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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट।
मध्य प्रदेश में नर्सिंग कॉलेजों की मान्यता से जुड़े एक बड़े घोटाले में हाईकोर्ट ने बेहद कड़ा रुख अपनाया है। जस्टिस संजय द्विवेदी और जस्टिस अचल कुमार पालीवाल की डिवीजनल बेंच ने स्पष्ट कर दिया है कि अगर अगली सुनवाई तक इस मामले से जुड़ी जरूरी फाइलें पेश नहीं की गईं, तो जबलपुर स्थित मध्य प्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय (MPMSU) के कुलगुरु और भोपाल के नर्सिंग काउंसिल के चेयरमैन को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में उपस्थित होकर जवाब देना होगा। अदालत का यह आदेश राज्य सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन के लिए एक सख्त चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है, जो अब तक मामले को टालने की कोशिश कर रहे थे। क्योंकि हाईकोर्ट के पिछले आदेश के बाद भी अब तक जरूरी फाइलें कोर्ट के सामने पेश नहीं की गई है।
सीबीआई जांच में फंसे अयोग्य नर्सिंग कॉलेज
आपको बता दें कि लॉ स्टूडेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष और इस मामले में व्हिसल ब्लोअर अधिवक्ता विशाल बघेल की शिकायत के बाद इस घोटाले का खुलासा हुआ था। इस घोटाले की जड़ उन नर्सिंग कॉलेजों की मान्यता से जुड़ी है, जिन्हें सीबीआई जांच के दौरान अयोग्य पाया गया था। मध्य प्रदेश नर्सिंग रजिस्ट्रेशन काउंसिल (MPNRC) और मध्य प्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय (MPMSU) ने इन कॉलेजों को किस आधार पर मान्यता दी थी, इस पर लंबे समय से सवाल उठते रहे हैं।
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अब तक कोर्ट में पेश नहीं की गई फाइलें
हाईकोर्ट ने पहले ही निर्देश जारी कर इन कॉलेजों से जुड़ी सभी मूल फाइलें पेश करने को कहा था, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि कहीं नियमों का उल्लंघन कर इन संस्थानों को गैर-कानूनी तरीके से मान्यता तो नहीं दी गई। लेकिन अब तक ये फाइलें अदालत में पेश नहीं की गई हैं। सरकार की ओर से अधिवक्ता अभिजीत अवस्थी ने अदालत से और समय की मांग की, जिसे हाईकोर्ट ने स्वीकार तो किया, लेकिन सख्त चेतावनी देते हुए कहा कि यदि अगली सुनवाई में भी फाइलें पेश नहीं की जातीं, तो शीर्ष अधिकारियों को स्वयं अदालत में उपस्थित होकर जवाब देना होगा।
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नियमों में संशोधन पर भी कोर्ट ने मांगी जानकारी
हाईकोर्ट ने केवल नर्सिंग कॉलेजों की मान्यता से जुड़ी फाइलें ही नहीं, बल्कि उन नियमों में किए गए संशोधनों की मूल फाइल भी प्रस्तुत करने को कहा है, जिनके आधार पर यह मान्यता दी गई थी। अदालत यह जांचना चाहती है कि क्या इन संशोधनों को कानून के तहत निर्धारित उचित प्रक्रियाओं का पालन करते हुए किया गया था, या फिर नियमों में मनमाने तरीके से बदलाव कर कुछ विशेष कॉलेजों को अनुचित लाभ पहुंचाया गया। यदि अदालत को यह साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत मिलते हैं कि नियमों में बदलाव कानून के अनुसार नहीं हुए, तो यह मामला और भी गंभीर हो सकता है। इस स्थिति में संबंधित अधिकारियों के खिलाफ व्यक्तिगत रूप से कार्रवाई की संभावनाएं बढ़ जाएंगी।
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नर्सिंग काउंसिल को भी मिल सकता है निर्देश
हाईकोर्ट ने यह भी संकेत दिया है कि यदि अगली सुनवाई में फाइलें प्रस्तुत की जाती हैं, तो वह इंडियन नर्सिंग काउंसिल (INC) को इस मामले में हस्तक्षेप करने और आवश्यक निर्देश जारी करने का आदेश दे सकती है। इसका सीधा मतलब यह है कि अब इस घोटाले की गूंज न सिर्फ मध्य प्रदेश तक सीमित रहेगी, बल्कि इसका असर राष्ट्रीय स्तर पर भी देखा जा सकता है। भारतीय नर्सिंग परिषद देशभर में नर्सिंग शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित करने वाली सर्वोच्च संस्था है, और यदि यह घोटाला हाईकोर्ट के आदेश के जरिए उसके संज्ञान में आता है, तो वह देशभर में नर्सिंग शिक्षा से जुड़े नियमों की समीक्षा कर सकती है।
