Janani Express Complaints
संजय शर्मा, BHOPAL. जननी एक्सप्रेस के जरिए मध्यप्रदेश की हर महिला को प्रसव के लिए निशुल्क अस्पताल पहुंचाने का दावा थोथा नजर आ रहा है। वजह है प्रदेश में प्रसव पीड़ा से बेहाल महिलाओं को अस्पताल ले जाने वाले जननी वाहनों का मौके पर न पहुंचना है। लोग कॉल ही करते रह जाते हैं, लेकिन वाहन कभी 2 घंटे तक नहीं पहुंचता तो कभी ड्राइवर किसी दूसरी जगह होने का बहाना बनाकर पल्ला झाड़ लेता है। नतीजा इस सेवा के भरोसे रहे वाली प्रसूता महिलाओं की जान पर बन आती है और कुछ मामलों में जच्चा-बच्चा दोनों की जान भी जा चुकी है, लेकिन सबसे संवेदनशील होने के बावजूद व्यवस्था सुधरने का नाम ही नहीं ले रही है।
चित्रकूट में पथरीले रास्ते पर जन्म
ताजा मामला सतना जिले के चित्रकूट का है। इसमें जननी वाहन के नहीं पहुंचने के कारण महिला को उसके परिजन झोली बांधकर अस्पताल ले जाने मजबूर हो गए, लेकिन पथरीले रास्ते पर महिला ने एक शिशु को जन्म देना पड़ा। प्रदेशभर से जननी एक्सप्रेस को लेकर शिकायतें सरकार तक पहुंच रही हैं। सबसे ज्यादा शिकायत देरी को लेकर है। लोग प्रसव के लिए महिला को अस्पताल ले जाने इस सेवा के कॉल सेंटर को कॉल करते हैं। उन्हें आश्वस्त भी कर दिया जाता है, लेकिन घंटे-दो घंटे इंतजार के बाद भी जब वाहन नहीं आता तो मजबूरी में किसी और वाहन का इंतजाम करना पड़ता है। ऐसी जगह जहां वाहन नहीं मिलते या परिवार किराया चुकाने की हालत में नहीं होता तो उनके सामने जोखिम खड़ा हो जाता है। नया मामला चित्रकूट का है। सीएम ने हाल ही में चित्रकूट के डेवलपमेंट के लिए नया प्लान बनाया है, लेकिन ये घटना यहां मूलभूत सुविधाओं की कमी को उजागर कर रही है।
चादर की झोली में प्रसूता
चित्रकूट के वार्ड-15 में बस्ती कस्बे की आबादी से दूर है। यहां ऊबड़-खाबड़ सड़क से लोगों को चलकर आना-जाना पड़ता है। बीते दिन बस्ती थार पहाड़ में रहने वाली महिला को प्रसव पीड़ा उठी तो परिजन ने जननी एक्सप्रेस बुलाने की कोशिश की। काफी कोशिश करने के बाद भी वाहन नहीं पहुंचा, उधर आदिवासी महिला संगीता मवासी दर्द से बेहाल हो रही थी। कोई उपाय नहीं सूझा तो परिजन ने चादर की झोली बनाकर एक डंडे पर उसे बांधा और संगीता को उसमें लादकर मुख्य सड़क तक ले जाने लगे। पथरीले रास्ते में लगने वाले झटकों से महिला का दर्द बढ़ता गया और अंत में परिवार को महिला को खुले रास्ते पर ही उसकी डिलीवरी करानी पड़ी। इसमें महिला और नवजात की जान को काफी जोखिम था, लेकिन दूसरा कोई रास्ता न होने के कारण परिवार को ऐसा करना पड़ा। बाद में महिला और बच्चे को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाकर भर्ती कराया गया। फिलहाल जच्चा-बच्चा ठीक बताए जा रहे हैं।
एयर एम्बुलेंस चला रहे पर जननी एक्सप्रेस पंचर
आदिवासी महिला की असुरक्षित और जोखिम भरी डिलीवरी के बाद परिवार और बस्ती के लोगों ने जननी एक्सप्रेस के नहीं पहुंचने के साथ ही सड़क नहीं बनाने पर सवाल उठाए हैं। बस्ती के लोगों ने कटाक्ष करते हुए कहां कि सरकार प्रदेश में एयर एम्बुलेंस चलाने पर ध्यान दे रही है, लेकिन महिलाओं की प्रसूति के लिए चल रही जननी एक्सप्रेस सेवा की बदहाली की सुध कौन लेगा। लोगों ने बताया कि करीब डेढ़-दो किलोमीटर तक हमें हर बार प्रसव हो या बीमारी महिला और मरीजों को ऐसे ही मुख्य सड़क तक ले जाना पड़ता है। कच्चे रास्ते पर एम्बुलेंस और जननी एक्सप्रेस आती नहीं है और पक्की सड़क बन नहीं पा रही है। बस्ती के लोगों ने चादर में लादकर मरीजों को ले जाने के इस तरीके को झोली एक्सप्रेस नाम दे दिया है।
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कॉल के 2 घंटे बाद भी नहीं आई जननी एक्सप्रेस
चित्रकूट की घटना एक दिन पुरानी है। वहीं जननी एक्सप्रेस के 2 घंटे तक नहीं पहुंचने के एक और ताजा घटना टीकमगढ़ जिले के बल्देवगढ़ से सामने आई है। यहां नन्ही टेहरी गांव में रहने वाले सुरेश रैकवार की पत्नी सीमा को गुरुवार सुबह प्रसव पीड़ा होने पर उन्होंने जननी एक्सप्रेस को कॉल किया था। जब समय पर जननी एक्सप्रेस नहीं पहुंची तो सुरेश के दोबारा फोन करने पर ड्राइवर अलग-अलग बहाने बनाता रहा। 2 घंटे से ज्यादा होने पर भी जब वाहन नहीं आया तो मजबूरी में सुरेश बाइक से पत्नी सीमा को अस्पताल ले जाने लगा, लेकिन रास्ते में ही सीमा की डिलीवरी हो गई। परिजन ने प्रसव के बाद सीमा और नवजात को मेटरनिटी यूनिट में भर्ती कराया। इसकी शिकायत अस्पताल प्रबंधन से की गई तो अधिकारियों ने मामले में कार्रवाई का भरोसा दिलाया है।
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