मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने कॉलेजियम सिस्टम पर अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि न्यायपालिका (हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट) में वर्ग विशेष जैसे एससी, एसटी, ओबीसी आदि को प्रतिनिधित्व देने का संविधान में कोई प्रावधान नहीं है।
हाई कोर्ट जज का पद सिविल पोस्ट नहीं है, जिसके लिए भर्ती प्रक्रिया लागू की जाए। इस मत के साथ एक्टिंग चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस अमरनाथ केसरवानी की खंडपीठ ने हाई कोर्ट में सात जजों की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी।
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https://thesootr.com/state/madhya-pradesh/seven-judge-collegium-system-hearing-mp-high-court-4652128
गुरुवार को हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम का अस्तित्व कानूनी रूप से पवित्र है। ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता ने गलत धारणा के तहत याचिका दायर की है। वह ऐसा समझता है कि हाई कोर्ट के जज का कार्यालय एक सिविल पद के समान है, जबकि यह केवल संविधानिक प्रक्रिया के तहत भरा जाता है।
हाई कोर्ट जज की नियुक्ति के लिए संविधान में किसी भी विज्ञापन को जारी करने का प्रावधान नहीं है। इसके लिए लिखित या मौखिक परीक्षा का आयोजन नहीं किया जा सकता।
ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन ने दायर की थी याचिका
गौरतलब है कि ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन के सदस्य अधिवक्ता मारुति सोंधिया ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर जजों की नियुक्ति को चुनौती दी थी। अधिवक्ता उदय कुमार साहू ने दलील दी थी कि हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में सामाजिक न्याय तथा आनुपातिक प्रतिनिधित्व के सिद्धांत को नजरअंदाज कर एक ही जाति, वर्ग तथा परिवार विशेष के ही अधिवक्ताओं के नाम पीढ़ी दर पीढ़ी भेजे जाते हैं।
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