/sootr/media/media_files/2025/07/01/jabalpur-high-court-orders-dgp-investigation-2025-07-01-17-55-06.jpg)
Photograph: (The Sootr)
JABALPUR. जबलपुर हाईकोर्ट में एक सड़क दुर्घटना मामले की सुनवाई के दौरान पुलिस की लापरवाही सामने आई है। घटना 26 मार्च 2017 को डुमना रोड पर हुई थी। FIR तीन महीने बाद, 19 जून 2017 को दर्ज की गई, और वह भी गलत थाने में। कोर्ट ने इसे लापरवाही नहीं, बल्कि जानबूझकर साजिश मानते हुए पुलिस अधिकारियों की भूमिका पर सवाल उठाए। कोर्ट ने DGP को जांच के आदेश दिए हैं।
गोरा बाजार TI और सब-इंस्पेक्टर की मिलीभगत
इस मामले में हाईकोर्ट ने साफ तौर पर यह निष्कर्ष निकाला कि तत्कालीन गोरा बाजार थाना प्रभारी डी.पी.एस. चौहान और सब इंस्पेक्टर हृदयानंद मिश्रा ने एक्सीडेंटल क्लेम में लाभ पहुंचाने की मंशा से जानबूझकर घटना के 3 महीने बाद पूरे तथ्य विपक्ष में होने के बाद भी एक गलत FIR दर्ज की। यह एफआईआर उस वक्त लिखी गई जब पहले से ही केस डायरी में कई चौंकाने वाली विसंगतियां मौजूद थीं। कोर्ट ने इसे गंभीर कदाचार बताते हुए, इसे कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग माना और अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक व आपराधिक कार्रवाई की सिफारिश की।
साल 2017 में ऋषभ जैन का हुआ था एक्सीडेंट
इस मामले की शुरुआत शिकायतकर्ता ऋषभ जैन द्वारा 31 मार्च 2017 को दिए गए उस आवेदन से हुई थी, जिसमें उन्होंने एक्सीडेंट की सूचना दी थी। ऋषभ ने बताया कि वह अपने दोस्त आनंद पाठक के साथ डुमना एयरपोर्ट से लौट रहे थे, और नेहरा कंपनी के पास उनकी मोटरसाइकिल को एक होंडा सीवीआर बाइक (MP-20/MW-8612) ने टक्कर मार दी। ऋषभ के अनुसार इस हादसे में ऋषभ को माथे, दाहिनी कलाई और कमर में खरोंचें आईं थी और उनकी बाइक को भी नुकसान हुआ। चोट लगने के बाद उनके दोस्तों ने उन्हें अस्पताल पहुंचाया। लेकिन जब पुलिस कार्रवाई की बात आई, तो उन्हें तीन थानों डुमना चौकी, रांझी और सिविल लाइंस के बीच दौड़ना पड़ा क्योंकि तीनों थानों का यह कहना था कि दुर्घटना क्षेत्र हमारे थाने में नहीं आता, इसके बाद उन्होंने एसपी ऑफिस में 31 मार्च को शिकायत की और जबलपुर पुलिस की सजगता का एक और उदाहरण सामने आ गया।
SP को “जबलपुर का भूगोल ही नहीं पता!” - HC
कोर्ट ने जबलपुर के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक (SP) की भूमिका पर भी गंभीर सवाल उठाए। ऋषभ द्वारा दिए गए आवेदन पर एसपी कार्यालय ने 1 अप्रैल 2017 की मुहर लगाई, लेकिन उन्हें गोहलपुर थाना भेज दिया, जो न तो दुर्घटना स्थल से जुड़ा था और न ही सीमा विवाद वाले 3 थानों में शामिल था।
कोर्ट ने आदेश में लिखा:
तीन थानों के सीमा विवाद का एक मामला जबलपुर के एसपी ने एक ऐसे थाने में भेज दिया जिसका इस मामले से कोई लेना-देना ही नहीं है, क्या एसपी को जबलपुर का भूगोल पता नहीं है और यदि नहीं पता था तो उन्हें अपने अधीनस्थ एडिशनल एसपी या डीएसपी को सही थाना चुनने के लिए निर्देश दिए जाने थे। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार को इस जवाब देना चाहिए कि मामले को गलत थाने में भेजने के बाद एसपी पर क्या कार्यवाही की गई।
फर्जी पत्र और सावधानी से काटी गई फोटोकॉपी
/filters:format(webp)/sootr/media/media_files/2025/07/01/photocopy-1-2025-07-01-20-05-31.jpg)
कोर्ट में पेश की गई केस डायरी में जो दस्तावेज मिले, उन्होंने पूरे पुलिस तंत्र की सच्चाई सामने रख दी। ऋषभ द्वारा लिखा गया 31 मार्च 2017 का पत्र केस डायरी में मिला, लेकिन उसमें कोई दस्तखत नहीं थे और लेटर में मार्जिन इतनी सफाई से काटे गए थे कि कोई पहचान नहीं हो सके। इतना ही नहीं, केस डायरी में 1 जून 2017 का एक और पत्र मिला, जो पुलिस थाना घमापुर से था और उसमें SP के एक काल्पनिक पत्र संख्या 1804/2017 दिनांक 30 मई 2017 का हवाला दिया गया था , जबकि ऐसा कोई पत्र रिकॉर्ड में मौजूद ही नहीं था। कोर्ट ने इस बात को एक “मनगढ़ंत और रची गई कहानी” माना, जो एफआईआर को वैध दिखाने के लिए तैयार की गई थी।
एक्स-रे और बाइक डैमेज रिपोर्ट पर भी उठे सवाल
