MP News: मध्य प्रदेश में मातृ मृत्यु दर (Maternal Mortility Rate) कम करने के लिए सरकार के प्रयास प्रभावशाली नतीजे नहीं ला पा रहे हैं। जहां राष्ट्रीय स्तर पर मातृ मृत्यु दर घटकर 88 तक पहुंच गई है, वहीं प्रदेश में यह दर अभी तक 169 से कम होने का नाम नहीं ले रही है। यह आंकड़े 2020–22 की अवधि के लिए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी किए गए हैं।
देश के मुकाबले मप्र में दो गुना ज्यादा मातृ मृत्यु दर
रिपोर्ट के अनुसार प्रति एक लाख जीवित जन्मों पर मध्यप्रदेश में 169 महिलाओं की मौत हो रही है। यह आंकड़ा देश के औसत से लगभग दो गुना अधिक है। पिछली रिपोर्ट में यह दर 175 थी, जिसमें केवल 6 अंकों की गिरावट आई है। 2018-20 में देश की MMR 97 थी और प्रदेश की 173। 2019-21 में देश के स्तर पर यह दर कुछ कम होकर 93 पर पहुंची वहीं प्रदेश में कम होने की जगह यह कुछ बढ़कर 175 हो गई। 2020-22 में यह दर देश में 88 हो गई और प्रदेश में यह 169 ही है।
बिहार, राजस्थान जैसे राज्यों ने दिखाया सुधार
देश के सभी राज्यों में मातृ मृत्यु दर को कम करने के प्रयास किए जा रहे हैं। एक तरफ़ जहां बिहार में यह 91 तक पहुंच गई है, वहीं राजस्थान ने भी काफी सुधार किया और यह दर 87 तक पहुंच गई है। गुजरात में मातृ मृत्यु दर 55 है। महाराष्ट्र ने दूसरे राज्यों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करते हुए केवल 36 एमएमआर दर्ज किया। केरल में यह दर देश में सबसे कम 18 है।
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मप्र में 3.5 हजार करोड़ रुपए खर्च, नतीजा शून्य
राज्य में मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए साल 2024-25 में 3531 करोड़ रुपए खर्च किए और 2025-26 में इसके लिए 4418 करोड़ रुपए का बजट प्रस्तावित किया। इसके बावजूद भी राज्य में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया। स्वास्थ्य विभाग द्वारा ANC पंजीकरण, चार बार प्रसव पूर्व जांच, एनीमिया व मधुमेह स्क्रीनिंग जैसी योजनाएं चलाई गईं, लेकिन ये परिणाम नहीं दे रहीं।
पोषण पर ध्यान देना जरूरी
जन स्वास्थ्य अभियान इंडिया की राष्ट्रीय संयोजक अमूल्य निधि का कहना है:
“महिलाओं में पोषण की स्थिति सुधारना अत्यंत आवश्यक है। खून की कमी (Anemia) गर्भावस्था में जटिलताएं उत्पन्न करती है। इसके अलावा अस्पतालों में गाइनेकॉलजिस्ट की उपलब्धता, आपात स्थिति में प्रसव की सुविधा और इलाज की त्वरित व्यवस्था होनी चाहिए।”
स्वास्थ्य व्यवस्था में बदलाव की जरूरत
रिपोर्ट यह भी दर्शाती है कि केवल बजट खर्च करने से सुधार नहीं होगा। ज़रूरत है सुनियोजित रणनीति की और स्थानीय स्वास्थ्य केंद्रों को सशक्त बनाने की।
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