28 मार्च को होगी अगली सुनवाई, अनुपस्थिति पर होगी कड़ी कार्रवाई
हाईकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि 28 मार्च 2025 को होने वाली अगली सुनवाई तक यदि सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं करता, तो जबलपुर स्थित मध्य प्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलगुरु और भोपाल के चिकित्सा शिक्षा निदेशक को अदालत में उपस्थित होकर यह स्पष्ट करना होगा कि बार-बार दिए गए आदेशों का पालन क्यों नहीं किया गया। अदालत के इस आदेश से साफ है कि अब वह सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन की लापरवाही को और अधिक समय देने के मूड में नहीं है। यदि अधिकारी कोर्ट में संतोषजनक जवाब नहीं दे पाते और अनुपस्थित रहते हैं , तो उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू की जा सकती है, जिससे उन्हें व्यक्तिगत दंड का सामना भी करना पड़ सकता है।
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धीरे-धीरे खुल रहीं नर्सिंग घोटाले की परतें
मध्य प्रदेश में नर्सिंग कॉलेजों की मान्यता को लेकर लंबे समय से धांधली के आरोप लगते रहे हैं। कई कॉलेजों को बिना पर्याप्त सुविधाओं, योग्य शिक्षकों और आवश्यक बुनियादी ढांचे के मान्यता दी गई, जिससे नर्सिंग शिक्षा की गुणवत्ता पर बड़ा सवाल खड़ा हो गया। सीबीआई जांच में कई कॉलेज अयोग्य पाए गए थे, लेकिन इसके बावजूद उन्हें कैसे और किन नियमों के आधार पर मान्यता दी गई, यह अब तक एक बड़ा रहस्य बना हुआ है। हाईकोर्ट की इस सख्ती से साफ है कि अब इस घोटाले की परतें पूरी तरह से खुलने वाली हैं। यदि अदालत को पुख्ता सबूत मिलते हैं कि नियमों का उल्लंघन हुआ है, तो इसमें शामिल अधिकारियों, कॉलेज प्रबंधन और अन्य जिम्मेदार व्यक्तियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई तय मानी जा रही है।
अब 28 मार्च की सुनवाई पर टिकी नजरें
अब सभी की निगाहें 28 मार्च 2025 की अगली सुनवाई पर टिकी हैं। क्या सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन कोर्ट के सवालों के संतोषजनक जवाब दे पाएंगे, या फिर कुलगुरु और चिकित्सा शिक्षा निदेशक को व्यक्तिगत रूप से अदालत में पेश होना पड़ेगा। यदि अदालत के आदेशों का पालन नहीं किया गया तो सरकार और उच्च शिक्षा प्रशासन को इस मामले में कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है। इस मामले में हाईकोर्ट की सख्ती यह संकेत दे रही है कि नर्सिंग घोटाले की गहरी जांच और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की दिशा में अब निर्णायक कदम उठाए जाएंगे।
5 मुख्य बिंदुओं से समझें पूरा मामला
✅हाईकोर्ट का सख्त रुख: अगर अगली सुनवाई तक फाइलें पेश नहीं की गईं, तो मध्य प्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलगुरु और चिकित्सा शिक्षा निदेशक को कोर्ट में उपस्थित होकर जवाब देना होगा।
✅सीबीआई जांच में फंसे कॉलेज: कई नर्सिंग कॉलेजों को सीबीआई जांच में अयोग्य पाया गया, और यह सवाल उठ रहा है कि उन्हें कैसे मान्यता दी गई।
✅फाइलें पेश करने का आदेश: अदालत ने सभी मूल फाइलें पेश करने का आदेश दिया है, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि मान्यता नियमों के अनुसार दी गई थी।
✅नियमों में संशोधन की जांच: हाईकोर्ट ने उन नियमों की भी जांच करने का आदेश दिया है, जिनके आधार पर कॉलेजों को मान्यता दी गई।
✅अगली सुनवाई की अहमियत: 28 मार्च 2025 को होने वाली अगली सुनवाई पर इस मामले का भविष्य निर्भर करेगा, और यदि कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं किया गया तो कड़ी कार्रवाई की जा सकती है।