कोविड में गई पति की जान, 3 साल भटकने के बाद पत्नी को हाईकोर्ट से मिला मुआवजा

मुख्यमंत्री की कोविड-19 योद्धा कल्याण योजना में तहसीलदार और कलेक्टर को तो मुआवजा दिया गया पर चीफ मेडिकल ऑफिसर को अपात्र बता दिया। इसके बाद पीड़िता पत्नी इतने दिनों तक भटकने के लिए अतिरिक्त मुआवजा  देने का हाईकोर्ट ने आदेश दिया।

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Ravi Singh
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@ नील तिवारी - जबलपुर : अजयगढ़ के चीफ मेडिकल ऑफिसर अजय पटेरिया की कोरोना की दूसरी लहर में मौत होने के बाद भी मुआवजे के लिए सालों तक उनकी कैंसर पीड़ित पत्नी को भटकाया गया। मृतक अजय पटेरिया की पत्नी राजलक्ष्मी और बेटे सत्यरथ पटेरिया की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट  ( High Court ) ने आखिरकार पीड़ित पत्नी को न्याय दिलाया है।

क्या है पूरा मामला

पन्ना जिले के अजयगढ़ में मेडिकल ऑफिसर की पोस्ट पर पदस्थ अरुण पटेरिया कोरोना के बचाव के दौरान दी गई ड्यूटी के दौरान ही कोरोना से संक्रमित हो गए और इलाज के दौरान 22 मई 2021 को उनकी मृत्यु हो गई। इसके बाद उनकी पत्नी राजलक्ष्मी ( Rajlakshmi ) ने सीएम कोविड-19 योद्धा कल्याण योजना ( CM Covid-19 Warrior Welfare Scheme ) के अंतर्गत 50 लाख रुपए का मुआवजा ( compensation ) आवेदन दिया था। इसके बाद आवेदन की योग्यता को रखने के लिए जिला कलेक्टर पन्ना की अध्यक्षता में जून 2021 में एक मीटिंग भी संपन्न हुई जिसमें अरुण पटेरिया का क्लेम मुआवजे के लिए योग्य पाया गया।

डिप्टी रिलीफ कमिश्नर ने किया क्लेम रिजेक्ट

जून 2021 और 18 अगस्त 2022 को जारी आदेश के अनुसार डिप्टी रिलीफ कमिश्नर ने मुआवजे के क्लेम को खारिज कर दिया। जिस फैसले के विरोध में मृतक अरुण पटेरिया की पत्नी और उनके बेटे ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की।  जस्टिस ए. के. सिंह और राजमोहन सिंह की युगल पीठ में इसी याचिका की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पक्ष रखा गया कि पन्ना जिला कलेक्टर एवं स्वास्थ्य विभाग के द्वारा जारी अलग-अलग आदेशों के अनुसार मुख्य चिकित्सा अधिकारी अरुण रोको टोको अभियान में जनता को मास्क लगाने को प्रेरित करने से लेकर कोरोना संक्रमित लोगों की सार्थक एप में जानकारी डालने तक अपनी ड्यूटी के दौरान कोरोना संक्रमित लोगों के संपर्क में आने वाला जोखिम भरा काम कर रहे थे। कोविड-19 योद्धा कल्याण योजना के पैरा 3.1 के अनुसार वह सभी शासकीय सेवक जो कोरोना बचाव में कार्यरत हैं साथ ही सैंपल लेने कोरोना के रोकथाम जैसे सैंपल लेने, मरीज को आइसोलेशन में भेजने जैसे जोखिम भरे कम कर रहे हैं वह सभी इस योजना के लिए पात्र है।

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तहसीलदार और डिप्टी कलेक्टर को मिला मुआवजा तो पीड़िता को क्यों नहीं

युगल पीठ ने अपने आदेश में कहा की स्वास्थ्य विभाग के द्वारा अरुण पटेरिया को दिए गए असाइनमेंट के आधार पर या स्पष्ट है कि उनके परिजन इस योजना के लिए पात्र हैं। इसी तरह के कार्यों में ड्यूटी पर रहे तहसीलदार और डिप्टी कलेक्टर की कोरोना से ही मृत्यु हुई और उन्हें इस योजना के लिए पात्र माना गया तो फिर अरुण पटेरिया को पात्र ना मनाना बहुत ही अजीब है। इसके साथ युगल पीठ ने मृतक की कैंसर पीड़ित पत्नी को 50 लाख रुपए मुआवजा देने का आदेश दिया। साथ ही मृतक की पत्नी राजलक्ष्मी और उनके पुत्र को इतने दिनों तक भटकने के लिए शासन को 1 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया जो याचिकाकर्ता को एक माह के भीतर देने के आदेश दिए गए।

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