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सावन का महीना शिवभक्तों के लिए किसी उत्सव से कम नहीं होता। इस महीने में अगर किसी एक तीर्थ की बात सबसे ज्यादा की जाती है, तो वह है मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी के तट पर स्थित ओंकारेश्वर और ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग।
यह स्थान सिर्फ एक मंदिर नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव है जहां प्रकृति, भक्ति और पौराणिक कथाएं एक साथ मिलती हैं। आइए जानें इनकी पौराणिक कथाओं क बारे में...
पर्वत पर निवास करते हैं एकलिंगनाथ
गंगा से भी ज्यादा पावन मानी जाने वाली नर्मदा नदी, इसके किनारे से सटा ओंकार पर्वत और इस पर्वत पर निवास करते एकलिंगनाथ यानी महादेव। सचमुच यह स्थान देवताओं का निवास स्थान है।
यहां नर्मदा नदी के दोनों किनारों पर दो प्रमुख मंदिर हैं: ओंकारेश्वर और ममलेश्वर। यहां दोनों ज्योतिर्लिंग मिलकर एक होते हैं और कहलाते हैं ओंकार ममलेश्वर। द्वादश ज्योतिर्लिंग में इसका स्थान चौथा है।
पौराणिक कथा के मुताबिक कहते हैं कि, पूरी पृथ्वी का यह एकमात्र ज्योतिर्लिंग है, जहां हर रात को महादेव और माता पार्वती सोने के लिए आते हैं और साथ ही यहां चौसर भी खेलते हैं।
महादेव और माता पार्वती का चौसर खेलना
पौराणिक कथा के मुताबिक, ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ा सबसे अनोखा और रोचक तथ्य यह है कि माना जाता है कि रात्रि के समय भगवान शिव यहां पर प्रतिदिन विश्राम करने के लिए आते हैं।
मान्यता यह भी है कि इस मंदिर में महादेव अपनी पत्नी माता पार्वती के साथ चौसर भी खेलते हैं। यही कारण है कि रात्रि के समय यहां पर एक विशेष चौकी बिछाई जाती है, जिस पर चौपड़ और पासे रखे जाते हैं।
मंदिर के पट बंद होने के बाद रात के समय परिंदा भी पर नहीं मार पाता है, फिर भी सुबह चौसर और उसके पासे कुछ इस तरह से बिखरे मिलते हैं, जैसे रात्रि के समय उसे किसी ने खेला हो। यह घटना भक्तों के बीच गहरी आस्था और विस्मय का कारण बनती है।
शयन आरती
इस मंदिर में एक ऐसी आरती भी होती है, जिसे न तो कोई भक्त देख सकता है और न ही मंदिर का कोई अन्य कर्मचारी उसमें उपस्थित होता है।
यह ओंकारेश्वर की 'शयन आरती' है, जिसे सिर्फ एक पुजारी अकेले गर्भगृह में करता है और इस दौरान मंदिर के कपाट भक्तों के लिए पूरी तरह बंद हो जाते हैं। यह प्रथा इस मान्यता को और पुख्ता करती है कि भगवान शिव और माता पार्वती रात्रि में यहां वास करते हैं।
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68 तीर्थों का संगम और देवी-देवताओं का निवास
ओंकारेश्वर सिर्फ एक ज्योतिर्लिंग नहीं, बल्कि एक पवित्र क्षेत्र है जहां कई तीर्थों का संगम होता है। इस मंदिर परिसर में 68 तीर्थ हैं जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां 33 कोटि देवी-देवता अपने परिवार के साथ निवास करते हैं।
यह मान्यता इस स्थान को और भी पवित्र और पूजनीय बनाती है। सावन के महीने में यहां आने वाले भक्तों की संख्या कई गुना बढ़ जाती है, जो इस दिव्य अनुभव को जीना चाहते हैं।
महादेव का वरदान प्राप्त मोक्षदायिनी
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में स्थित है। यह मंदिर नर्मदा नदी में मांधाता द्वीप या शिवपुरी नामक द्वीप पर स्थित है। मान्यता है कि ओंकारेश्वर में स्थापित लिंग किसी मनुष्य के द्वारा गढ़ा या तराशा नहीं गया, बल्कि यह एक प्राकृतिक शिवलिंग है।
