BHOPAL. लीजिए अब जनजातीय कार्य विभाग अपनी खुद की टेक्नीकल-इंफ्रास्ट्रचर यूनिट खड़ी करने की तैयारी में जुट गया है। यानी आने वाले दिनों में जनजातीय कार्य विभाग के पास भी पीडब्लूडी के PIU, गृह विभाग के पुलिस हाउसिंग कॉर्पोरेशन, नगरीय प्रशासन विभाग के MPHIDB, विकास प्राधिकरण जैसी इकाई होगी। जो विभाग के कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट खुद ही तैयार कर निर्माण का जिम्मा स्वयं ही उठाएगी। विभाग ने तकनीकी इकाई बनाने का ड्रॉफ्ट भी तैयार कर लिया है। जल्द की विभाग अपनी इस टेक्नीकल-कंस्ट्रक्शन यूनिट के लिए भर्ती भी शुरू करने जा रहा है।
महीनों के मंथन के बाद मिली स्वीकृति
ऐसा नहीं है कि टेक्नीकल यूनिट तैयार करने का निर्णय अचानक या आनन-फानन में लिया गया है। बल्कि इसके लिए जनजातीय कार्य विभाग में लंबे समय से गहरा मंथन चल रहा था। लंबे विचार-विमर्श के बाद प्रस्ताव विभागीय मंत्री के सामने रखा गया। अफसरों की टीम विभाग की तकनीकी इकाई के फायदे गिनाकर मंत्री को सहमत करने में कामयाब हो गई। वहीं मंत्री के समर्थन और अफसरों के प्रजेंटेशन के चलते सरकार ने भी फिलहाल हरी झंडी दे दी है।
कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट से कमाई का लालच
जानकारों के अनुसार पहले सरकार के लिए सड़क से लेकर भवन निर्माण का काम पीडब्लूडी करता था। बाद में नगरीय क्षेत्र के काम नगरीय प्रशासन और ग्रामीण क्षेत्र के निर्माण पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग को सौंप दिए गए। अब इन विभागों की टेक्नीकल इकाइयां ये काम संभाल रही हैं। प्रदेश में बीते एक दशक में खरबों रुपए के निर्माण कार्य हुए हैं। बड़े-बड़े हाउसिंग प्रोजेक्ट से लेकर कार्यालयों के भवन भी अब ये इकाइयां संभाल रही है।
बड़े प्रोजेक्ट में विभागों की व्यस्तता और देरी को देखते हुए गृह विभाग पुलिस हाउसिंग कॉर्पोरेशन से अपने काम करा रहा है। इसी तरह नगरीय प्रशासन विभाग के लिए MBHIDB, अलग-अलग शहरों के विकास प्राधिकरण और अन्य इकाइयां ये काम कर रही हैं। लेकिन केवल इसी वजह के चलते जनजातीय कार्य विभाग को अपनी खुद की टैक्नीकल यूनिट खड़ी करने का विचार नहीं आया। इसके पीछे सबसे अहम वजह कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट से हर साल होने वाली करोड़ों की कमाई बताई जा रही है।
निर्माण से लेकर मरम्मत तक मोटा मुनाफा
कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट नए हों या पुराने भवनों की मरम्मत का टेंडर सब अफसरों की कमाई का जरिया बन चुके हैं। निजी क्षेत्र में निर्माण कार्य करने वाले रामेन्द्र कुमार तिवारी का कहना है प्रोजेक्ट से विभागीय अफसर जमकर कमाई कर रहे हैं। इसे स्पष्ट शब्दों में समझे तो बात ये है कि किसी प्रोजेक्ट का टेंडर निकलने के साथ ही कमाई का सोर्स खुल जाता है। टेंडर हासिल करने से भी पहले कंसल्टेंट फर्म अधिकारियों से लाबिंग करने लगती हैं। इसमें कंपनियों को करोड़ों मिलते हैं तो अफसरों की जेब में भी लाखों पहुंच ही जाते हैं।
टेंडर निकलते ही फिर कंपनियां जोड़-तोड़ शुरू कर देती हैं। किसे टेंडर मिले इसमें अधिकारियों की भी रुचि होती है। अक्सर वही कंपनी क्वालिफाई कर पाती है जो अधिकारी या मंत्री की पसंद की होती है। यदि दूसरी कंपनी टेंडर हासिल कर ले तो उसे भी नेताओं, अधिकारियों के साथ जुगलबंदी करना पड़ता है। या परेशान होकर काम छोड़ने की नौबत खड़ी हो जाती है। ऐसे प्रोजेक्ट से अधिकारियों की टीम को 12 से 20 फीसदी तक मिल ही जाती है। यानी 100 करोड़ के एक कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट की बदौलत अफसरों को 12 से 20 करोड़ तक की कमाई होना तय है।
