JABALPUR. मंगलवार की शाम 4 बजे जबलपुर के समदड़िया मॉल में अचानक तेज सायरन बजा। कुछ ही सेकंड में पूरे मॉल में इतना धुंआ भर गया कि सामने दिखना बंद हो गया। यह धुंआ असली नहीं, बल्कि मॉकड्रिल का हिस्सा था।
मॉक ड्रिल यानी ऐसी एक स्थिति बनाई गई जिसमें मान लिया गया कि जैसे कोई बड़ा खतरा सामने आ गया है जैसे बम धमाका या आतंकी हमला। इसका मकसद यह था कि देखा जा सके कि अगर ऐसी कोई स्थिति आई, तो हमारी पुलिस, अस्पताल, और प्रशासन कैसे काम करेंगे। सायरन और धुएं ने माहौल को बिल्कुल असली जैसा बना दिया।
धुएं के बीच घायलों को स्ट्रेचर पर लिटाकर दौड़ी एंबुलेंस
जैसे ही ड्रिल शुरू हुई, एंबुलेंस और पुलिस की गाड़ियों के सायरन सुनाई देने लगे। एक के बाद एक गाड़ियां मॉल के सामने आकर रुकीं और मौके पर अफसरों की भीड़ जमा हो गई। फिर मॉल के अंदर से ‘घायल’ लोगों को स्ट्रेचर पर बाहर लाया गया। ये लोग असली घायल नहीं थे, बल्कि मॉक ड्रिल में हिस्सा ले रहे लोग थे, जो यह दिखा रहे थे कि ऐसे हालात में आम लोग किस तरह की मदद की जरूरत महसूस करते हैं।
बम स्क्वायड की टीम भी अपनी खास पोशाक में अंदर गई और देखा कि कहीं कोई बम या खतरा तो नहीं। सबकुछ इतनी तेजी से और तालमेल के साथ हो रहा था कि लगा जैसे किसी फिल्म का सीन चल रहा हो मगर यह फिल्म नहीं, हमारी सुरक्षा व्यवस्था की असली तैयारी थी।
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एनसीसी के छात्र, पुलिस और मेडिकल टीम रही शामिल
इस ड्रिल में पुलिस और मेडिकल स्टाफ के साथ-साथ एनसीसी के छात्र भी शामिल थे। ये छात्र बहुत अनुशासन के साथ काम करते दिखे - कुछ ने ‘घायल’ की भूमिका निभाई, तो कुछ ने लोगों को बाहर निकालने में मदद की। मेडिकल टीम ने तुरंत मौके पर पहुंचकर प्राथमिक उपचार देने की प्रक्रिया भी दिखाई।
प्रशासन के अधिकारी भी वहां मौजूद रहे और उन्होंने पूरे घटनाक्रम पर बारीकी से नज़र रखी। इस तरह के अभ्यास में यह देखा जाता है कि अगर कभी असली में कोई मुसीबत आती है, तो कौन कितना तैयार है, किसे क्या जिम्मेदारी दी जाएगी, और किस विभाग का किससे समन्वय रहेगा।
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मॉल के बाद गोहलपुर, सिहोरा और गोरखपुर में भी यही अभ्यास
समदड़िया मॉल की मॉक ड्रिल खत्म होते ही शाम 5:30 बजे गोहलपुर के गारमेंट क्लस्टर में अगला अभ्यास शुरू होगा। यहां पर यह परिकल्पना की गई कि किसी फैक्ट्री में धमाका हो गया है। इसके बाद शाम 6 बजे सिहोरा कस्बे में ड्रिल की जाएगी, जहां बाजार में भगदड़ और घायल लोगों को संभालने की स्थिति का अभ्यास किया गया।
फिर रात 7:30 बजे पुराने गोरखपुर थाने में ड्रिल की जानी है जहां पर होटल बजाने के बाद घरों सहित सड़क पर चल रहे हैं वाहनों की भी लाइट बंद करने का अभ्यास किया जाएगा। हर जगह की परिस्थिति थोड़ी अलग थी ताकि हर प्रकार की आपात स्थिति को समझा और नापा जा सके।
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ड्रिल का असली मकसद, नागरिकों को तैयार करना
इस तरह की मॉक ड्रिल पूरे देश में की जा रही हैं क्योंकि वर्तमान समय में हर देश को युद्ध या आतंकी खतरे की चिंता सताती है। ऐसे में ज़रूरी है कि हम पहले से ही यह जान लें कि मुसीबत के वक्त कौन क्या करेगा।
अगर कहीं बम धमाका हो, आतंकी हमला हो, या युद्ध के हालात बन जाएं तो हमारी पुलिस, अस्पताल, प्रशासन, और आम लोग घबराएं नहीं, बल्कि समझदारी से, एक टीम की तरह काम करें। यही सोच इस मॉक ड्रिल के पीछे थी कि खतरे के पहले ही तैयारी कर लें, ताकि बाद में नुकसान कम हो।
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इस ड्रिल ने जनता को दिलाया भरोसा - मुश्किल वक्त में पूरा सिस्टम साथ होगा
जबलपुर में हुई इस मॉक ड्रिल ने शहरवासियों को एक मजबूत संदेश दिया है कि अगर कभी कोई खतरा सामने आया, तो शहर का हर विभाग तैयार है। पुलिस, मेडिकल टीम, प्रशासन, और युवा कैडेट्स मिलकर तुरंत मदद को पहुंचेंगे।
मॉल से लेकर थानों तक जो अभ्यास हुआ, उसने यह भरोसा दिलाया कि हमारी सुरक्षा सिर्फ कागज़ों पर नहीं, ज़मीन पर भी मौजूद है। लोगों ने भी इस ड्रिल को देखकर राहत की सांस ली और महसूस किया कि अगर संकट आया, तो वे अकेले नहीं होंगे।