जबलपुर में ऐसा मामला सामने आया है जिसमें ग्रामीण क्षेत्र से आए एक मरीज को सरकारी अस्पताल रेफर होने के बाद भी शासकीय 108 एंबुलेंस ड्राइवर ने निजी अस्पताल में भर्ती कराया। क्योंकि इसके एवज में निजी अस्पताल से ड्राइवर को कमीशन मिलनी थी।
जबलपुर के स्वास्थ्य क्षेत्र में एक बार फिर मानवता को शर्मसार करने वाली घटना सामने आई है। डिंडोरी के खुशी राम पिता शिवचरण को जिला अस्पताल विक्टोरिया में इलाज के लिए लाया गया था। विक्टोरिया अस्पताल के डॉक्टरों ने मरीज की गंभीर स्थिति को देखते हुए उसे मेडिकल कॉलेज रेफर किया। लेकिन 108 एंबुलेंस चालक ने मरीज को private hospital मेडिजोन में पहुंचा दिया। ड्राइवर ने मरीज के परिजन को बताया कि इस अस्पताल में सर्व सुविधा युक्त सरकारी मेडिकल अस्पताल से भी अच्छा इलाज होता है। यह घटना 108 एम्बुलेंस और निजी अस्पतालों के मुनाफाखोरी के गठजोड़ को उजागर कर रही है।
स्वास्थ्य माफिया के चंगुल में ऐसे फंसाया गया मरीज
मेडिकल कॉलेज रेफर किए गए खुशी राम और उनके परिजनों को एंबुलेंस चालक ने रास्ते में मेडिकल कॉलेज की खामियां गिनानी शुरू कर दीं। उसने कहा कि मेडिकल कॉलेज में उपचार सुविधाएं बेहद सीमित हैं और मरीज को उचित देखभाल नहीं मिल पाएगी। इसके बाद उसने एक private hospital का सुझाव दिया, जहां इलाज 'बेहद सस्ते और अच्छे तरीके' से होने का दावा किया। मरीज के परिजन, जो पहले से ही तनाव में थे, चालक की बातों में आ गए। मजबूर होकर उन्होंने private hospital जाने का निर्णय लिया। लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि यह सिर्फ एंबुलेंस माफिया और अस्पताल प्रबंधन के बीच कमीशन का खेल है। अस्पताल ने भी मरीज के परिजनों को एक्सीडेंटल क्लेम दिलाने का लालच दिया पर उसके बाद 50 हजार रुपए का बिल थमा दिया।
बड़े पैमाने पर चल रहा है शहर में दलाली का खेल
यह घटना जबलपुर में स्वास्थ्य व्यवस्था के नाम पर चल रहे दलाली के एक बड़े नेटवर्क का हिस्सा है। सरकारी अस्पताल से रेफर किए गए मरीजों को private hospital में ले जाकर उनके इलाज के बाद उन्हें भारी भरकम बिल थमा दिया जाता है। इसके पीछे एंबुलेंस माफिया की अहम भूमिका होती है। वे मरीजों को सरकारी अस्पतालों में भर्ती होने से रोकने के लिए झूठे दावे करते हैं और निजी अस्पतालों तक पहुंचाने के लिए परिजनों को मनाते हैं। बदले में, private hospital उन्हें प्रति मरीज एक निश्चित कमीशन देता है। निजी अस्पताल भी दुर्घटना क्लेम और अन्य वाहनों से मरीजों को प्रलोभन देते हैं और आखिर में भारी भरकम बिल के सहारे लूटते हैं। खासकर ग्रामीण इलाकों से आए गरीब मरीज इस दलाली का सबसे बड़ा शिकार होते हैं।
पहले भी सामने आ चुके हैं ऐसे मामले
यह पहली बार नहीं है जब ऐसा मामला प्रकाश में आया है। जबलपुर में कुछ समय पहले एक सड़क दुर्घटना के घायलों को सरकारी अस्पताल की जगह private hospital में भर्ती किया गया था। उस घटना के बाद जिला कलेक्टर ने सख्त कार्रवाई की थी। बावजूद इसके, एंबुलेंस माफिया और निजी अस्पतालों के गठजोड़ पर अंकुश नहीं लगाया जा सका है। पिछली कार्रवाई के बाद भी माफिया में प्रशासन की दहशत ना होने से यह लग रहा है कि प्रशासन की कार्रवाई सतही स्तर पर हो रही है, जो इन माफियाओं के लिए कोई स्थायी डर पैदा करने में असफल रही है।
अपर कलेक्टर के आदेश पर सीएमएचओ करेंगे जांच
इस मामले में मीडिया की सक्रियता के बाद जिला प्रशासन हरकत में आया। अपर कलेक्टर नाथूराम गोडसे ने बताया कि उन्होंने घटना का संज्ञान लिया है और सीएमएचओ डॉ. संजय मिश्रा को तुरंत जांच के आदेश दिए हैं। सीएमएचओ संजय मिश्रा ने भी यह माना कि इस तरह की शिकायतें उनके पास भी बार-बार आती है। बीते दिनों सिहोरा में हुई घटना के बाद एक जांच कमेटी भी गठित की गई है। जो पिछले दिनों निजी अस्पतालों तक 108 एंबुलेंस के द्वारा पहुंच गए मरीजों की लिस्ट पर जांच कर रही है। जिसमें मरीजों से यह पता किया जा रहा है कि वह निजी अस्पताल अपनी मर्जी से पहुंचे थे या किसी के दबाव में। जमीनी स्तर पर अगर देखा जाए तो अब तक इस नेटवर्क को ध्वस्त करने के लिए विभाग के द्वारा कोई कड़ी कार्यवाही नहीं की गई और यह बात समझ से परे है। अब यह देखना होगा कि इस मामले में जिम्मेदार कितनी तेजी और गंभीरता से कार्रवाई करते है।
व्यवस्था में सुधार के लिए सख्त कदम की जरूरत
यह घटना केवल एक मरीज और उसके परिजनों को ठगने की नहीं है, बल्कि यह स्वास्थ्य व्यवस्था के नाम पर हो रहे व्यापक भ्रष्टाचार का उदाहरण है। सरकार और प्रशासन को यह सुनिश्चित करना होगा कि एंबुलेंस माफिया और निजी अस्पतालों के बीच चल रहे इस दलाली के खेल पर पूरी तरह से रोक लगाई जाए। साथ ही, यह भी जरूरी है कि एंबुलेंस सेवाओं की निगरानी बढ़ाई जाए और दोषी पाए जाने वाले एंबुलेंस संचालकों सहित मुनाफाखोर निजी अस्पतालों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई हो।
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