छात्रावास हादसा बना टर्निंग पाइंट
जनजातीय कार्य विभाग अपनी तकनीकी यूनिट बनाने की तैयारी पहले से ही कर रहा था। इसे 25 सितम्बर को धार के एक हॉस्टल में हुए हादसे ने रफ्तार दे दी। इस हादसे में हॉस्टल में रहने वाली जनजातीय समुदाय की दो छात्राओं की मौत हो गई थी। हादसे की वजह तकनीकी चूक के रूप में सामने आई थी। हॉस्टल की मरम्मत की जिम्मेदारी पीडब्लूडी के पीआईयू के पास थी।
मरम्मत के बाद पानी की टंकी से सटे बिजली के तार को दुरुस्त नहीं किया गया और करंट फैलने से दोनों छात्राओं की जान चली गई थी। छात्राओं की मौत का मामला गरमाने के दौरान अफसरों ने विभाग की तकनीकी यूनिट का राग छेड़ दिया और फिर शीर्ष अफसरों के प्रजेंटेशन से मंत्री कुंवर विजय शाह भी सहमत हो गए हैं। इसके बाद मंत्री की अगुवाई में मामला सरकार तक पहुंचा और जनजातीय वर्ग से जुड़े विभाग और बजट से लेकर मॉनिटरिंग की अलग व्यवस्था को देखते हुए इसे स्वीकृति मिल गई।
निर्भरता घटेगी, जवाबदेही भी तय कर पाएंगे
जनजातीय कार्य विभाग की अपनी टेक्नीकल यूनिट को लेकर अफसरों ने ड्रॉफ्ट तैयार कर लिया है। अधिकारियों का कहना है विभाग की अपनी इकाई होने से निर्माण परियोजनाओं पर सीधा नियंत्रण होगा। यानी प्रोजेक्ट में देरी या गुणवत्ता संबंधी कमी सामने आने वाले तकनीकी अधिकारियों पर जिम्मेदारी तय की जा सकेगी। अभी निर्माण काम तय अवधि से साल-दो साल लेट होने पर भी जनजातीय कार्य विभाग कार्रवाई नहीं कर पाता। अक्सर इसके लिए कभी पीडब्लूडी तो कभी दूसरे विभागों से पत्राचार करके रह जाते हैं।
गुणवत्ता में कमी या घटिया निर्माण पर भी उनके हाथ केवल कार्रवाई की अनुशंसा ही बचती है। लेकिन खुद की यूनिट पर विभाग का पूरा अधिकार होगा और इसका असर विभाग के हॉस्टल, स्कूल और दूसरे निर्माणों में जल्द की नजर आने लगेगा। अभी 100 करोड़ रुपए हर साल मरम्मत के काम पर खर्च होते हैं जबकि मौके पर इसका मूल्यांकन उतना नहीं होता। हर साल एक हजार करोड़ से ज्यादा के निर्माण कार्य दूसरे विभागों की तकनीकी इकाइयों से कराने पड़ते हैं। जनजातीय कार्य विभाग की यूनिट अब 50 करोड़ के बिल्डिंग प्रोजेक्ट के टेंडर खुद बनाकर काम करा पाएगी। जिसकी गुणवत्ता भी दूसरी यूनिटों से कहीं बेहतर होगी।
तकनीकी एक्सपर्ट पदों पर भर्ती की तैयारी
जनजातीय कार्य विभाग में नई यूनिट की औपचारिक स्वीकृति के बाद तकनीकी पदों पर भर्ती की तैयारी का खाका भी खींच लिया है। फर्स्ट फेज में विभाग की इस यूनिट में मुख्यालय स्तर पर सिविल और इलेक्ट्रिक इंजीनियरों के तीन-तीन पद होंगे। पहले चरण में सब इंजीनियर (इलेक्ट्रिक) के रूप में 9 पदों पर नियुक्ति की जाएगी। जबकि सब इंजीनियर (सिविल) के 123 पदों पर भर्ती होगी। इनमें से श्योपुर, खंडवा, नर्मदापुरम, सीधी, सिंगरौली, बुरहानपुर और उमरिया में एक-एक सिविल सब इंजीनियर, रतलाम जिले में दो, बालाघाट में तीन, छिंदवाड़ा, शहडोल और अनूपपुर में चार_चार, सिवनी में पांच और अलीराजपुर में छह सब इंजीनियर तैनात होंगे।
आदिवासी समुदाय की बहुलता के आधार पर खरगोन, बड़वानी, बैतूल और डिंडोरी जिलों में इनकी संख्या सात-सात जबकि मंडला जिले में 9 सब इंजीनियर पदस्थ होंगे यानी आबादी और जनजातीय कार्य विभाग के प्रकल्पों की संख्या के आधार पर जिलों में ब्लॉक स्तर पर भी नियुक्ति की जा सकती है। जबकि सामान्य जिलों जहां जनजातीय कार्य विभाग के गिने-चुने संस्थान हैं वहां एक-एक सब इंजीनियर ही रखे जाएंगे।
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