यह शिवलिंग हमेशा चारों ओर से जल से भरा रहता है। ओंकारेश्वर मंदिर नर्मदा के दाहिने तट पर है, जबकि बाएं तट पर ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग है।
स्कंद पुराण के मुताबिक, यहां की पवित्र नदी नर्मदा, जो ओंकार ममलेश्वर महादेव के चरण पखारती है, जिसे महादेव का यह वरदान प्राप्त है कि "तुम्हारे तट पर जितने भी पत्थर हैं, वह मेरे वरदान से शिवलिंग स्वरूप हो जाएंगे", यानी यहां का हर कंकड़ शंकर है।
महादेव का आशीर्वाद
नर्मदा नदी से निकले इन नर्मदेश्वर शिवलिंग को बाणलिंग भी कहा जाता है, जिसे प्राण प्रतिष्ठा की जरूरत नहीं होती और यह कहीं भी स्थापित किए जा सकते हैं और किसी भी रूप में इनकी पूजा की जा सकती है।
महादेव के आशीर्वाद से नर्मदा पवित्र नदियों के रूप में पूजी जाने लगी। यह पूरे विश्व में इकलौती ऐसी नदी है, जो अपनी दिशा से बिल्कुल विपरीत दिशा में बहती है।
यह नदी पश्चिम से पूरब की ओर बहती है। इसके साथ ही नर्मदा नदी को कुंवारी नदी भी कहा जाता है। स्कंद पुराण के रेवा खंड के मयूर कल्प में नर्मदा की उत्पत्ति का वर्णन मिलता है और वे शब्द वास्तव में रेवा के गुणों को दर्शाते हैं।
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जानें नर्मदा नदी से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
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द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र में ओंकारेश्वर का महत्व
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र में ओंकारेश्वर के बारे में वर्णित है:
कावेरिकानर्मदयोः पवित्रे समागमे सज्जनतारणाय |
सदैवमान्धातृपुरे वसन्तमोङ्कारमीशं शिवमेकमीडे ||
अर्थात्: जो सत्पुरुषों को संसारसागर से पार उतारने के लिए कावेरी और नर्मदा के पवित्र संगम के निकट मान्धाता के पुर में सदा निवास करते हैं, उन अद्वितीय कल्याणमय भगवान ओंकारेश्वर का मैं स्तवन करता हूं। यह श्लोक ओंकारेश्वर के आध्यात्मिक महत्व और उसके स्थान की पवित्रता को दर्शाता है।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का अद्भुत परिसर
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग परिसर एक पांच मंजिला इमारत है, जो वास्तुकला का एक शानदार उदाहरण है। इसकी प्रथम मंजिल पर भगवान महाकालेश्वर का मंदिर है
- तीसरी मंजिल पर सिद्धनाथ महादेव,
- चौथी मंजिल पर गुप्तेश्वर महादेव,
- और पांचवीं मंजिल पर राजेश्वर महादेव का मंदिर है।
यहीं पास में कुबेर भंडारी मंदिर है। इसके बारे में मान्यता है कि इस मंदिर में शिव भक्त कुबेर ने तपस्या की थी तथा शिवलिंग की स्थापना की थी। जिसे शिव ने देवताओं का धनपति बनाया था। कुबेर के स्नान के लिए शिवजी ने अपनी जटा के बाल से कावेरी नदी उत्पन्न की थी।
यह नदी कुबेर मंदिर के बगल से बहकर नर्मदाजी में मिलती है। इसे ही नर्मदा-कावेरी का संगम कहते हैं, जो एक और पवित्र स्थल है। इसके पास सिद्धनाथ मंदिर, गौरी सोमनाथ मंदिर और केदारेश्वर मंदिर हैं।
गोविंदा भगवत्पाद गुफाएं भी वहीं स्थित हैं, जहां आदि शंकराचार्य को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। इस क्षेत्र में कई अन्य शिवलिंग और धार्मिक स्थल भी हैं, जो इस जगह की धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता को दर्शाते हैं।
ओंकारेश्वर वास्तव में एक ऐसा स्थान है जहां धर्म, इतिहास और प्रकृति का अद्भुत मेल है, जो हर शिवभक्त और जिज्ञासु के लिए एक अविस्मरणीय अनुभव प्रदान करता है।
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