मध्यप्रदेश हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, शिक्षाकर्मियों को भी मिलेगी ग्रेच्युटी

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा शिक्षाकर्मियों को ग्रेच्युटी से वंचित नहीं करने का आदेश दिया। पंचायत सेवा से राज्य सेवा में आए शिक्षकों को भी ग्रेच्युटी का लाभ मिलेगा।

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Abhilasha Saksena Chakraborty
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MP News: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (HC) ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि शिक्षाकर्मियों को ग्रेच्युटी से वंचित नहीं किया जा सकता। जस्टिस विवेक जैन की एकलपीठ ने राज्य सरकार की याचिका खारिज करते हुए कहा कि पंचायत विभाग मध्य प्रदेश में शिक्षक के तौर पर कार्यरत और बाद में शिक्षा विभाग में मर्ज हुए शिक्षकों को भी ग्रेच्युटी का लाभ मिलेगा। यह आदेश उन शिक्षकों के लिए एक बड़ी राहत है जो पंचायत सेवा से राज्य सेवा में शामिल हुए हैं।

सरकार ने लगाई थी याचिका

राज्य सरकार ने रिट याचिका दाखिल कर उस ट्रिब्यूनल के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें पंचायत से शिक्षा विभाग में शामिल शिक्षकों को ग्रेच्युटी देने का निर्देश दिया गया था। सरकार का तर्क था कि यह शिक्षक मध्यप्रदेश सिविल सेवा नियमों के तहत ग्रेच्युटी के पात्र नहीं हैं क्योंकि नियमों में पांच साल की सेवा की शर्त है और वे नियम के अंतर्गत परिभाषित कर्मचारी नहीं हैं।

हालांकि, कोर्ट ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि कर्मचारी की परिभाषा से बहिष्कार तभी लागू होगा जब कोई व्यक्ति ग्रेच्युटी के लिए अन्य नियमों के तहत शासित हो। चूंकि पंचायत सेवा गैर-पेंशन योग्य है और शिक्षकों के मामले में ऐसा नहीं है, इसलिए यह बहिष्कार लागू नहीं होगा।

हाईकोर्ट ने क्या कहा

हाईकोर्ट ने 1976 के नियमों के नियम 44 के आधार पर फैसला सुनाया कि पांच साल की सेवा की शर्त आवश्यक है, लेकिन इससे ग्रेच्युटी से वंचित नहीं किया जा सकता। सेवानिवृत्त शिक्षक शिवनाथ सिंह के मामले में, जो पांच साल की सेवा पूरी किए बिना ही सेवानिवृत्त हुए थे, कोर्ट ने ग्रेच्युटी का लाभ सुनिश्चित किया।

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ग्रेच्युटी का महत्व

ग्रेच्युटी एक संवैधानिक लाभ है जो सेवा के दौरान कर्मचारियों के योगदान का सम्मान करता है। शिक्षकों का ग्रेच्युटी से वंचित होना न केवल उनके आर्थिक अधिकारों का हनन है, बल्कि इससे उनके सम्मान और सुरक्षा पर भी असर पड़ता है। इस फैसले से पंचायत से शिक्षा विभाग में शामिल शिक्षकों को न्याय मिला है।

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