मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले स्थित कूनो नेशनल पार्क (केएनपी) में बुधवार को अंतर्राष्ट्रीय चीता दिवस के अवसर पर दो चीतों, वायु और अग्नि, को जंगल में छोड़ा गया। कूनो के मुख्य वन संरक्षक और डायरेक्टर, लायन प्रोजेक्ट, उत्तम कुमार शर्मा ने बताया कि यह दोनों चीते पूरी तरह स्वस्थ हैं। उत्तम कुमार शर्मा ने बताया कि वायु और अग्नि को कूनो के परोंद वन क्षेत्र में छोड़ा गया है। यह क्षेत्र अहेरा पर्यटन जोन में आता है, जिससे पर्यटक सफारी के दौरान इन चीतों को देख सकते हैं। कूनो नेशनल पार्क में इस समय कुल 24 चीते हैं, जिनमें 12 शावक शामिल हैं। पहले ये चीते बाड़ों में रखे गए थे।
चीता वायु और अग्नि
भारत में लाए गए चीतों के लिए एक ऐतिहासिक दिन करीब आ चुका है। कूनो नेशनल पार्क में रह रहे दो नर चीतों, वायु और अग्नि को आखिरकार खुले जंगल में आजादी मिल जाएगी। 4 दिसंबर, अंतर्राष्ट्रीय चीता दिवस के अवसर पर इन चीतों को कूनो के बाड़े से बाहर छोड़ा जाएगा। यह निर्णय चीता प्रोजेक्ट के तहत लिया गया है और इस कदम से इन अद्भुत जानवरों के भविष्य के लिए एक नई शुरुआत होगी।
कूनो नेशनल पार्क से खुशखबरी... चीता 'निर्वा' ने 4 शावकों को दिया जन्म
वायु-अग्नि को मिलेगा जंगल में आजादी
कूनो नेशनल पार्क के प्रबंधन ने घोषणा की कि 4 दिसंबर, अंतर्राष्ट्रीय चीता दिवस के मौके पर वायु और अग्नि को खुले जंगल में छोड़ा जाएगा। इन चीतों को इस दिन से स्वतंत्रता प्राप्त होगी और वे अपनी प्राकृतिक गति में शिकार करने के लिए जंगल में स्वतंत्र रूप से विचरण करेंगे।
भारत में चीतों का स्वागत
चीतों को विदेश से लाकर भारत में कूनो नेशनल पार्क में बसाया गया था। अब उनका जंगल में छोड़ना एक महत्वपूर्ण कदम है, जो भारतीय पर्यावरण और वन्यजीव संरक्षण के लिए एक नई दिशा देगा। इस तरह से भारत में चीतों का स्वागत और उनके अस्तित्व की नई शुरुआत होने जा रही है।
मॉनिटरिंग के लिए तैनात की जाएगी टीम
इन चीतों की निगरानी के लिए विशेष टीमें तैनात की जाएंगी। ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे जंगल में सुरक्षित रहें और अपना जीवन यापन करने में सक्षम रहें। इसके साथ ही, इन चीतों के जंगल में फैलने का संभावित दायरा मध्य प्रदेश से राजस्थान और उत्तर प्रदेश तक हो सकता है।
चीता प्रोजेक्ट में महत्वपूर्ण विकास
चीता स्टीयरिंग कमेटी के अनुसार, वायु और अग्नि दोनों चीतों को जंगल में छोड़ने का निर्णय लिया गया है। इन चीतों की फिटनेस और खुले जंगल में शिकार करने की क्षमता को ध्यान में रखते हुए इस कदम को उठाया गया है।
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