BHOPAL.मध्य प्रदेश सरकार ने भ्रष्ट अफसरों और कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की प्रक्रिया को तेज करने के लिए बड़ा कदम उठाया है। नई व्यवस्था के तहत भ्रष्ट अफसर-कर्मचारी लंबे समय तक अभियोजन से बच नहीं पाएंगे। इसके तहत पूरी प्रक्रिया को जमीन स्तर तक उतारते हुए डीसेंट्रलाइज किया गया है। इसी के तहत नियुक्तिकर्ता अधिकारी को पॉवरफुल बनाया गया है। अब ईओडब्ल्यू और लोकायुक्त की कार्रवाई के बाद भ्रष्टाचार का केस दर्ज होने पर अभियोजन की स्वीकृति सीधे नियुक्तिकर्ता अधिकारी दे सकेंगे।
मान लीजिए यदि किसी पटवारी के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला दर्ज होता है तो अभियोजन की स्वीकृति एसडीएम दे सकेंगे। पहले ऐसे मामले विभाग तक पहुंचते थे। छोटे-बड़े मामलों के चलते मंत्रालय में फाइलों के ढेर लगते। कई मामलों में तो ऐसा होता कि जिसके खिलाफ अभियोजन स्वीकृति मांगी जाती, वह रिटायर्ड तक हो जाता, पर अभियोजन स्वीकृति नहीं मिलती थी। इन्हीं सब मामलों को देखते हुए जीएडी ने नियमों में फेरबदल किया है।
इस तरह की है नई व्यवस्था
1. भ्रष्टाचार के मामलों में लोकायुक्त और ईओडब्लयू की रेड के बाद सीधे नियुक्तिकर्ता अधिकारी अभियोजन की स्वीकृति दे सकेंगे।
2. यदि नियुक्तिकर्ता अधिकारी को लगता है कि अभियोजन स्वीकृति की जरूरत नहीं है तो यहां से मामला संबंधित विभाग के पास जाएगा।
3. यदि विभाग भी सहमति नहीं है तो केस लॉ को भेजा जाएगा। लीगल टीम पूरे मामले की पड़ताल कर अपना अभिमत देगी।
4. लीगल टीम के बाद पूरा प्रकरण कैबिनेट में रखा जाएगा, वहां अंतिम मुहर लगेगी।
इस तरह तय की समय सीमा
यह जरूर है कि अभियोजन स्वीकृति के हर मामले में अब विधि विभाग की राय लेना अनिवार्य होगा। पहले ऐसा करना जरूरी नहीं था। नए बदलाव के तहत नियुक्तिकर्ता अधिकारी को केस की जांच कर जांच एजेंसी को भेजना होगा। जांच एजेंसी चालान पेश करेगी और अधिकारी को सूचित करेगी। पूरी प्रक्रिया 45 दिन में पूरी होगी।
कैबिनेट स्तर पर भी बदलाव
यदि नियुक्तिकर्ता अधिकारी अभियोजन की स्वीकृति नहीं देता तो कारण सहित यह मामला विधि विभाग को भेजेगा। विधि विभाग अपने सुझाव के साथ इसे संबंधित विभाग को भेजेगा। यदि संबंधित विभाग और विधि विभाग सहमत नहीं होते तो मामला कैबिनेट तक पहुंचेगा। कैबिनेट को भी 45 दिनों में निर्णय लेना जरूरी होगा। पहले कैबिनेट के लिए कोई समय सीमा तय नहीं थी।
निजी शिकायतों पर सुनवाई का प्रावधान
किसी अफसर या कर्मचारी के खिलाफ यदि निजी परिवाद (शिकायत) आता है तो संबंधित अधिकारी/कर्मचारी का पक्ष सुनना जरूरी होगा। सुनवाई के बाद केस का निराकरण भी तीन महीने के भीतर किया जाना होगा। वहीं आउटसोर्स और दैनिक वेतन भोगियों के मामले में जांच एजेंसी ही अभियोजना स्वीकृति दे सकेगी।
भ्रष्टाचारियों पर लगेगी लगाम
इस बदलाव से भ्रष्ट अफसरों और कर्मचारियों को अब अभियोजन से बचने का मौका नहीं मिलेगा। समय सीमा तय होने से मामले लंबित नहीं रहेंगे। इसी के साथ नियुक्तिकर्ता अधिकारी को सीधे अधिकार देने से भ्रष्टाचारियों पर अंकुश लगेगा। व्यवस्था और दुरुस्त होगी। जांच प्रक्रिया में तेजी आएगी। छोटे-बड़े मामलों में देरी नहीं होगी। सबसे खास यह है कि विधि विभाग की राय अनिवार्य होने से अभियोजन प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी।
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