MP हाईकोर्ट ने कहा- कमर्शियल विवाद में वैकल्पिक उपाय अपनाएं

जबलपुर हाइकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कमर्शियल विवादों के समाधान में वैकल्पिक उपायों की प्राथमिकता पर जोर दिया। अदालत ने साफ किया कि वैकल्पिक समाधान का प्रावधान हो तो न्यायालय में सीधे याचिका दायर कर हस्तक्षेप करना गलत है।

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Neel Tiwari
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Jabalpur High Court advised to adopt alternative measures in commercial disputes
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मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की जबलपुर पीठ ने एक कॉन्ट्रैक्ट के विवाद से संबंधित रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए कमर्शियल विवादों (commercial disputes) के समाधान में वैकल्पिक उपायों की प्राथमिकता पर जोर दिया। जस्टिस विशाल धगत (Justice Vishal Dhagat) की सिंगल बेंच ने यह साफ किया कि जहां कॉन्ट्रैक्ट में वैकल्पिक समाधान का प्रावधान मौजूद हो, वहां न्यायालय में सीधे याचिका दायर कर हस्तक्षेप करना गलत है। कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की है कि ऐसी याचिकाएं हाइकोर्ट के कामकाज में बाधा डालती हैं, और विवाद समाधान प्रक्रिया का दुरुपयोग करती हैं।

PWD के निर्माण कॉन्ट्रैक्ट से जुड़ा मामला

यह मामला याचिकाकर्ता और लोक निर्माण विभाग (PWD) के बीच एक कॉन्ट्रैक्ट के विवाद से जुड़ा हुआ था। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि उनकी जमा बयाना राशि को विभाग द्वारा जब्त कर लिया गया, जबकि उनसे पहले कोई कारण बताओ नोटिस जारी नहीं किया गया। याचिकाकर्ता ने इसे न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन बताया। हालांकि, दोनों पक्षों के बीच मध्यस्थता का विकल्प अनुबंध में पहले से ही मौजूद था, लेकिन याचिकाकर्ता ने इसका उपयोग करने के बजाय उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर की। याचिका में दावा किया गया कि प्रतिवादी ने बिना उचित प्रक्रिया अपनाए बयाना राशि जब्त कर ली। प्रतिवादी ने यह तर्क दिया कि याचिकाकर्ता ने अनुबंध की शर्तों का उल्लंघन किया और सड़क रखरखाव में अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने में विफल रहा।

हाईकोर्ट ने लगाई फटकार

सुनवाई के दौरान जस्टिस विशाल धगत ने याचिकाकर्ता के वकील को सख्त लहजे में फटकार लगाई। उन्होंने कहा, "उच्च न्यायालय का गला मत घोंटिए, उसे सांस लेने दीजिए।" इस टिप्पणी के जरिये कोर्ट ने यह बताया कि जब अनुबंध में विवाद सुलझाने का एक प्रावधान मौजूद है, तो इसे दरकिनार कर अदालत का रुख करना न्यायिक व्यवस्था का दुरुपयोग है।

वकीलों की दलील को हाईकोर्ट ने किया खारिज

याचिकाकर्ता के वकील ने उच्च न्यायालय के एक पहले हुए निर्णय का हवाला देते हुए तर्क दिया कि बयाना राशि जब्त करने से पहले कारण बताओ नोटिस जारी किया जाना आवश्यक था। उन्होंने इसे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन बताया। इस पर कोर्ट ने कहा कि अगर याचिकाकर्ता को कोई शिकायत है, तो वह मध्यस्थता प्रक्रिया के तहत अपनी बात रख सकता है। अदालत ने यह भी कहा, "क्या ऐसा कोई आदेश है जो आपको सीधे रिट याचिका दायर करने का अधिकार देता हो, भले ही अनुबंध में मध्यस्थता का प्रावधान हो?"

ऐसे मामलों के लिए है प्रक्रिया 

सुनवाई के बाद कोर्ट ने यह भी साफ किया कि याचिकाकर्ता और प्रतिवादी के बीच अनुबंध में मध्यस्थता का प्रावधान है। विवाद का समाधान मध्यस्थता के जरिए किया जाना चाहिए, और न्यायालय उन मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा जहां वैकल्पिक उपाय उपलब्ध हैं। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, "याचिकाकर्ता ने अनुबंध में निहित मध्यस्थता प्रक्रिया को दरकिनार कर रिट याचिका दायर की है, जो अनुचित है। याचिकाकर्ता को कानून के तहत उपलब्ध वैकल्पिक उपाय अपनाने चाहिए।"

कमर्शियल विवादों को मध्यस्थता से सुलझाना है जरूरी

इस फैसले से यह साफ हुआ कि हाइकोर्ट ऐसे मामलों में केवल तभी हस्तक्षेप करेगा जब कोई अन्य कानूनी उपाय उपलब्ध न हो। यह निर्णय न्यायपालिका पर बढ़ते बोझ को कम करने और विवादों को शीघ्र सुलझाने के लिए वैकल्पिक उपायों को प्राथमिकता देने की अदालत की नीति को दर्शाता है। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का यह फैसला इस बात को साफ कर रहा है कि वाणिज्यिक मामलों में कॉन्ट्रैक्ट पर आधारित जिम्मेदारियों के पालन और वैकल्पिक उपायों का उपयोग किया जाना चाहिए बजाए इसके कि कोर्ट का समय इन मामलों में बर्बाद किया जाए। यह निर्णय पार्टियों के बीच मध्यस्थता जैसे उपायों का उपयोग करने और कोर्ट के समय का दुरुपयोग न करने की साफ चेतावनी देता है।

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