पुलिस द्वारा संलग्न की गई एक्स-रे रिपोर्ट वास्तव में सिर्फ जामदार अस्पताल के डॉक्टर शिरीष नाइक द्वारा दिया गया एक प्रेस्क्रिप्शन था। इसमें ना कोई मेडिकल सर्टिफिकेट था, ना फीस रसीद और ना ही इसे जब्त करने का कोई मेमो, इसके साथ ही यह तथा कथित X-RAY रिपोर्ट एक्सीडेंट से 2 महीने पहले यानी जनवरी 2017 की थी। वहीं बाइक की मेकेनिकल क्षति रिपोर्ट 22 जून 2017 की थी, यानी दुर्घटना के 3 महीने बाद। रिपोर्ट में बाइक के फुटरेस्ट, गियर और टायरों को क्षतिग्रस्त बताया गया, लेकिन किसी मेकैनिकल एक्सपर्ट या मूल्यांकनकर्ता के हस्ताक्षर नहीं थे और न ही बाइक की तस्वीरें केस डायरी का हिस्सा थीं।
घमापुर थाना अचानक 'कहानी' में आया, रांझी थाना पहुंची शिकायत
/filters:format(webp)/sootr/media/media_files/2025/07/01/photocopy-2-2025-07-01-20-06-09.jpg)
इस पूरे मामले में सबसे अधिक भ्रम तब बढ़ा जब पुलिस थाना घमापुर से भेजा गया पत्र केस डायरी में मिला, जबकि घमापुर इस विवाद से दूर था। दरअसल पुलिस अधीक्षक के द्वारा गोहलपुर थाने को भेजे गए पत्र के कुछ दिनों बाद घमापुर थाने से एक पत्र जारी हुआ जिसमें बताया गया कि यह थाना क्षेत्र रांझी का है और रांची थाने में 3 महीने बीत जाने के बाद भी बिना किसी अर्जेंसी के जीरो FIR कायम कर इसकी डायरी गोरा बाजार थाने भेज दी गई।कोर्ट ने कहा कि घमापुर थाने का यह पत्र भी एक "फर्जी कड़ी" प्रतीत हुआ, जिससे यह दर्शाया जा सके कि शिकायत कैसे थाना रांझी तक पहुँची। इस पत्र में जिस 30 मई 2017 के एसपी के पत्र का उल्लेख है, वह भी काल्पनिक ही है क्योंकि वह कहीं भी केस डायरी या दस्तावेजों में उपलब्ध नहीं है, जिससे साफ होता है कि इस पत्र को सिर्फ रिकॉर्ड को फिट करने के लिए और FIR करने में हुई 3 महीनो की देरी को जस्टिफाई करने के लिए गढ़ा गया है।
गोरा बाजार TI ने दिया 133 का नोटिस
गोरा बाजार के तत्कालीन थाना प्रभारी डीपीएस चौहान जो अब डीएसपी रैंक पर पदोन्नत हो चुके हैं उन्होंने याचिका कर्ताओं को 133 का नोटिस जारी करते हुए थाना बुलाया और जब याचिकाकर्ता रूपेश खत्री के भाई सलिल खत्री ने अपनी मोटरसाइकिल की जानकारी दी तो इस जवाब को ही आधार बनाकर याचिकाकर्ता और उसके भाई को इस मामले में दोषी बना दिया। कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान यह भी कहा कि थाना प्रभारी को यह पता ही नहीं है की धारा 133 का नोटिस क्या होता है।
FIR रद्द, कोर्ट ने दिए डीजीपी को जांच के आदेश
कोर्ट ने यह मानते हुए कि एफआईआर झूठे तथ्यों पर आधारित थी और जबलपुर पुलिस के द्वारा इसे वैध ठहराने की साजिश रची गई थी, FIR और उससे संबंधित समस्त कार्यवाहियों को रद्द कर दिया। कोर्ट ने डीजीपी को स्पष्ट आदेश दिया कि इस मामले में शामिल सभी पुलिस अधिकारियों की जांच की जाए। कोर्ट ने आदेश दिया कि इस मामले में दोषी पाए जाने वाले लोगों पर विभागीय और यदि आवश्यकता हो तो आपराधिक कार्यवाही की जाए। पुलिस महानिदेशक (DGP) को निर्देशित किया गया है कि वह दो महीने के भीतर जांच पूरी कर याचिकाकर्ताओं को परिणाम सूचित करें, और यदि यह न किया गया, तो याचिकाकर्ता DGP के खिलाफ अवमानना याचिका दाखिल कर सकते हैं।
डिविजनल बेंच पहुंचे DSP चौहान नहीं मिली राहत
इस मामले में तत्कालीन थाना प्रभारी और वर्तमान DSP डी पी एस चौहान सहित जांच के दायरे में फंसे सब इंस्पेक्टर हृदयानंद मिश्रा ने जबलपुर हाईकोर्ट में सिंगल बेंच के फैसले के खिलाफ अपील दायर की लेकिन एक्टिंग चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा की डिविजनल बेंच ने कोई भी राहत देने से इनकार कर दिया और उन्होंने कहा कि इस मामले में जांच होनी चाहिए। MP News
thesootr links
- मध्यप्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- छत्तीसगढ़ की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- राजस्थान की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- रोचक वेब स्टोरीज देखने के लिए करें क्लिक
- जॉब्स और एजुकेशन की खबरें पढ़ने के लिए क्लिक करें
- निशुल्क वैवाहिक विज्ञापन और क्लासिफाइड देखने के लिए क्लिक करें
अगर आपको ये खबर अच्छी लगी हो तो 👉 दूसरे ग्रुप्स, 🤝दोस्तों, परिवारजनों के साथ शेयर करें📢🔃🤝💬👩👦👨👩👧👧👩