मध्यप्रदेश का ऐसा गांव, जहां दर्शन देेने आते हैं भगवान जगन्नाथ

उड़ीसा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकलती है। इस भगवान जगदीश, बलभद्र और देवी सुभद्रा के दर्शन मिलते हैं। ऐसे ही भगवान के दर्शन मध्यप्रदेश के विदिशा जिले की ग्यारसपुर तहसील के मानोरा में मिलते हैं।

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Ravi Singh
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Madhya Pradesh Jagannath
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उड़ीसा का जगन्नाथपुरी चार धाम में से एक है। यहां आषाढ़ सुदी दूज को रथ यात्रा निकालने की परंपरा है। इस रथ में भगवान जगदीश, बलभद्र और देवी सुभद्रा के दर्शन मिलते हैं। ऐसे ही भगवान के दर्शन मध्यप्रदेश के विदिशा जिले की ग्यारसपुर तहसील के मानोरा में मिलते हैं।

मनोरा से संबंध

मनोरा गांव का संबंध जगन्नाथपुरी रथ यात्रा से है। जिस समय जगन्नाथ का रथ रुक जाता है तभी ग्यारसपुर के मानोरा में उत्सव शुरू हो जाता है। क्योंकि जगन्नाथ पूरी से कुछ देर के लिए भगवान मानोरा आते हैं। ऐेसी मान्यता है इस नजारे को देखने के लिए यहां लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। ग्यारसपुर के मानौरा में यह परंपरा 200 सालों से चली आ रही है। यहां पर भगवान जगदीश स्वामी का प्राचीन मंदिर है, जिसमें जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा के श्रीविग्रह विराजमान हैं।

इसलिए यहां आते हैं भगवान

लोग यहां आने के पीछे की कहानी बताते हैं कि यह मंदिर भगवान के भक्त और मानौरा के तरफदार मानिकचंद और देवी पद्मावती की आस्था का प्रतीक है। इस दंपती ने भगवान के दर्शन की आकांक्षा में दंडवत करते हुए  जगन्नाथपुरी की और कूच किया था दुर्गम रास्तों के कारण दोनों के शरीर लहुलुहान हो गए लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी इस पर भगवान स्वयं प्रकट हुए और उनको मानोरा में ही हर वर्ष दर्शन देने आने का वचन दिया। अपने भक्त को दिए इसी वचन को निभाने हर साल भगवान आषाढ़ी दूज (रथयात्रा) के दिन मानोरा पधारते हैं और रथ में सवार होकर भक्तों को दर्शन देने निकलते हैं।

भगवान मानोरा पधार गए

सूत्रों के अनुसार रथयात्रा की पूर्व संध्या को आरती, भोग लगाने के बाद जब रात्रि को भगवान को शयन कराते हैं तो उनके पट पूरी तरह से बंद किए जाते हैं, लेकिन सुबह अपने आप थोड़ा-सा पट खुला मिलता है। जब रथ पर भगवान को सवार कराया जाता है तो अपने आप उसमें कंपन होता है अथवा वह खुद ही लुढ़कने लगता है। यही प्रतीक है कि भगवान मानोरा आ गए हैं। उड़ीसा की  पुरी में भी पंडा रथयात्रा के दौरान जब वहां भगवान का रथ ठिठककर रुकता है तो घोषणा करते हैं कि भगवान मानोरा पधार गए हैं।

भगवान को मीठे भात पसंद 

रथयात्रा के दिन भगवान जगदीश को पूरी पवित्रता के साथ बनाए गए मीठे भात का भोग अर्पित किया जाता है। कई श्रद्धालु अपनी मन्नत पूरी होने पर भी भगवान को ये भोग अर्पित कराते हैं। इस भोग को अटका कहा जाता है। यह मिट्टी की हंडियों में मुख्य पुजारी द्वारा ही तैयार किया जाता है। जिसे भगवान को अर्पित करने के बाद भक्तों में बांटा जाता है। इस लिए कहा जाता है कि जगन्नाथ का भात, जगत पसारे हाथ।

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तन की सुधि नहीं, मन जगदीश के हवाले

भगवान के दर्शन करने बड़ी संख्या में लोग मीलों दूर से दण्डवत करते हुए मानोरा पहुंचते हैं। रास्ता चाहे जितना दुर्गम, पथरीला, कीचड़ भरा या सड़कें गड्ढे और गिट्टियों वाली हों, भक्तों की आस्था कम नहीं होती। एक दिन पहले से दंडवत करते लोग यहां पहुंचते हैं और रास्ते भर जय जगदीश हरे की टेर लगाते जाते हैं। सच उन्हें ऐसे में अपने तन की भी सुध नहीं रहती कि कहीं शरीर छिल रहा है, कहीं चोट लग रही है,कहीं वे कीचड़ में लथपथ हैं, बस एक ही धुन रहती है जगदीश स्वामी के दर्शन की।

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