मुरैना के काजी बसई गांव की सेना में योगदान की प्रेरक कहानी

मुरैना के काजी बसई गांव ने सेना में अपनी ऐतिहासिक भागीदारी से एक मिसाल कायम की है। इस गांव के लोग कई पीढ़ियों से सेना में सेवा दे रहे हैं और इनकी वीरता और समर्पण को कभी नहीं भुलाया जा सकता। 

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Sandeep Kumar
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मुरैना जिले का काजी बसई गांव न सिर्फ अपने ऐतिहासिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां के लोग भारतीय सेना में अपने योगदान के लिए भी गौरव महसूस करते हैं। इस गांव की आबादी करीब 5000 है, जिसमें से 500 से ज्यादा लोग सेना में सेवा दे चुके हैं। चार परिवारों की पांच पीढ़ियां सेना में हैं और गांव के लोगों के दिलों में देशभक्ति और सैन्य सेवा का खास स्थान है।

काजी बसई: सैनिकों का गांव

काजी बसई गांव में हर घर का कोई न कोई सदस्य सेना में रहा है। गांव के पहले शहीद सैनिक अब्दुल वसीद थे, जो ग्वालियर में सिंधिया स्टेट की सेना में भर्ती हुए थे। 1914 में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान वे ब्रिटिश सेना के साथ जर्मनी के खिलाफ लड़े थे, लेकिन युद्ध में शहीद हो गए। इस शहीदी ने गांव में सैन्य सेवा के प्रति जो लगाव था, उसे और मजबूत किया।

सैन्य सेवा के लिए प्रेरित करने वाले परिवार

गांव में कई परिवारों ने पीढ़ी दर पीढ़ी सेना में सेवा की है। हाजी मोहम्मद रफी, जो खुद एक सेवानिवृत्त सैनिक हैं, इन परिवारों का हिस्सा रहे हैं। उन्होंने बताया कि काजी बसई गांव के लोग हमेशा देश की सेवा में तत्पर रहते हैं और उन्हें अपने पूर्वजों की सैन्य परंपरा पर गर्व है।

विश्व युद्ध और भारत-पाकिस्तान युद्ध में योगदान

काजी बसई के लोग दोनों विश्व युद्धों में शामिल हुए थे। 1940 में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान यहां के 16 जवान ब्रिटिश सेना के हिस्से के रूप में लड़े थे। इनमें हाजी सलीमुद्दीन, हाजी इस्लामुद्दीन और अब्दुल अली जैसे सैनिक शामिल थे। इसके अलावा, 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी कई सैनिकों ने अपनी वीरता का प्रदर्शन किया।

1971 का युद्ध और बांग्लादेश की स्वतंत्रता

1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में काजी बसई के सैनिकों ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता की लड़ाई में भाग लिया। इस युद्ध में मोहम्मद मुजीबुल्ला और हाजी मोहम्मद रफी जैसे वीर सैनिक शामिल थे, जिन्होंने भारत की सेना के साथ मिलकर पाकिस्तान के खिलाफ संघर्ष किया। इन सैनिकों का योगदान भारतीय सेना के इतिहास में हमेशा याद रखा जाएगा।

कश्मीर में गोरिल्ला युद्ध में हिस्सा

काजी बसई के कई सैनिक कश्मीर में गोरिल्ला युद्ध में भी शामिल हुए थे। हाजी मोहम्मद रफी, जो 1965 के युद्ध में विशेष सेवा मेडल और 1971 के युद्ध में राष्ट्रपति मेडल से सम्मानित हुए, ने कश्मीर की अपनी सैन्य यात्रा को याद करते हुए बताया कि कैसे वे और उनके साथी सैनिक कश्मीर के दुर्गम इलाकों में पाकिस्तान के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे।

सैन्य अनुभव और गांव की संस्कृति

गांव के चौपालों पर लोग अक्सर सैन्य जीवन के बारे में चर्चा करते हैं। यह केवल एक पारंपरिक वार्ता का हिस्सा नहीं है, बल्कि सैन्य सेवा की एक गहरी संस्कृति है, जो यहां के हर व्यक्ति के जीवन का हिस्सा है। यहां के लोग सैन्य सेवा को एक सम्मान और कर्तव्य के रूप में मानते हैं, और इसे अगली पीढ़ी तक पहुंचाने की जिम्मेदारी समझते हैं।

काजी बसई का शहीदों का सम्मान

काजी बसई गांव में शहीदों का सम्मान विशेष रूप से किया जाता है। यहां की मस्जिदों में नमाज के बाद लोग अक्सर अपने सैन्य अनुभवों को साझा करते हैं। शहीदों की याद में गांव में विशेष कार्यक्रम और आयोजन किए जाते हैं, जहां सैनिकों की वीरता को सलाम किया जाता है। यह गांव भारतीय सेना की जड़ों से जुड़ी एक प्रेरक कहानी है।

काजी बसई: सैन्य परंपरा का प्रतीक

काजी बसई गांव ने भारतीय सेना को अपनी वीरता और सम्मान के साथ कई वीर सपूत दिए हैं। यहां की सैन्य परंपरा न केवल एक समृद्ध इतिहास का हिस्सा है, बल्कि यह एक प्रेरणा भी है, जो हर भारतीय नागरिक को देश की सेवा में अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए प्रेरित करती है।

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