पार्षद कमलेश कालरा बच गए, OBC होने के मूल दस्तावेज नहीं, IAS कुमार ने दी क्लीन चिट

मध्यप्रदेश के इंदौर में पार्षद कमलेश कालरा की पार्षदी पर खतरा टल गया है। उनका ओबीसी सर्टिफिकेट विवादों में था, और कांग्रेस के नेता सुनील यादव ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी

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Sanjay Gupta
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विधायक मालिनी गौड़ के खास समर्थक और कुछ समय पहले जीतू यादव कांड से चर्चा में आए पार्षद कमलेश कालरा की पार्षदी पर फिलहाल खतरा टल गया है। इस मामले में राज्य शासन पिछड़ा वर्ग उच्च स्तरीय छानबीन समिति प्रमुख सचिव डॉ. ई रमेश कुमार ने मूल दस्तावेज नहीं होने के बाद भी क्लीन चिट दे दी है।

हाईकोर्ट ने यह केस खत्म किया, लेकिन यह दी छूट

इस मामले में कांग्रेस से पार्षद का चुनाव लड़ने वाले सुनील यादव ने याचिका दायर की थी। इसमें हाईकोर्ट ने छानबीन समिति से जांच कर रिपोर्ट मांगी थी। यादव का आरोप है कि कालरा सिंधी है जो ओबीसी में नहीं आते हैं, उनका साल 2009 का ओबीसी सर्टिफिकेट गलत है। जब समिति ने हाईकोर्ट के आदेश पर 6 माह में जांच नहीं की तो उन्होंने अवमानना याचिका लगाई। इस पर समिति ने कई बार समय मांगा, फिर एसीएस अजीत केसरी रिटायर हुए और इसके बाद ई रमेश कुमार आए। हाईकोर्ट ने अंतिम अवसर दिया। अधिवक्ता मनीष यादव ने बताया कि इसके बाद यह रिपोर्ट पेश की गई। इसके चलते हाईकोर्ट इंदौर ने अवमानना केस खत्म कर दिया क्योंकि छानबीन समिति ने रिपोर्ट दे दी है, लेकिन याचिकाकर्ता को राहत दी है कि वह सर्टिफिकेट को लेकर अलग से याचिका दायर कर सकते हैं।

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छानबीन समिति ने इस तरह कालरा का किया बचाव

छानबीन समिति ने इस मामले में कलेक्टोरेट से मूल दस्तावेज की फाइल मांगी थी। लेकिन यह मूल दस्तावेज है ही नहीं। कलेक्टोरेट से केवल यह बताया गया कि मूल दस्तावेज नहीं है। लेकिन साल 2009 में उनके लोहार जाति का ओबीसी सर्टिफिकेट जारी हुआ है, जो पंजी में दर्ज है। इसके बाद ई रमेश कुमार ने रिपोर्ट में यह लिखा है कि- समिति के सामने शिकायतकर्ता गोपाल कोडवानी, सुनील यादव द्वारा ऐसे कोई तथ्य, दस्तावेज पेश नहीं किए गए जिससे कि सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी जाति प्रमाण पत्र 9 नवंबर 2009 को निरस्त करने की आवश्यकता हो। इसलिए समिति इस प्रमाणपत्र में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करने का निर्णय लेते हुए प्रकरण को इसी स्तर पर समाप्त किया जाता है।

कालरा ने बताया जीत

इसके बाद कालरा ने कहा कि हमेशा सच्चाई और ईमानदारी से जनता की सेवा करता रहूंगा। समाज का विश्वास मेरी ताकत है। समर्थकों ने कहा कि यह फैसला उन लोगों के लिए तमाचा है जो समाज के सेवकों के खिलाफ साजिश रचते हैं।

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बाकी कार्यकाल भी निकल जाएगा

कालरा के सर्टिफिकेट का विवाद उनके चुनाव जीतने के बाद से ही चल रहा है। इसमें लगी याचिकाओं में ढाई साल में यह केस यहां तक पहुंचा है। फिर याचिकाएं भी लगती है तो भी समय लगेगा। नगर निगम का कार्यकाल जुलाई 2027 तक है, ऐसे में संभावना यही है कि कालरा अपना कार्यकाल पूरा कर ही लेंगे।

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