जबलपुर से स्वतंत्रता संग्राम के अंतिम योद्धा का निधन, राजकीय सम्मान के साथ दी अंतिम विदाई

जबलपुर ने अपने अंतिम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कोमलचंद जैन को खो दिया। वे महात्मा गांधी के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में सक्रिय रूप से शामिल थे। उनका जीवन त्याग और राष्ट्रसेवा का प्रतीक था। बुधवार को उन्हें राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई।

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Neel Tiwari
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मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर ने अपने अंतिम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कोमलचंद जैन को खो दिया। वे केवल आजादी के संघर्ष के साक्षी नहीं थे, बल्कि उसमें सक्रिय भूमिका भी निभाई थी। मंगलवार देर रात, लंबी उम्र और स्वाभाविक कारणों से उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन के साथ जबलपुर शहर ने अपने उस नायक को खो दिया, जिसने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह किया था। उनके जाने से शहर में गहरा शोक व्याप्त है। उनके परिवार, मित्रों और शुभचिंतकों के अलावा, राजनीतिक और सामाजिक संगठनों ने भी उनके निधन पर संवेदना व्यक्त की है।

भारत छोड़ो आंदोलन में निभाई थी अहम भूमिका

कोमलचंद जैन का जन्म एक राष्ट्रप्रेमी परिवार में हुआ था, जहां उन्होंने देश के प्रति समर्पण की शिक्षा पाई। मात्र 13 साल की उम्र में, जब अधिकतर बच्चे खेलकूद में व्यस्त होते हैं, उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने का साहस दिखाया। अगस्त 1942 में जब महात्मा गांधी ने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की घोषणा की, तो पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह भड़क उठा। जबलपुर भी इस आंदोलन का गवाह बना। इसी दौरान कोमलचंद जैन ने कमानिया गेट और फुहारा चौक पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने का प्रयास किया, जो ब्रिटिश सरकार के लिए सीधी चुनौती थी। अंग्रेजी पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और जेल भेज दिया। उनके साथ उनके दो बड़े भाई प्रेमचंद जैन और नेमचंद जैन भी इस आंदोलन में सक्रिय थे और उन्होंने भी जेल की यातनाएं झेली थीं। कोमलचंद जैन को 28 दिनों तक जेल में बंद रखा गया, जहां उन्हें कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। इतनी कम उम्र में जेल जाने के बावजूद, उनका हौसला कम नहीं हुआ और वे आजीवन राष्ट्रसेवा के प्रति समर्पित रहे।

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स्वतंत्रता के बाद भी जारी रखा राष्ट्रसेवा का संकल्प

भारत को 15 अगस्त 1947 को आजादी मिल गई, लेकिन कोमलचंद जैन के लिए यह केवल एक अध्याय का अंत नहीं था, बल्कि देश के पुनर्निर्माण की शुरुआत थी। स्वतंत्रता के बाद, उन्होंने समाजसेवा को अपना लक्ष्य बनाया और विभिन्न क्षेत्रों में योगदान दिया। उन्होंने शिक्षा, व्यापार और सामाजिक कल्याण के क्षेत्र में सक्रिय भागीदारी निभाई। उनकी सरलता और कर्तव्यनिष्ठा ने उन्हें एक आदर्श नागरिक बना दिया। वे कभी किसी सरकारी लाभ के पीछे नहीं भागे, न ही स्वतंत्रता सेनानी होने का कोई विशेषाधिकार लिया। वे मानते थे कि असली सेवा केवल कर्मठता और निष्ठा से की जा सकती है। उन्होंने अपने जीवन को सादगी, ईमानदारी और समाजसेवा के लिए समर्पित कर दिया।

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पारिवारिक विरासत और उत्तराधिकारी

स्वर्गीय कोमलचंद जैन अपने पीछे एक बड़ा परिवार छोड़ गए हैं। उनके दो बेटे शरद जैन और बसंत जैन हैं, जो पारिवारिक व्यवसाय को संभालते हैं। इसके अलावा, उनकी दो बेटियां, नाती-पोते और पोतियां भी हैं। परिवार में संस्कारों की जो परंपरा उन्होंने स्थापित की थी, उसे उनकी अगली पीढ़ी भी आगे बढ़ा रही है। उनके परिवार ने हमेशा समाजसेवा को प्राथमिकता दी है, जिसे कोमलचंद जैन ने अपने पूरे जीवनभर अपनाया। उनके जाने के बाद भी उनके परिवारजन उन्हीं मूल्यों को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उनके घर में आने वाले लोग अक्सर उनकी सादगी और राष्ट्रभक्ति की कहानियां सुनते थे, जो आज भी प्रेरणादायक हैं।

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राजकीय सम्मान के साथ हुआ अंतिम संस्कार

कोमलचंद जैन को 19 मार्च को राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी जाएगी। अंतिम संस्कार में प्रशासनिक अधिकारी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के परिजन, राजनीतिक और सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि भी शामिल हुए। यह क्षण केवल उनके परिवार के लिए नहीं, बल्कि पूरे जबलपुर शहर के लिए भी भावनात्मक रहा। उनके अंतिम दर्शन के लिए बड़ी संख्या में लोग उनके निवास पर पहुंचे। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री कोमल चंद जैन को राजकीय सम्मान के साथ रानीताल मुक्तिधाम में अंतिम विदाई दी गई।

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इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में अमर रहेगा योगदान

कोमलचंद जैन का जीवन संघर्ष, साहस और सेवा की मिसाल था। वे उन विरले स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे, जिन्होंने किशोर अवस्था में अपने सुनहरे दिन आजादी के संघर्ष में जेल में बिताए। उनका जीवन त्याग और निष्ठा का प्रतीक था, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।

उनके निधन के साथ जबलपुर ने अपने इतिहास का एक सुनहरा अध्याय खो दिया है। लेकिन उनकी कहानियां, उनके विचार और उनकी प्रेरणा सदैव जीवित रहेंगे। वे इतिहास के उन नायकों में से एक हैं, जो केवल किताबों तक सीमित नहीं रहते, बल्कि समाज में अपनी अमिट छाप छोड़ जाते हैं। जबलपुर की मिट्टी ने एक सच्चे सपूत को खो दिया, लेकिन उनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों को हमेशा प्रेरित करती रहेगी।

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