नील तिवारी, JABALPUR. जबलपुर हाईकोर्ट (Jabalpur High Court) ने 17 साल की रेप पीड़िता के गर्भपात की याचिका खारिज (Minor rape victim petition for abortion rejected) कर दी है। मामले की जांच के लिए गठित मेडिकल बोर्ड के द्वारा कोर्ट में सील बंद लिफाफे में जांच रिपोर्ट दी। इस रिपोर्ट के अनुसार 1 मई 2024 को पीड़िता की गर्भावस्था की अवधि 28 हफ्ते से ज्यादा की हो चुकी है। मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट में गर्भपात से इनकार के बाद जज जीएस अहलूवालिया (Judge GS Ahluwalia) ने अपना फैसला सुनाते हुए याचिका खारिज किया।
गठित मेडिकल बोर्ड ने सौंपी रिपोर्ट
दरअसल, जज जीएस अहलूवालिया की कोर्ट में पीड़ित पक्ष की वकील प्रियंका तिवारी ने 30 अप्रैल को हुई सुनवाई में सामने यह तथ्य रखे थे कि पीड़ित 17 साल की नाबालिग है, और रेपिस्ट के बच्चे को जन्म देना पीड़िता के हित में नहीं होगा। वकील प्रियंका तिवारी ने कोर्ट को भरोसा दिलाया कि पीड़िता एवं उसके परिजन हलफनामा देने को भी तैयार हैं कि वह रेप के आरोपी पर लगाए गए आरोपों से किसी भी तरह मुकरेंगे नहीं।
मामले में प्रतिवादी बनाए गए अधीक्षक गांधी मेडिकल कॉलेज और हमीदिया अस्पताल भोपाल को मेडिकल टीम गठित करने के निर्देश दिए गए थे। इस मेडिकल टीम में एनेस्थीसिएस्ट, गाइनेकोलॉजिस्ट और अन्य डॉक्टरों को पीड़िता की जांच कर यह रिपोर्ट पेश करने के आदेश दिए गए थे, कि पीड़िता का गर्भपात करना संभव है या नहीं।
कोर्ट ने पीड़िता एवं उसके परिजनों को यह हलफनामा पेश करने के लिए भी आदेशित किया था कि वह उस व्यक्ति को माफ नहीं करेंगे जिसके खिलाफ रेप के आरोप लगाए हैं, और वह कोर्ट को इस अनचाहे बच्चे से पीछा छुड़ाने के लिए इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं।
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मेडिकल बोर्ड ने गर्भपात कराने से किया इनकार
मामले में सोमवार को कोर्ट में पेश मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट (medical board report) के अनुसार 1 मई 2024 को पीड़िता की गर्भावस्था की अवधि 28 हफ्ते और 3 दिन हो चुकी है। रिपोर्ट में बताया कि मेडिकल बोर्ड पीड़िता को गर्भपात के लिए सहीं नहीं पाते हुए गर्भपात से इनकार करता है।
इसके बाद जज जीएस अहलूवालिया ने अपने फैसले में कहा कि पीड़िता आरोपी युवक के संपर्क में थी और पिछले लगभग दो साल से वह उसके साथ एक जगह से दूसरी जगह जाती रही है। वहीं एफआईआर के अनुसार भी वह 6 माह से प्रेग्नेंट थी। इन परिस्थितियों और मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के आधार पर पीड़िता की याचिका हाईकोर्ट के द्वारा खारिज की जाती है।