जबलपुर हाईकोर्ट ने राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, भोपाल के अध्यक्ष को 65 साल की आयु पूरी करने के आधार पर हटाने के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट और बंबई हाईकोर्ट के फैसले के अनुसार जहां अध्यक्ष और सदस्य का कार्यकाल 67 साल होना चाहिए वहीं मध्य प्रदेश राज्य सरकार द्वारा गलत तरीके से मौजूदा प्रभारी अध्यक्ष अशोक तिवारी को 65 वर्ष की आयु पूरी करने पर ही जबरन सेवानिवृत्ति कर दिया गया। सरकार के द्वारा वरिष्ठ न्यायिक सदस्य अशोक तिवारी की जगह कनिष्ठ सदस्य श्रीकांत पांडे को प्रभारी बना दिया गया। अब जबरन रिटायरमेंट के विरोध जताते हुए अशोक तिवारी द्वारा हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी।
अध्यक्ष अशोक तिवारी ने फैसले को दी चुनौती
याचिकाकर्ता अशोक तिवारी की ओर अधिवक्ता अमिताभ गुप्ता ने अदालत में यह दलील दी थी कि उनका कार्यकाल अभी समाप्त नहीं हुआ है, और उन्हें हटाना न केवल मनमानी है, बल्कि पहले से असंवैधानिक घोषित किए गए नियम, 2020 का उल्लंघन भी है। याचिकाकर्ता ने अपने पक्ष में सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का हवाला दिया जिसमें "उपभोक्ता संरक्षण (नियुक्ति के लिए योग्यता, भर्ती की विधि, कार्यकाल की अवधि, त्यागपत्र और हटाने) नियम, 2020" को संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 50 का उल्लंघन बताते हुए खारिज कर दिया गया था। इसके अतिरिक्त, बंबई उच्च न्यायालय के नागपुर खंडपीठ द्वारा दिए गए निर्णय में भी इन नियमों को असंवैधानिक करार दिया गया था। इन तर्कों के आधार पर याचिकाकर्ता ने अपनी बर्खास्तगी को चुनौती दी।
यह संवैधानिक प्रावधान का उल्लंघन
याचिकाकर्ता ने अदालत को यह भी बताया कि उन्होंने अभी तक अपना पहला कार्यकाल भी पूरा नहीं किया है और केवल दो साल तक इस पद पर रहे हैं। ऐसे में उन्हें 65 वर्ष की आयु पूरी होने के आधार पर हटाना कानूनन गलत है। उन्होंने यह भी दलील दी कि सर्वोच्च न्यायालय और बंबई उच्च न्यायालय के फैसलों के बावजूद राज्य सरकार द्वारा नियम, 2020 का पालन करना संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन है।
प्रतिवादियों को जवाब देने मिला 7 दिनों का समय
प्रतिवादियों ने याचिकाकर्ता की दलीलों का विरोध करते हुए अदालत से जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा। न्यायालय ने प्रतिवादियों को नोटिस जारी करते हुए सात कार्य दिवसों में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।
कंज्यूमर कमीशन के अध्यक्ष बने रहेंगे अशोक तिवारी
हाईकोर्ट के जस्टिस आनंद पाठक ने अंतरिम राहत देते हुए आदेश दिया कि याचिकाकर्ता को राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, भोपाल के अध्यक्ष के रूप में कार्य जारी रखने की अनुमति दी जाए। साथ ही, 26 नवंबर 2024 को जारी बर्खास्तगी आदेश के प्रभाव और संचालन पर रोक लगाई गई। अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 6 जनवरी 2025 से शुरू होने वाले सप्ताह की तारीख तय की है।
यह आदेश उन सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए एक महत्वपूर्ण उदाहरण है, जिन्हें मनमाने ढंग से सेवा से हटाया जा रहा है। इस मामले में जबलपुर हाईकोर्ट का फैसला उन लोगों के लिए एक राहत है, जो नियम, 2020 के तहत गलत तरीके से प्रभावित हो रहे थे। अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत समानता और न्याय के अधिकार के पालन को पुख्ता किया है।
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