स्कूल की लिस्ट जारी करने से 2 महीने पहले ही ऑर्डर कर देते थे किताबें

पुस्तक विक्रेता स्कूल के द्वारा लिस्ट जारी करने के 2 महीने पहले ही उन किताबों का आर्डर कर देते हैं। स्कूलों ने भी 30% से 46% तक मुनाफे में रहने के बाद भी अपनी फीस की नियम विरुद्ध वृद्धि की थी।

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Neel Tiwari
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Jabalpur
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जबलपुर में अवैध फीस वसूली और फर्जी किताबों के मामले में कोर्ट के सामने चौंकाने वाले खुलासे हो रहे हैं। जहां पुस्तक विक्रेता स्कूल के द्वारा लिस्ट जारी करने के 2 महीने पहले ही उन किताबों का आर्डर कर देते थे तो स्कूलों ने भी 30% से 46% तक मुनाफे में रहने के बाद भी अपनी फीस की नियम विरुद्ध तब वृद्धि की थी।

बिलों में हर ऑर्डर में 125 किताबें मंगाई गई

बुक स्टोर संचालकों के द्वारा पब्लिशर से खरीदी गई किताबों के ऑर्डर एवं बिल की जानकारी अदालत में जमा की गई थी। इन बिलों में हर ऑर्डर में 125 किताबें मंगाई गई थी। इस पर सवाल करते हुए कोर्ट ने पूछा कि आखिर 125 किताबें ही क्यों मंगाई जाती थी। शासकीय अधिवक्ता ने भी यह तथ्य रखा की स्कूल के द्वारा किताबों की सूची जारी करने के 2 महीने पहले ही यह दुकान संचालक इन किताबों का ऑर्डर दे देते थे। जिससे उनकी स्कूलों के साथ सांठगांठ स्पष्ट नजर आती है। बुक स्टोर संचालकों की ओर से अधिवक्ता ने 125 किताबों के आर्डर को तो डिमांड और सप्लाई पर आधारित आर्डर बताए पर दो माह पहले ही किए जाने वाले ऑर्डर पर अदालत को संतुष्ट करते हुए नजर नहीं आए।

अवैध फीस वसूली पर कहा चोरी छुपे नहीं ली जाती थी फीस, देते थे रसीद

स्कूल संचालकों की ओर से अधिवक्ता ने यह पक्ष रखा की जिस बड़ी हुई फीस को चोरी छुपे की गई अवैध वसूली बताया जा रहा है उसके लिए बाकायदा अभिभावकों को रसीद दी जाती थी। जिस पर शासन की ओर से अधिवक्ता ने ऐसे तथ्य रखे कि इसके आगे बहस को कुछ बचा ही नहीं। शासन की ओर से यह बताया गया कि मध्य प्रदेश निजी विद्यालय (फीस तथा संबंधित विषयों का विनियमन) अधिनियम 2017 के अंतर्गत स्पष्ट नियम है कि कोई भी स्कूल केवल तब फीस वृद्धि कर सकता है जब उसका सालाना खर्च मुनाफे का 90% से अधिक हो।

स्कूल संचालकों ने सबसे छिपाकर फीस बढ़ाई

स्कूल यदि 10% तक की फीस वृद्धि करता है तो उसे इसके लिए जिला समिति को आवेदन देना होता है जिसके अध्यक्ष जिला कलेक्टर है। इसी तरह 10% से अधिक फीस वृद्धि के लिए यह आवेदन राज्य समिति के पास भेजा जाता है और 15% से अधिक वृद्धि के लिए केंद्रीय समिति से अनुमति लेना जरूरी होता है। और इस वृद्धि की जानकारी शासन के पोर्टल से लेकर स्कूल को अपने सूचना पटल तक में दिखानी होती है और आरोपी स्कूल संचालकों ने इस जानकारी को सबसे छिपाकर फीस बढ़ाई है।  इसके साथ ही शासकीय अधिवक्ता ने बताया कि इन स्कूलों ने फीस वृद्धि तब की है जब यह 30 से 46 प्रतिशत तक के मुनाफे पर चल रहे थे। इसलिए नियम विरुद्ध अभिभावकों से की गई फीस वसूली , अवैध वसूली के दायरे में ही आती है।

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जबलपुर हाईकोर्ट में सुनवाई की शुरुआत में जहां स्कूल संचालक आरोपों को सिरे से नकार रहे थे। वहीं शासन के अधिवक्ताओं की मजबूत दलीलों के बाद उन्होंने माना कि अगर निजी विद्यालय स्कूल अधिनियम 2017 का उल्लंघन किया भी गया है तो उसके नियम के अनुसार उन्हें 2 लाख रुपए का जुर्माना करिए स्कूल के प्रिंसिपलों सहित मैनेजमेंट स्टाफ पर आखिर पुलिस की कार्यवाही क्यों की जा रही है ? अब कोर्ट का सुरक्षित किया आदेश आने के बाद ही अवैध फीस वसूली और फर्जी किताबों के मामले में फंसे आरोपियों की किस्मत का फैसला होगा।

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