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बैतूल जिला मुख्यालय से 85 किमी दूर है दानवाखेड़ा गांव। यहां टाट से बनी झोपड़ी में पाठशाला ( स्कूल ) चलती है। पाठशाला गांव वालों ने बनाई है, जिसमें 6 से 14 साल के 135 बच्चे पढ़ते हैं। पढ़ाने के लिए गांव वालों ने ही एक शिक्षक बाबूलाल लविस्कर को रखा है, जो 24 किमी दूर बर्री गांव से नि:शुल्क पढ़ाने आते हैं। गांव वाले चंदा कर उन्हें पेट्रोल व अन्य खर्च के 1500 से 2000 रुपए देते हैं। दरअसल, सरकार इस गांव में स्कूल नहीं बना रही। इसकी वजह ये है कि ग्रामीण वन विकास निगम की जमीन पर काबिज हैं, जहां से सरकार इन्हें बेदखल करना चाहती है। 2003 में छिंदवाड़ा जिले से ये लोग रामपुर पंचायत क्षेत्र के इस गांव में वन विकास निगम की जमीन पर आकर बसे।
वन विभाग कर चुका है बेदखली की कोशिश
कई बार वन विभाग ने बेदखल करने की कोशिश की, लेकिन ग्रामीणों ने अपना हक नहीं छोड़ा। ये 750 लोग दानवाखेड़ा में दो वार्ड में रहते हैं। वन भूमि होने के कारण यहां शासन ने यहां सड़क, पानी, स्कूल, आंगनवाड़ी और बिजली की व्यवस्था आज तक नहीं की है। इसी कारण गांव वाले चार साल से अपने बच्चों को शिक्षा देने के लिए समता पाठशाला चला रहे हैं, जिसका सरकारी शिक्षा तंत्र से कोई संबंध नहीं है।
प्रशिक्षण केंद्र नहीं हमें स्कूल चाहिए-ग्रामीण
दानवाखेड़ा में पहले रेंसीडेंसियल विशेष प्रशिक्षण केंद्र खोलने का प्रस्ताव भेजा था, जो स्वीकृत हो चुका था, लेकिन ग्रामीणों द्वारा प्रशिक्षण केंद्र खोलने से मना कर दिया था। उनका कहना था हमें स्कूल चाहिए। इसके बाद यहां पर स्कूल खोलने का प्रस्ताव राज्य शिक्षा केंद्र को भेजा है।