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Photograph: (THESOOTR)
आदिम जाति कल्याण विभाग के पूर्व डिप्टी कमिश्नर जगदीश सरवटे भ्रष्टाचार और वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट की धाराओं में फंसने के बाद 5 दिन जबलपुर सेंट्रल जेल में रहे और इसके बाद कोर्ट से जमानत मिली… लेकिन विभाग ने उन्हें निलंबित करने के बजाय फिर से ऑफिस में बैठा दिया।
नियम साफ कहते हैं कि कोई भी शासकीय कर्मचारी अगर 48 घंटे भी जेल में रहे, तो उसे तत्काल निलंबित माना जाता है। हालांकि इसके बाद विभाग निलंबन आदेश भी जारी करता है लेकिन सरवटे ने 120 घंटे (लगभग 5 दिन) जेल में काटे, इसके बावजूद वे नई पदस्थापना PETC (परीक्षा पूर्व प्रशिक्षण केंद्र) में अपर संचालक बनकर दफ्तर में फाइलों पर दस्तखत कर रहे हैं।
गिरफ्तारी और जमानत का पूरा घटनाक्रम...👉 23 अगस्त 2025 को जगदीश सरवटे ने wildlife protection act मामले में जबलपुर जिला कोर्ट में सरेंडर किया, इसके बाद उसे जबलपुर सेंट्रल जेल भेजा गया। 👉 23 से 28 अगस्त 2025 तक सरवटे ने 5 दिन जेल में बिताए 👉 28 अगस्त 2025 को सरवटे को जिला अदालत से जमानत मिली और वह जेल से बाहर आ गया। 👉 जेल अधीक्षक मदन कमलेश ने पुष्टि की कि सरवटे ने 5 दिन जेल में गुजारे। लेकिन हैरानी की बात यह है कि जेल से बाहर आते ही सरवटे ने बिना किसी हिचकिचाहट के अपनी नई पोस्टिंग वाली कुर्सी पर कब्जा जमा लिया। |
विभाग दे रहे गोल-मोल जवाब
इस मामले में जब द सूत्र ने ट्राइबल डिपार्टमेंट की संभागीय उपायुक्त डॉ. ऊषा अजय सिंह से सवाल किया कि नियमों के मुताबिक सरवटे का निलंबन क्यों नहीं हुआ, तो उनका जवाब था कि "विभाग को अभी तक उनकी जेल में रहने की आधिकारिक जानकारी वन विभाग से नहीं मिली है।"
जब वन विभाग से संपर्क किया गया तो सामने आया कि सरवटे की गिरफ्तारी का लेटर 29 अगस्त को जिला कलेक्टर जबलपुर को भेजा गया था। यानी गिरफ्तारी 23 अगस्त को हुई, लेकिन विभाग ने पत्र भेजने में जमानत का इंतजार किया और वह भी अगले दिन भेजा, जब हमने कलेक्टर कार्यालय में इस पत्र की जानकारी चाहिए तो उन्होंने बताया कि 30 और 31 तारीख को शासकीय अवकाश था और अब तक यह पत्र यहां नहीं पहुंचा है।
तो अब तक कलेक्टर कार्यालय में पत्र नहीं पहुंचा है और हर विभाग जिस तरह से इस मामले में सुस्ती दिख रहा है, उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस पत्र के कमिश्नर कार्यालय तक पहुंचाने और निलंबन की कार्यवाही तक जगदीश सरवटे न जाने कितनी फाइलों में दस्तखत कर अपना गोलमाल जारी रखेगा।
प्रशासन की चुप्पी पर खड़े हुए सवाल
अब बड़ा सवाल यह है कि जब नियम साफ कहते हैं कि 48 घंटे जेल में रहने पर निलंबन अनिवार्य है, तो 120 घंटे जेल में रहने वाले सरवटे क्यों बच गए। इसके साथ ही वन विभाग उनकी गिरफ्तारी की आधिकारिक जानकारी के लिए जमानत का इंतजार क्यों कर रहा था। सवाल खड़े हो रहे हैं कि क्या विभाग और प्रशासन, दोनों मिलकर सरवटे को बचाने की कोशिश कर रहे हैं?
