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बैगा जनजाति की प्रख्यात चित्रकार और पद्मश्री सम्मानित जोधइया अम्मा का निधन हो गया है। 86 वर्ष की उम्र में मध्य प्रदेश के उमरिया जिले के लोधा गांव में उन्होंने अंतिम सांस ली। जनजातीय कला और संस्कृति को देश-विदेश में पहचान दिलाने वाली जोधइया अम्मा ने एक साधारण मजदूर से चित्रकार बनने तक का प्रेरणादायक सफर तय किया। जोधइया अम्मा की पेंटिंग्स आज भी कई देशों में प्रदर्शित हैं। उन्हें नारी शक्ति पुरस्कार और पद्मश्री सम्मान जैसे प्रतिष्ठित अवार्ड मिल चुके हैं। उनके निधन पर मुख्यमंत्री और जनजातीय कार्य मंत्री ने शोक व्यक्त किया है।
67 साल की उम्र में सीखी चित्रकारी
जब उनके पति दुनिया को छोड़कर चले गए तो जोधैया बाई के दिमाग में चित्रकारी का ख्याल आया। 67 वर्ष की आयु में उन्होंने कला की ओर रुख किया। उन्होंने कुछ नया सीखने का प्रयास किया। उन दिनों दिवंगत कलाकार आशीष स्वामी जनगण तस्वीर खाना चलाते थे। इसी स्टूडियो में जोधैया ने चित्रकारी सीखी। पहले फर्श पर रंगोली बनानी सीखी, फिर सब्जियों पर चित्रकारी की और बाद में लकड़ी पर अपनी कला को उभारा। बाद में जब उन्हें कागज पर चित्रकारी करने को कहा गया तो जोधैया ने हैंडमेड पेपर और कैनवास पर चित्रकारी करनी शुरू की।
संघर्ष से चमक तक
जोधइया अम्मा का जीवन प्रेरणा का प्रतीक है। 14 साल की उम्र में शादी और कुछ सालों बाद पति की मृत्यु के बाद, उन्होंने पत्थर तोड़कर मजदूरी करना शुरू किया ताकि अपने बच्चों का पालन-पोषण कर सकें। साल 2008 में आशीष स्वामी के मार्गदर्शन में उन्होंने चित्रकारी की शुरुआत की। इसके बाद, उन्होंने मिट्टी, कागज, लकड़ी और तुरई पर पेंटिंग बनानी शुरू की। उनकी पेंटिंग्स जनजातीय परंपरा, भगवान शिव, वन्यजीवों और पर्यावरण संरक्षण जैसे विषयों पर आधारित थीं। उनकी कला को जल्द ही राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली और उन्हें पद्मश्री और नारी शक्ति पुरस्कार जैसे प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त हुए।
जनजातीय कला को दी नई पहचान
जोधइया अम्मा की पेंटिंग्स में बैगा जनजाति की परंपराएं, देवलोक की परिकल्पना, भगवान शिव और वन्य जीवों की कहानियां जीवंत हो उठती थीं। उनकी पेंटिंग्स ने पर्यावरण संरक्षण और वन्य जीवों के महत्व को रेखांकित किया। उनके द्वारा बनाए गए चित्र इटली, फ्रांस, इंग्लैंड, अमेरिका और जापान जैसे देशों में भी प्रदर्शित किए गए। इसके अलावा, भोपाल के जनजातीय संग्रहालय में उनके नाम से एक स्थायी प्रदर्शनी भी बनाई गई है।
पद्मश्री और नारी शक्ति पुरस्कार से नवाजा गया
जोधइया अम्मा को उनके अतुलनीय योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। 2022 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें नारी शक्ति पुरस्कार प्रदान किया था। इसके बाद, 22 मार्च 2023 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें पद्मश्री सम्मान से नवाजा। उन्होंने इस सम्मान को अपने गुरु आशीष स्वामी को समर्पित किया था। उनके जीवन का संघर्ष और समर्पण कला के क्षेत्र में एक मिसाल बन गया है।
कला जगत और राजनेताओं ने जताया शोक
जोधइया अम्मा के निधन पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और जनजातीय कार्य मंत्री डॉ. कुंवर विजय शाह ने गहरा शोक व्यक्त किया। मुख्यमंत्री ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, "मध्य प्रदेश ने एक महान कलाकार को खो दिया है, जिसने जनजातीय कला और परंपराओं को विश्व पटल पर नई पहचान दिलाई।" मंत्री विजय शाह ने भी उनकी कला और उनके समर्पण को "अद्वितीय योगदान" बताते हुए श्रद्धांजलि दी। उनका मानना है कि जनजातीय संस्कृति और परंपराओं के संरक्षण में जोधइया अम्मा का योगदान अमूल्य और ऐतिहासिक है।
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