फर्जी किताबों और अवैध फीस वसूली पर 3 घंटे चली सुनवाई, आरोपियों के वकीलों की लगी भीड़

फर्जी किताबों के मामले में जबलपुर हाईकोर्ट में किताब विक्रेताओं के अधिवक्ता ने तो पूरे मामले से ही अपना पल्ला झाड़ते हुए यह कह दिया कि किताबें पब्लिशर ने छपवाई थीं...

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Neel Tiwari
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जबलपुर हाईकोर्ट
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जबलपुर में करोड़ों रुपए की अवैध फीस वसूली के मामले में मंगलवार को हाइकोर्ट में 4 रिट पिटिशन सहित 30 जमानत याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई हुई, जो घंटों तक चली।

जबलपुर जिला कलेक्टर दीपक सक्सेना के द्वारा स्कूलों में की जा रही अवैध वसूली के खिलाफ शुरू की गई जांच के बाद 11 निजी स्कूलों पर कार्यवाही की गई थी। सोमवार को इस मामले के आरोपियों के लगभग 30 जमानत आवेदनों की  एक साथ सुनवाई हुई ।

जबलपुर हाई कोर्ट में जस्टिस मनिंदर एस भट्टी के न्यायालय में आरोपियों का पक्ष रखने के लिए अधिवक्ताओं की फौज खड़ी नजर आई। अपने पक्षकार का पक्ष पहले रखने की कोशिश में अदालत में ऐसी स्थिति बनी कि जस्टिस भट्टी को यह  निर्देश देना पड़ा कि कोई 1 व्यक्ति ही जवाब दे । इसके बाद सहमति बनी कि पहले किताब विक्रेताओं के अधिवक्ता दलील देंगे। हाई कोर्ट में भी आईएसबीएन की संवैधानिकता को ही मुख्य मुद्दा बनाया गया।

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किताब विक्रेताओं ने सिरे से खारिज किए आरोप

इस मामले में स्कूल संचालकों, किताब विक्रेताओं और पब्लिशर के अधिवक्ताओं ने अपने-अपने पक्ष रखें। किताब विक्रेताओं के अधिवक्ता ने तो पूरे मामले से ही अपना पल्ला झाड़ते हुए यह कहा कि किताबें पब्लिशर ने छपवाई थी और स्कूल ने लागू की थी। हम तो सिर्फ उन्हें बेच रहे थे।

इस तथ्य के साथ पुस्तक विक्रेता श्री राम इंदुरख्या और आलोक इंदुरख्या के ऊपर की गई 120-B की कार्यवाही को भी चुनौती दी गई। यह भी आरोप लगाए गए की आखिर पब्लिशर को इस मामले में आरोपी क्यों नहीं बनाया गया। जिस पर कोर्ट में मौजूद बेलबाग थाने के थाना प्रभारी प्रवीण कुम्हरे ने स्पष्ट किया कि जब्त की गई किताबों के असली पब्लिशर से भी पुलिस ने पूछताछ की है। पर पब्लिशर के सभी आईएसबीएन जांच में सही पाए गए हैं।

किताब विक्रेताओं ने किसी दूसरे व्यक्ति से यह फर्जी ISBN की किताबें छपवाई थी जिसकी तलाश पुलिस कर रही है। शासन की ओर से अधिवक्ता ने यह बताया कि अन्य थानों में दर्ज की गई FIR में पब्लिशर्स को भी आरोपी बनाया गया है। 

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फर्जी और असली ISBN पर हुई बहस

स्कूल संचालकों के अधिवक्ता ने ISBN जारी करने वाली राजा राममोहन राय नेशनल एजेंसी की संवैधानिकता पर ही सवाल खड़ा करते हुए कहा कि आईएसबीएन नंबर की कोई भी वैधानिक मान्यता नहीं है। हालांकि उसके बाद उन्ही के द्वारा कोर्ट में यह बताया गया कि जांच के दौरान जप्त की गई किताबों में दर्ज आईएसबीएन नंबर साल 2016 से पहले के हैं और राजा राममोहन राय आईएसबीएन की वेबसाइट पर 2016 से पहले के आईएसबीएन सर्च नहीं किये जा सकते। तो किस आधार पर जिला कलेक्टर के द्वारा इन आईएसबीएन नंबरों को फर्जी बताया गया।

शासन की ओर से अधिवक्ता ने तथ्य रखते हुए यह जानकारी दी की जांच के दौरान राजा राममोहन राय आईएसबीएन संस्था से ही इस बात की पुष्टि हुई है कि आरोपियों से जब्त की गई किताबों में फर्जी आईएसबीएन डाले हुए हैं। 

आपको बता दें कि राजा राममोहन राय आईएसबीएन रजिस्ट्रेशन की राष्ट्रीय एजेंसी है जिसे भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के उच्च शिक्षा विभाग के द्वारा संचालित किया जाता है। कोर्ट ने इस मामले में सभी पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित कर लिया है। बुधवार 10 जुलाई को एक और आरोपी के जमानत आवेदन की सुनवाई के बाद यह फैसला कोर्ट जारी कर सकती है।

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