Bhopal : मध्य प्रदेश में आईएफएस बनाम आईएएस विवाद में अब नया मोड़ आ गया है। फिलहाल आईएफएस अफसरों को सुप्रीम कोर्ट से निराशा ही हाथ लगी है। नए समीकरणों के हिसाब से फिलहाल अफसरशाही में आईएएस अधिकारियों का दबदबा बरकरार रहेगा।
मामला आईएफएस अफसरों की मूल्यांकन रिपोर्ट (सीआर) लिखने की प्रक्रिया से जुड़ा है। प्रकरण में गुरुवार, 24 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इसमें सरकार की ओर से दलीलें दी गईं। कहा गया कि सभी राज्यों में इस तरह का प्रावधान है कि डीएफओ की सीआर सीसीएफ लिखते हैं। उस सीएआर के साथ कलेक्टर अपनी रिपोर्ट देते हैं। अब यदि इसमें कलेक्टर किसी मामले में किसी अफसर की नेगेटिव सीआर लिखते हैं तो वह निगेटिव चली जाती है। अभी तक नीचे से लेकर एपीसीसीएफ तक की सीआर विभागीय स्तर पर स्वीकार कर ली जाती थी, लेकिन अब बदली हुई परिस्थितियों में इसकी स्वीकार्यता एससीएस के पास होती थी। मध्यप्रदेश सरकार ने अपनी ओर से किसी तरह का कोई नया नियम नहीं जोड़ा है, जो देश में चल रहा है, उसी हिसाब से हमारे यहां भी है।
सुप्रीम कोर्ट ने बनाई एमिकस क्यूरी
इसी मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है, जिस पर शीर्ष अदालत ने सुनवाई की। राज्य सरकार की ओर से कहा गया है कि हमने जो किया है, वह अपने मन से नहीं किया। इसी तरह की व्यवस्था सभी राज्यों में है। इसके जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने एमिकस क्यूरी (न्यायालय मित्र) बनाने के आदेश दिए हैं। एमिकस क्यूरी ही सभी राज्यों की व्यवस्थाओं का अध्ययन कर अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। इसके बाद आगे कदम उठाए जाएंगे। इस तरह आईएफएस अधिकारियों के हाथ निराशा ही लगी।
शीर्ष अदालत ने दी थी चेतावनी
बता दें, सीआर लिखने का अधिकार आईएएस अधिकारियों को दे दिया गया था। इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने चेतावनी दी थी कि यदि राज्य सरकार ऐसा नहीं करती, तो उसे अवमानना की कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा। शीर्ष कोर्ट ने यह आदेश 29 वर्ष से लंबित टीएन गोदावर्मन थिरुमूलपाद केस की सुनवाई के दौरान जारी किया था।
वह पुराना केस भी जान लीजिए
सुप्रीम कोर्ट ने 1996 में वन और पर्यावरण से संबंधित मामलों में सुधार के लिए आईएफएस की सीआर लेखन प्रक्रिया में बदलाव किया था। उस समय जूनियर आईएफएस अधिकारियों की सीआर लेखन का अधिकार राजस्व अधिकारियों से लेकर सीनियर आईएफएस अधिकारियों को सौंपा गया था।
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