ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का निधन, रायपुर एम्स में थे भर्ती

ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का 89 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वह कुछ दिनों से रायपुर एम्स में भर्ती थे, जहां उन्होंने श्वसन रोग और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के कारण अंतिम सांस ली।

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Jitendra Shrivastava
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Vinod Kumar Shukla

Photograph: (thesootr)

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chhattisgarh. ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का 89 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वह कुछ दिनों से रायपुर एम्स में भर्ती थे, जहां उन्होंने श्वसन रोग और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के कारण अंतिम सांस ली। वह इंटरस्टिचियल लंग डिजीज और निमोनिया से भी पीड़ित थे।

89 वर्ष की आयु में निधन

प्रख्यात साहित्यकार और ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता विनोद कुमार शुक्ल का 89 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वह कुछ दिनों से रायपुर एम्स में भर्ती थे और गंभीर श्वसन रोग, इंटरस्टिचियल लंग डिजीज (आईएडी), निमोनिया और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे। शुक्ल की तबीयत मंगलवार को और भी बिगड़ गई, और उन्होंने एम्स में आखिरी सांस ली। उनकी मृत्यु साहित्य जगत के लिए एक बड़ी क्षति है।

राजनांदगांव जिले में हुआ था जन्म

विनोद कुमार शुक्ल का जन्म 1 जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में हुआ। उन्होंने साहित्य को अपने जीवन का उद्देश्य बनाया और अधिकांश समय साहित्य सृजन में समर्पित किया। हिंदी साहित्य के इस प्रमुख लेखक को अपनी सरल भाषा, गहरी संवेदनशीलता और रचनात्मक लेखन के लिए जाना जाता था।

मिला 59वां ज्ञानपीठ पुरस्कार

2024 में विनोद कुमार शुक्ल को उनके अनमोल योगदान के लिए 59वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ। वह हिंदी के उन 12 साहित्यकारों में शामिल हैं जिन्हें यह सम्मान मिला है, और छत्तीसगढ़ राज्य के पहले लेखक हैं जिन्हें यह प्रतिष्ठित पुरस्कार मिला। हाल ही में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने रायपुर एम्समें जाकर शुक्ल जी का हाल-चाल लिया था।

शुक्ल की लेखन की विशेषताएं

विनोद कुमार शुक्ल ने न केवल उपन्यास बल्कि कविता के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी पहली कविता ‘लगभग जयहिंद’ (1971) प्रकाशित हुई थी। उनके प्रमुख उपन्यासों में ‘नौकर की कमीज’, ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ और ‘खिलेगा तो देखेंगे’ शामिल हैं।

उनके उपन्यास ‘नौकर की कमीज’ पर मणिकौल द्वारा बनी फिल्म इसी नाम से प्रसिद्ध हुई। शुक्ल के उपन्यास ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ को साहित्य अकादमी पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था। उनका लेखन हमेशा अपनी सरल भाषा, संवेदनशीलता और अनूठी शैली के लिए सराहा गया। शुक्ल ने हिंदी साहित्य में न केवल गहरी संवेदनशीलता का समावेश किया बल्कि प्रयोगधर्मी लेखन की नई दिशा भी निर्धारित की।

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