संजय गुप्ता, INDORE. मध्यप्रदेश शासन द्वारा सभी मंडल, आयोग, प्राधिकरण, बोर्ड, निगम से अशासकीय यानि राजनीतिक नियुक्तियों को रद्द कर दिया है। इसके बाद इंदौर विकास प्राधिकरण (IDA) पद से जयपाल सिंह चावड़ा की विदाई हो गई है। इसी के साथ मध्यप्रदेश युवा खेल आयोग से डॉ. निशांत खरे को हटा दिया है। वहीं आईडीए पर राजनीतिक नियुक्ति नहीं होने पर नियमानुसार संभागायुक्त ही प्रशासकीय प्रमुख होंगे।
चावड़ा संभागीय संगठन मंत्री से यहां तक ऐसे पहुंचे थे
चावड़ा और खरे दोनों ही पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान के खास थे। चावड़ा बीजेपी के संभागीय संगठन मंत्री थे और देवास के मूल निवासी हैं। 2 साल ढाई महीने पहले सुहास भगत की मदद से वे IDA चेयरमैन पद पर पहुंचे और फिर सीएम चौहान के भी खास हो गए थे, हर मंच पर सीएम उनका नाम जरूर लेते थे। हालांकि चावड़ा की नियुक्ति का भारी विरोध हुआ, क्योंकि वे देवास के थे और अभी तक इंदौर के नेता ही इस पद पर रहे थे, चाहे वे मधु वर्मा हों या शंकर लालवानी। उनकी नियुक्ति पर तो तब उमेश शर्मा (निधन हो चुका है) ने भी तंज कसकर सोशल मीडिया पर पोस्ट डाली थी, क्योंकि उन्हें ही इसका दावेदार माना जा रहा था, लेकिन भगत की मदद से उन्होंने पद पा लिया।
खरे को विधानसभा टिकट के बदले युवा आयोग का पद दिया
खरे इंदौर विधानसभा 5 और महू से टिकट के दावेदार थे, लेकिन पार्टी ने उनसे उनकी भूमिका को लेकर बात की और फिर तय हुआ कि वे चुनाव नहीं लड़ेंगे। इसके बाद उन्हें समायोजित करते हुए युवा आयोग का अध्यक्ष बना दिया गया, क्योंकि वे आदिवासी युवाओं के लिए काफी मैदानी काम में जुटे हुए थे। इसका असर विधानसभा चुनाव में दिखा भी।
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अब चावड़ा, खरे का राजनीतिक भविष्य क्या ?
चावड़ा और खरे के हटने के बाद अब निश्चित तौर पर ही उनकी नजरें लोकसभा टिकट के लिए होंगी। हालांकि इस मामले में चावड़ा का दावा अब राजनीतिक तौर पर काफी कमजोर हो चुका है, क्योंकि भगत अब मध्यप्रदेश की राजनीति में मजबूत नहीं रहे हैं, हालांकि हितानंद शर्मा अभी भी सुहास भगत की लॉबी को सपोर्ट करते हैं, लेकिन बदले हुए राजनीतिक माहौल में अब ये आसान नहीं है। चावड़ा ने देपालपुर से विधानसभा टिकट की भी चाहत रखी थी, लेकिन चौहान के खास मनोज पटेल के वहां होने से बात नहीं बनी और उन्हें ही टिकट मिला और जीते भी। लेकिन इस दौड़ में खरे का नाम पहले से ही चर्चा में था और अब आगे बढ़ सकता है। इसके 2 कारण, पहला तो ये कि वे आदिवासी वर्ग से जुड़े हैं और केंद्र-राज्य दोनों का इस वर्ग पर फोकस है। दूसरा ये कि उनकी संघ की पृष्ठभूमि है। साथ ही उनके संबंध सभी से मधुर हैं। हालांकि महापौर टिकट के लिए भी उनका नाम चला था, लेकिन उस समय बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय की आपत्ति आ गई और फिर संगठन और संघ ने पुष्यमित्र भार्गव को प्राथमिकता दी। ऐसे में अब नए परिदृश्य में यदि पार्टी शंकर लालवानी का टिकट काटने का मन बनाती है तो फिर खरे एक मजबूत दावेदारी पेश करेंगे।