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Jitendra Shrivastava
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संजय शर्मा. BHOPAL. Indore liquor scam : प्रदेश में पांच साल पुराना एक्साइज घोटाला एक बार फिर चर्चा में आ गया है। इंदौर में  शराब ठेकेदारों  ने अधिकारियों की साठगांठ से आबकारी विभाग को करोड़ों का चूना लगाया था। यह मामला साल 2018 में पहली बार सामने आया था। तब विभागीय स्तर पर जांच शुरू हुई और फिर मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। कुछ अधिकारियों पर फौरी कार्रवाई भी हुई, लेकिन यह सामने नहीं आ सका। आखिर करोड़ों का फर्जीवाड़ा किसके इशारे पर हुआ। सरकार के करोड़ों रुपए डकारने वाले शराब ठेकेदारों के हमराज कौन-कौन से अधिकारी थे। आबकारी मुख्यालय में करीब 100 करोड़ की हेराफेरी की जांच अब ईडी ने अपने हाथ में ले ली है। इसके साथ ही प्रदेश का चर्चित शराब घोटाला एक बार फिर गरमा गया है। ईडी शराब घोटाले में प्रत्यक्ष रूप से शामिल ठेकेदारों के अलावा चालान के जरिए राशि जमा कराने वाले तत्कालीन अधिकारियों और मुख्यालय से उन्हें संरक्षण देने वाले अफसरों की भूमिका को भी खंगाल रही है। 

तीन साल तक किसी को भनक तक नहीं लगी

इंदौर में साल 2015 से 2018 के बीच शराब ठेकेदारों ने कैसे विभाग को करोड़ों रुपए का चूना लगाया इसकी चर्चा हर जगह हो रही है। घोटाले की रकम भी 80 से 100 करोड़ तक होने का अनुमान लगाया जा रहा है, लेकिन आखिर ये घोटाला कैसे हुआ। कैसे तीन साल तक विभाग के अधिकारियों को करोड़ों की हेराफेरी की भनक तक नहीं लगी। इन तमाम सवालों का जवाब हर कोई जानना चाहता है। प्रदेश के सबसे बड़े शराब घोटाले से जुड़े ऐसे ही सवालों के जवाब तलाशने के लिए 'द सूत्र' की टीम ने इसकी पड़ताल की। आबकारी विभाग के निचली रैंक से लेकर सहायक आयुक्त-उपायुक्त रैंक के अधिकारियों से भी बात की। कुछ ठेकेदारों से भी वेयर हाउस से शराब उठाने के सिस्टम को जाना तो इस घोटोले से जुड़े कई रहस्य सामने आ गए। 

घोटाले का औजार बने 194 बैंक चालान

साल 2015 में शराब ठेके नीलाम होने के बाद से साल 2018 के बीच सब सामान्य चल रहा था। इसी दौरान शराब की खपत और ठेकेदारों द्वारा जमा कराए जाने वाली एक्साइज ड्यूटी के राजस्व में बड़ा अंतर दिखने पर आबकारी मुख्यालय हरकत में आया। इस मामले में गुपचुप तरीके से जांच कराई गई। जांच में 2015 से 2018 के बीच 194 चालानों में गड़बड़ी पकड़ में आ गई। चालान हजारों रुपए के थे, लेकिन उन पर शराब लाखों रुपए की उठाई गई थी। मुख्यालय की जांच में इस अवधि में इंदौर में तैनात रहे अधिकारियों की भूमिका संदेह के घेरे में आने पर उन्हें निलंबित भी किया गया, लेकिन उसके बाद जांच मुख्यालय और मंत्रालय के बीच फाइलों में ही दबी रह गई। 

आबकारी सिस्टम को बनाया जरिया

सरकार को करोड़ों का चूना लगाने पर 2018 के बाद कैसे लगी लगाम यह भी जान लीजिए। दरअसल शराब दुकानों को आबकारी विभाग के वेयरहाउस से ही शराब उपलब्ध कराई जाती है। यहां विभाग के अधिकारी तैनात होते हैं। यहां लाइसेंसी ठेकेदार के अधिकृत कर्मचारी ही शराब उठाने पहुंचते हैं। इनके पास डिमांड नोट होता है जिसमें शराब की वैरायटी और मात्रा दर्ज होती है। साथ ही शराब की कीमत का बैंक चालान भी जमा करना होता है। दोनों फॉर्म जमा होने पर माल ठेकेदार को मिल जाता है। वेयर हाउस से शराब उठाने की व्यवस्था अब भी वैसी ही है, लेकिन भुगतान का तरीका कुछ बदल गया है। यानी अब चालान पहुंचने पर पोर्टल पर एंट्री होने लगी है, क्योंकि ट्रेजरी का सिस्टम ऑनलाइन हो गया है।

यहां से जमी शराब घोटाले की काई

शराब ठेकेदारों ने तीन साल तक कैसे आबकारी के राजस्व पर ठेकेदारों ने डाका डाला यह भी बताते हैं। माल उठाने पर ठेकेदार को बैंक चालान के जरिए एक्साइज ड्यूटी चुकानी होती है। जिस अवधि में इंदौर में शराब घोटाले को अंजाम दिया गया तब आबकारी की भुगतान व्यवस्था ऑनलाइन नहीं थी। ट्रेजरी से जमा राशि का मिलान अधिकारियों को करना होता था। पोर्टल न होने से यह पता नहीं चलता था कब किस ठेकेदार ने कितनी राशि के चालान से कितना माल उठाया। इसी का फायदा इंदौर के शराब ठेकेदारों ने उठाया और अधिकारियों ने इसमें उनका साथ दिया। अब ईडी काट छांट वाले ऐसे ही 194 बैंक चालानों की पड़ताल कर रही है। 

अधिकारियों के इशारे पर हुआ खेला

हजारों के बैंक चालान पर लाखों की शराब उठाने के खेल में आबकारी अफसर कैसे शामिल थे, इसे भी समझाते हैं। आबकारी विभाग में राजस्व कलेक्शन की निर्धारित व्यवस्था है। ठेकेदार जिन चालानों को जमा करके शराब उठाते हैं उनका मिलान आबकारी अधिकारियों द्वारा ट्रेजरी रिकॉर्ड से किया जाता है। 2015 से 2018 के बीच इंदौर में संबंधित अधिकारियों ने चालान और जमा राशि का मिलान ही नहीं किया या फिर खानापूर्ती करते रहे। यानी अधिकारी जानबूझकर चालान और वास्तविक जमा राशि पर पर्दा डालते रहे और विभाग से छिपाते रहे। तीन सालों में जब चालान और जमा राशि में करोड़ों का अंतर हो गया तब मुख्यालय में हड़कंप मच गया।

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