सरवटे का दबदबा या सिस्टम की कमजोरी
सरवटे पर EOW ने 7.54 करोड़ रुपए की बेनामी संपत्ति का खुलासा किया था। उनके रिसॉर्ट, होटल, फ्लैट और शराब की बोतलें जब्त की गईं थी।आबकारी अधिनियम और वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट में मामला दर्ज हुआ। इसके बावजूद विभाग उन्हें आरामदायक पद देता रहा।
अब जेल काटने के बाद भी निलंबन तक की कार्यवाही नहीं हुई। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या सरवटे ने विभाग में इतना दबदबा बना लिया है कि अधिकारी भी उस पर हाथ डालने से डर रहे हैं, या फिर यह पूरा सिस्टम भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने में लगा है?
सरवटे की इज्जत बचाने हर विभाग ने की कोशिश
वन विभाग के द्वारा लगातार यह बताया गया कि बाघ की खाल मिलने के मामले में जगदीश सरवटे की मां को आरोपी बनाया गया है। 'द सूत्र' की पड़ताल में यह सामने आया कि जगदीश सरवटे सहित उसकी पत्नी को भी इस मामले में आरोपी बनाया गया है।
जब 'द सूत्र' ने इस बारे में वन विभाग के ही अधिकारियों से चर्चा की तो पहले तो उन्होंने इसको सिरे से खारिज कर दिया। लेकिन जब हमने जगदीश सरवटे के जमानत के दस्तावेज और अन्य तथ्यों के साथ सवाल किया तब उन्होंने माना कि जगदीश सरवटे को भी इस मामले में आरोपी बनाया गया था। अब यहां पर वन विभाग के उस लेटर पर भी सवाल खड़ा हो रहा है जो कथित तौर पर कलेक्टर को भेजा गया है क्योंकि वह लेटर दिखाने से विभाग के लिपिक भी बच रहे हैं।
कमजोर आपत्ति के चलते कोर्ट से मिली जमानत
जगदीश सरवटे ने गिरफ्तारी के बाद 26 अगस्त को कोर्ट में जमानत याचिका लगाई, आमतौर पर वाइल्डलाइफ प्रोटक्शन एक्ट की धाराओं पर जिला अदालत के द्वारा जमानत मिलना लगभग नामुमकिन माना जाता है।
उदाहरण के तौर पर अगर बात करें तो आईजॉल डिस्ट्रिक्ट मिजोरम के जामखान काप जो पहले आर्मी के जवान रहे हैं उनके जैसे कई ऐसे अन्य मामले हैं जिसमें वन्य प्राणी अधिनियम की धारा 49,50,51 के चलते जिला और सेशन कोर्ट से आरोपी को जमानत का लाभ कभी नहीं मिलता। लेकिन जबलपुर जिला अदालत में अपनी सरकारी नौकरी और ब्लड प्रेशर और हार्ट का पेशेंट होने का हवाला देते हुए जगदीश सरवटे को पहली ही सुनवाई में कोर्ट से जमानत मिल गई।
जिला अदालत के गलियारों पर भी इस फैसले पर चर्चा बनी हुई है कि आखिर कैसे जगदीश सरवटे के हर तथ्य को माना गया और शासन की ओर से इस मामले में कोई भी गंभीर आपत्ति प्रस्तुत नहीं की गई जिसके कारण सरवटे को पहली ही सुनवाई में जमानत भी मिल गई।
पूरी व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर रहा मामला
यह मामला न सिर्फ विभाग की नियमों को ताक पर रखने वाली कार्यशैली को उजागर करती है, बल्कि यह भी बताती है कि कैसे सिस्टम भ्रष्ट अधिकारियों को बचाने के लिए गोल-गोल चक्कर काटता रहता है।
इस मामले में वन विभाग हो या ट्राइबल डिपार्टमेंट हर किसी ने सरवटे को बचाने के लिए अपनी-अपनी भूमिका निभाई है और यही कारण है कि सरवटे जैसा भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरा अधिकारी आज भी अपनी सरकारी कुर्सी पर बैखौफ बैठा हुआ है।
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