पराली जलाना देशभर में प्रदूषण का एक बड़ा कारण बनती जा रही है। इसे लेकर अब केवल प्रशासन ही नहीं, बल्कि न्यायिक प्रणाली से जुड़े लोग भी सक्रिय हो गए हैं। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने पर्यावरण संरक्षण और जनहित को ध्यान में रखते हुए एक ऐतिहासिक निर्णय लिया है। एसोसिएशन ने यह घोषणा की है कि वे ऐसे किसानों की अदालत में पैरवी नहीं करेंगे, जो पराली जलाने के मामलों में आरोपी हैं। बार एसोसिएशन का यह फैसला इस समस्या से निपटने के लिए एक मजबूत सामाजिक और नैतिक संदेश दे रहा है।
बार एसोसिएशन ने लिया निर्णय
बार एसोसिएशन के अध्यक्ष एडवोकेट डी. के. जैन ने इस फैसले को स्पष्ट करते हुए कहा, “पराली जलाने से न केवल पर्यावरण को गहरा नुकसान हो रहा है, बल्कि इसका दुष्प्रभाव आम लोगों के जीवन और स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है। हमारी एसोसिएशन ने गहन विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया है कि पराली जलाने के कारण दर्ज मामलों में आरोपी किसानों की ओर से कोई वकील अदालत में पैरवी नहीं करेगा। यह कदम पर्यावरण और जनजीवन की सुरक्षा के लिए उठाया गया है।”
पराली जलाने से होते हैं गंभीर नुकसान
परानी में आग लगाने का दुष्प्रभाव केवल खेतों और स्थानीय वातावरण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह वायु प्रदूषण को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक गंभीर बना रहा है। हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और दिल्ली जैसे राज्यों में इसकी वजह से वायु गुणवत्ता बेहद खराब हो चुकी है। सांस लेने में दिक्कत, आंखों में जलन, और फेफड़ों से जुड़ी बीमारियों के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। खेती में पराली जलाने से मिट्टी की उर्वरता कम होती है, क्योंकि इसमें मौजूद सूक्ष्मजीव और पोषक तत्व जलकर नष्ट हो जाते हैं। इसका सीधा असर किसानों पर पड़ता है, जिन्हें फसल उगाने के लिए अधिक रासायनिक उर्वरकों का उपयोग करना पड़ता है। यह न केवल फसल की गुणवत्ता को खराब करता है, बल्कि मानव स्वास्थ्य पर भी गंभीर दुष्प्रभाव डालता है।
बार एसोसिएशन की सराहनीय पहल
बार एसोसिएशन का यह कदम पर्यावरण संरक्षण और जनस्वास्थ्य के प्रति उनकी गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। वकीलों का मानना है कि पराली जलाने के आरोपी किसानों का कानूनी बहिष्कार उन्हें इस खतरनाक प्रथा को छोड़ने के लिए मजबूर करेगा। इस फैसले को पर्यावरणीय संकट से निपटने के लिए एक प्रभावी सामाजिक और कानूनी प्रयास माना जा रहा है। वकीलों ने इसे अपनी पेशेवर जिम्मेदारी और सामाजिक कर्तव्य का हिस्सा बताते हुए न्याय के नए मानदंड स्थापित करने की दिशा में एक कदम बताया है।
यह है पर्यावरण विशेषज्ञों की राय
पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि पराली जलाने की समस्या का समाधान केवल कानून और दंड के माध्यम से नहीं किया जा सकता। किसानों को पराली के विकल्प जैसे आधुनिक तकनीक, फसल अवशेष प्रबंधन और जागरूकता कार्यक्रमों से जोड़ना जरूरी है। बार एसोसिएशन का यह निर्णय इस दिशा में एक नैतिक दबाव बनाने का काम करेगा। यह किसानों को यह सोचने पर मजबूर करेगा कि उनके द्वारा उठाया गया कदम केवल उनके लिए नहीं, बल्कि समाज के लिए भी हानिकारक है।
ये खबर भी पढ़ें...
पराली जलाने को लेकर दिल्ली की CM आतिशी ने मध्यप्रदेश पर लगाए आरोप
पराली जलाने पर सख्त हुई केंद्र सरकार , जुर्माना बढ़ाकर किया दोगुना
समय-समय पर जारी होते रहे हैं रोकने आदेश
सरकार और अदालत ने समय-समय पर पराली में आग लगाने को रोकने के लिए दिशा-निर्देश और कानून बनाए हैं। इसके बावजूद, जागरूकता और संसाधनों की कमी के कारण यह समस्या बरकरार है। बार एसोसिएशन का यह निर्णय न केवल कानूनी प्रणाली की सख्ती को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि पर्यावरण की रक्षा केवल प्रशासनिक कर्तव्य नहीं है, बल्कि इसमें समाज के सभी वर्गों की भागीदारी आवश्यक है।
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट बार एसोसिएशन का पराली जलाने के मामलों में आरोपी किसानों की पैरवी न करने का निर्णय एक साहसिक और अनुकरणीय कदम है। यह पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक जागरूकता के प्रति उनकी गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह पहल न केवल वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य संकट से निपटने में मददगार होगी, बल्कि यह समाज में पर्यावरण के प्रति एक नई चेतना और जागरूकता का संचार करेगी। ऐसे कदमों से न केवल वर्तमान पीढ़ी को लाभ होगा, बल्कि यह आने वाले समय में भी पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।
thesootr links
- मध्य प्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- छत्तीसगढ़ की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- रोचक वेब स्टोरीज देखने के लिए करें क्लिक